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जावइणं काले से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवइ । से तं सुहमे खेतपलिओदमे ॥
४३६. तत्थ णं चोयए पण्णवगं एवं वयासी - अत्थि णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा, जेणं वालग्गेहि अमरपुन्ना ? हंता अस्थि । जहा को दितो ? से जहानामए कोट्ठए सिया कोहंडाणं भरिए, तत्थ णं माउलिंगा पक्खित्ता ते वि माया, तरच णं बिल्ला पखिता ते वि माया, तत्य णं आमलगा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं बयरा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं चणगा पक्खिता ते वि माया, तत्थ णं मुग्गा पक्खित्ता ते वि माया, तत्य णं सरिसवा पक्खित्ता ते वि माया, तरच णं गंगावालुया पक्खित्ता सा वि माया, एवमेव एएणं विट्ठलेणं अस्थि णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा, जेणं तेहि वालहिं अणकुन्ना ।
गाहा एएसि पलाणं,
कोडाकोडी भवेज्ज दसगुणिया । तं सुहस्स खेतसागरोयमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥ १ ॥
४४०. एहि सुमत्तपलिओम सागरोवमेहि कि पजोषणं ? एएहि सुहुमखेत्तपलिओवमसागरोवमेहिं दिट्टिवाए दव्वा मविति ॥
दव्वा
४४१. विहा णं भंते ! पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा जीवदया य अजीवदव्वा य ||
४४२. अजीवदव्वा णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा
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निर्लेपः निष्ठितः भवति । तदेतत सूक्ष्मं क्षेत्रपल्योपमम् ।
तस्य पल्यस्य
तत्र चोदकः प्रज्ञापकम् एवम् अवादीत् - अस्ति आकाशप्रदेशा:, ये बालायै: 'अणप्फुन्ना' ? हंत अस्ति ।
यथा कः दृष्टान्तः ? तद् यथानाम कोष्ठः स्यात् कुतः तत्र मातुलिङ्गाः प्रक्षिप्ताः तेsपि माता:, तत्र बिल्वाः प्रक्षिप्ताः तेऽपि माता:, तत्र आमलकाः प्रक्षिप्ताः तेऽपि माताः, तत्र बदराणिः प्रक्षिप्तानि तानि अपि मातानि, तत्र चणका प्रक्षिप्ताः तेऽपि माता, तत्र मुद्गा: प्रक्षिप्ता तेऽपि माताः, तत्र सर्षपाः प्रक्षिप्ता तेऽपि माता:, तत्र गंगावालुका प्रक्षिप्ता साऽपि माता, एवमेव एतेन दृष्टान्तेन सन्ति तस्य पल्यस्य आकाशप्रदेशा:, ये तैः बालाः 'अणप्फुन्ना' ।
गाथा
एतेषां पल्यानां
कोटिकोटि भवेत्ता तत् सूक्ष्मस्य क्षेत्रसागरोपमस्य एकस्य भवेत् परीमाणम् ||१|
एवं सूक्ष्मक्षेत्रपल्योपम-सागरो
:
कि प्रयोजनम् एत पल्योपम - सागरोपमः
द्रव्याणि मीयन्ते ।
दृष्टवा
कतिविधानि भदन्त ! द्रव्याणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा जीवद्रव्याणि च अजीवद्रव्याणि च ।
अजीवद्रव्याणि भदन्त ! कतिवि पानि प्रशप्तानि ? गौतम द्विविधानि
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अणुओगदाराई
रूप से खाली ] होता है । वह सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम है।
४३९. यहां प्रेरक ने प्रज्ञापक से इस प्रकार कहाक्या उस कोठे के वैसे आकाश प्रदेश हैं जो उन बालानों से अव्याप्त हों ?
हां है ।
जैसे कोई दृष्टांत है ?
जैसे कोई कोठा कुष्माण्डों [कुम्हड़ों से भरा हुआ है उसमें बिजोरे डाले वे भी समा गए, उसमें बिल्व फल डाले वे भी समा गए उसमें आवंले डाले वे भी समा गए, उसमें बैर डाले वे भी समा गए, उसमें चने डाले वे भी समा गए, उसमें मूंग डाले वे भी समा गए, उसमें सरसों के दाने डाले वे भी समा गए और उसमें गंगा नदी के बालुका- कण डाले वे भी समा गए। इस प्रकार इस दृष्टांत से जाना जाता है कि उस कोठे के वैसे आकाश प्रदेश हैं जो उन बालानों से अव्याप्त रहते हैं ।
गाथा
१. इन दस कोड़ाकोड़ पत्यों का एक सूक्ष्म क्षेत्र सागरोपम होता है।
४४०. इन सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपमों और सागरोपमों का क्या प्रयोजन है ?
इन सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपमों और सागरोपमों से दृष्टिवाद में द्रव्य मापे जाते हैं ।
४४१. भन्ते ! द्रव्य के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! द्रव्य के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे जीव द्रव्य और अजीव द्रव्य |
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४४२. भन्ते ! अजीव द्रव्य के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं ?
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