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दसवां प्रकरण : सूत्र ४२५-४३१
से तं वावहारिए अद्धापलिओवमे। अध्वापल्योपमम् । गाहा
गाथाएएसि पल्लाणं.
एतेषां पल्यानां, कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया। कोटिकोटिः भवेत् दशगुणिता। तं वावहारियस्स अद्धासागरोवमस्स तद् व्यावहारिकस्य अध्वासागरोपमस्य एगस्स भवे परीमाणं ॥२॥
एकस्य भवेत् परीमाणम् ।।२।।
गाथा१. इन दस कोडाकोड़ अध्वा पल्यों से एक व्यावहारिक अध्वा सागरोपम होता है ।
४३०. एएहि वावहारियअद्धापलि
एतैः व्यावहारिक अध्यापल्योपमओवम-सागरोवमेहि कि पओयणं? सागरोपमैः किं प्रयोजनम् ? एत: एएहि वावहारियअद्धापलिओवम- व्यावहारिक अध्वापल्योपम-सागरोपम: सागरोवमेहि नस्थि किविप्पओयण, नास्ति किंचित प्रयोजनम्, केवलं केवलं पण्णवणळं पण्णविज्जति। प्रज्ञापनार्थ प्रज्ञाप्यते । तदेतद् व्यावसे तं वावहारिए अद्धापलिओवमे। हारिकम अध्वापल्योपमम ।
४३०. इन व्यावहारिक अध्वा पल्योपमों और ___सागरोपमों का क्या प्रयोजन है ?
इन व्यावहारिक अध्वा पल्योपमों और सागरोपमों का कोई प्रयोजन नहीं है। केवल प्ररूपणा के लिए प्ररूपणा की जाती है। वह व्यावहारिक अध्वा पल्योपम है।
४३१. वह सूक्ष्म अध्वा पल्योपम क्या है ?
सूक्ष्म अध्वा पल्योपम-जैसे कोई कोठा एक योजन लम्बा, चौड़ा, ऊंचा और कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला है । वह पल्य
गाथा
१. एक, दो, तीन दिन यावत् उत्कृष्टत: सात रात के बढ़े हुए करोड़ों बालारों से लूंस-ठूस कर घनीभूत कर भरा हुआ है।
४३१. से कितं सुहमे अद्धापलिओवमे? अथ कि तत् सूक्ष्मम अध्वा
सहमे अद्धापलिओवमे : सं जहा- पल्योपमम ? सूक्ष्मम अध्वापल्योपमं नामए पल्ले सिया -जोयण
तद् यथानाम पल्य: स्यात् - योजनम् आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं आयाम-विष्कम्भेण, योजनम् ऊर्ध्वम् उच्चत्तणं, तं तिगणं सविसेसं उच्चत्वेन, तत त्रिगणं सविशेष परिक्खेवेणं; से ण पल्ले
परिक्षेपेण, स पल्य:गाहा
गाथाएगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय,
एकाहिक-यहिक-व्यहिकाणाम्, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । उत्कर्षेण सप्तरात्रप्ररूढानाम् । सम्मठे सन्निचिते,
संमृष्टः सन्निचितः भृतः भरिए वालग्गकोडोणं ॥१॥
बालाग्रकोटिभिः ॥१॥ तत्थ ण एगमेगे वालग्गे असंखे- तत्र एककस्य बालाग्रस्य असंख्येज्जाइं खंडाई कज्जइ, ते णं यानि खण्डानि क्रियन्ते, तानि बालावालग्गे दिदीओगाहणाओ असंखे
ग्राणि दृष्ट्यवगाहनातः असंख्येयज्जइभागमेत्ता सुहमस्स पणग- भागमात्राणि सूक्ष्मस्य पनकजीवस्य जीवस्स सरीरोगाहणाओ असं- शरीरावगाहनातः असंख्येवगणानि । खेज्जगुणा। ते णं वालग्गे नो तानि बालाग्राणि नो अग्नि: दहेत, अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो वायु: हरेत्, नो कुथ्येयुः, नो परिनो कुच्छेज्जा नो पलिविद्धंसेज्जा, विध्वंस्यरेन्, नो पूतित्वेन 'हव्वं' नो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा। आगच्छेयुः। ततः वर्षशते-वर्षशते तओ णं वाससए-वाससए गते गते एकैकं बालाग्रम् अपहृत्य पावता एगमेगं वालग्ग अवहाय जावइएणं कालेन स पल्यः क्षीणः नीरजाः निलंपः कालेणं से पल्ले खोणे नीरए निष्ठितः भवति। तदेतत सूक्ष्मम् निल्लेवे निदिए भवइ । से तं सुहमे अध्वापल्योपमम् । अद्धापलिओवमे।
इन बालानों में से प्रत्येक बालाग्र के असंख्य खण्ड किए जाते हैं । वे बालाग्र दृष्टि विषय में आने वाले पुद्गलों की अवगाहना के असंख्येय भाग मात्र और सूक्ष्म पनक जीव के शरीर की अवगाहना से असंख्य गुना अधिक होते हैं। वे बालाग्र न अग्नि में जलते हैं, न हवा में उड़ते हैं, न असार होते हैं, न विध्वस्त होते हैं और न दुर्गन्ध को प्राप्त होते हैं । उस कोठे से सौ-सौ वर्ष के बीत जाने पर एक-एक बालात्र निकालने से जितने समय में वह कोठा खाली, रज-रहित, निर्लेप और निष्ठित अन्तिम रूप से खाली होता है। वह सूक्ष्म अध्वा पल्योपम है।
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