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गाहाएएस पल्लाणं, कोडाकोडी भवेज्ज दसगुणिया । तं सुहमरस अद्धासागरोयमस्स एगस्स भवे परीमाणं ||२||
४३२. एएहि सुहुमअद्धापलिओवमसागरोपमेहि कि पओषणं ? एएहि मुहमअद्धापलिओदम-सागरोवमेहि नेरइयतिरिक्त जोणिय-मनुस्स देयाणं आउयाई मविज्जति ॥ ४३३. नेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं दसवाससहस्साई उनको सेणं तेत्तीस सागरोवमाई । जहा पण्णवणाए ठिईपए सव्व - सत्ताणं । से तं सुहुमे अद्धापलिओवमे से तं अदापलिओदमे ||
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४३४. से किं तं वेतपलिओदमे ? खेत्तपलिओ मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - सुहुमेय वावहारिए य ॥ ४३५. तत्थ णं जेसे सुहुमे से ठप्पे ॥
४३६. तत्थ णं जेसे वावहारिए से जहानामए पल्ले सिया जोयणं आयाम विक्खभेणं, जोयणं उड़ उच्चतेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्लेगाहा
एगाहिय - बेयाहिय तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥ १ ॥ ते णं वालग्गे नो अग्गी उहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो पलिविसज्जा, नो पूइसाए हव्वमागच्छेज्जा । जे णं तस्स आगासपएसा तेहि वालग्गेहि अष्कुन्ना, तओ गं समए समए
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गाथा
एतेषां पानां कोटिकोटि भवेत् दशगुणता तद्व्यावहारिकस्य आवासावरोपमस्य एकस्य भवेत् परीमाणम् ||२|| एतं सूक्ष्म अध्यायस्योपध-साथशेपर्म कि प्रयोजनम् ? एवं सूक्ष्म
अध्वा पल्योपम- सागरोपमैः नैरयिकतिर्यग्योनिक मनुष्य देवानाम् आयुठकानि मीयन्ते ।
नैरयिकाणां भवन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन दशवर्षसहखाणि उत्क सागरोपमाथि
यथा प्रज्ञापनायां स्थितिपदं सर्वसत्त्वानाम् । तदेतत् सूक्ष्मम् अध्वापत्योपमम् । तदेतद् अध्वापल्योपमम् ।
अथ किं तत् क्षेत्रपल्योपमम् ? क्षेत्रपल्योपमं द्विविधं प्रज्ञप्त, तद्यथा मुन्यावहारि
तत्र यत् तत् सूक्ष्मं तत् स्था
प्यम् ।
तत्र यत् तद् व्यावहारिकम तद् यथानाम पल्य स्यात् योजनम् आयाम-विष्कम्भेण योजनम् ऊम् उच्चत्वेन तत् त्रिगुणं सविशेषं परिक्षेपेण, स पल्य:
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गाथा
एका हिक-द्वयहिक व्यहिकाणाम्, उत्कर्षेण सप्तरात्रप्ररूढानाम् । संसृष्ट समचितः भृतः बालाग्रकोटिभिः || १ ||
तानि बालाग्राणि नो अग्निः दहेत्, नो वायुः हरेत, नो कुथ्येयुः, नो परिविध्वंश्येरन् नो वृतित्वेन 'हवं आ च्छेयुः । ये तस्य आकाशप्रदेशाः तैः बालाग्रेः 'अप्फुन्ना', ततः समयेसमये एकम् आकाशप्रदेशम् अपहृत्य
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अणुओगदाराई
गाथा
१. इन दस कोड़ाकोड़ अध्वा पल्यों से एक सूक्ष्म अध्वा सागरोपम होता है ।
४३२. इन सूक्ष्म अध्वा पल्योपमों और सागरोपमों का क्या प्रयोजन है ?
इन सूक्ष्म अध्वा पत्योपमों और सागरीपों से वैरयिक, सियोनिक जीव मनुष्य और देवों का आयुष्य मापा जाता है ।
४३३. भन्ते ! नैरयिक जीवों की स्थिति कितने काल की प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! जघन्यतः दस उत्कृष्टतः तेतीस सागरोपम ।
हजार वर्ष
यहां प्रज्ञापना के स्थिति पद [ पद ४] के अनुसार सब जीवों की स्थिति प्रतिपादनीय है । वह सूक्ष्म अध्वापल्योपम है । वह अध्वापल्योपम है ।
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४३४. वह क्षेत्रपल्योपम क्या है ?
क्षेत्रपल्योपम के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेसूक्ष्म और व्यावहारिक ।
४३५ . इनमें जो सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम है वह स्थापनीय है। [देखें सूत्र ४२८ ] ।
४३६ . इनमें जो व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम है वह इस प्रकार है
जैसे कोई कोठा एक योजन लम्बा, चौड़ा. ऊंचा और कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला है । वह पल्य
गाथा
१. एक, दो, तीन दिन यावत् उत्कृष्टतः सात रात के बढ़े हुए करोड़ों वालाग्रों से ठूंस-ठूंस कर घनीभूत कर भरा हुआ है।
वे बालाग्र न अग्नि से जलते है, न हवा में उड़ते हैं, न असार होते हैं, न विध्वस्त होते हैं और न दुगन्ध को प्राप्त होते हैं। उस कोठे के जो आकाश प्रदेश उन बालानों से व्याप्त हैं, उनमें से प्रति समय एक-एक आकाश प्रदेश का अपहार करने पर जितने
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