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________________ २६० अणुओगदाराई गाहा--- गाथा गाथाएएसि पल्लाणं, एतेषां पल्यानां, २. इन दस कोडाकोड़ पल्यों से एक सूक्ष्म कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया। कोटिकोटि: मवेत दशगणिता। उद्धार सागरोपम होता है। तं सुहमस्स उद्धारसागरोवमस्स तत् सूक्ष्मस्य उद्धारसागरोपमस्य एगस्स भवे परीमाणं ॥१॥ एकस्य भवेत् परीमाणम् ॥२॥ ४२५. एएहिं सुहमउद्धारपलिओवम- एतः सूक्ष्मउद्धारपल्योपम-साग- ४२५. इन सूक्ष्म उद्धार पल्योपमों और सागरो सागरोवमेहि कि पओयणं? एएहिं रोपमैः कि प्रयोजनम् ? एत: सूक्ष्म- पमों का क्या प्रयोजन है ? सुहमउद्धारपलिओवम-सागरोव- उद्धारपल्योपम-सागरोपमैः द्वीप- ___ इन सूक्ष्म उद्धार पल्योपमों और सागरोमेहिं दीव-समुद्दाणं उद्धारो समुद्राणाम् उद्धारः गृह्यते । पमों से द्वीप-समुद्रों का उद्धार [परिमाण] घेप्पइ॥ किया जाता है। ४२६. केवइया णं भंते ! दीव-समुद्दा कियन्तः भदन्त ! द्वीप-समुद्राः ४२६. भन्ते ! उद्धार से कितने द्वीप-समुद्र प्ररूपित उद्धारेणं पण्णता? गोयमा! उद्धारेण प्राप्ताः? गौतम ! होते हैं ? जावइया णं अडाइज्जाणं उद्धारसा- यावन्तः अर्द्धतृतीयानाम् उद्धारसाग गौतम ! ढाई उद्धार सागरोपमों के जितने गरोवमाणं उद्धारसमया एवइया रोपमाणाम् उद्धारसमया: एतावन्तः उद्धार समय हैं उतने द्वीप-समुद्र उद्धार से णं दीव-समुद्दा उद्धारेणं पण्णत्ता। द्वीप-समुद्राः उद्धारेण प्रज्ञप्ता:। प्ररूपित होते हैं । वह सूक्ष्म उद्धार पल्योपम से तं सुहमे उद्धारपलिओवमे। से तदेतत् सूक्ष्मम् उद्धारपल्योपमम् । है । वह उद्धार पल्योपम है। तं उद्धारपलिओवमे॥ तदेतद् उद्धारपल्योपमम् । ४२७.से कि तं अद्धापलिओवमे? अथ किं तद अध्वापल्योपमम् ? ४२७. वह अध्वा पल्योपम क्या है ? अद्धापलिओवमे दुविहे पण्णत्ते, तं अध्वापल्योपमं विविध प्रज्ञप्त, ____ अध्वा पल्योपम के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जहा-सुहुमे य वावहारिए य॥ तद्यथा-- सूक्ष्मं च व्यावहारिक च। जैसे- सूक्ष्म और व्यावहारिक । ४२८. तत्थं णं जेसे सुहमे से ठप्पे । तत्र यत् तत् सूक्ष्म तत् स्थाप्यम्। ४२८. इनमें जो सूक्ष्म अध्वा पल्योपम है वह स्थापनीय है। [देखें सूत्र ४३१] । ४२६. तत्थ ण जेसे वावहारिए: से तत्र यत तद व्यावहारिकम तद ४२९. इनमें जो व्यावहारिक अध्वा पल्योपम है जहानामए पल्ले सिया-जोयणं यथानाम पल्य: स्यात् -- योजनम् वह इस प्रकार है - जैसे कोई कोठा एक योजन आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उडढं आयाम-विष्कम्भेण, योजनम् ऊर्ध्वम् लम्बा, चौड़ा, ऊंचा और कुछ अधिक तिगुनी उच्चत्तणं, तं तिगुणं सविसेसं उच्चत्वेन, तत् त्रिगुणं सविशेष परि- परिधि वाला है । वह पल्य-- परिक्खवेणं, से णं पल्ले -- क्षेपेण, स पल्य: गाथागाहा-- गाथा-- एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, १. एक, दो, तीन दिन यावत् उत्कृष्टतः एकाहिक-द्वयहिक-व्यहिकाणाम्, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । उत्कर्षेण सप्तरात्रप्ररूढानाम् । सात रात के बढ़े हुए करोड़ों बालानों से सम्मठे सन्निचिते, लूंस-ठूस कर घनीभूत कर भरा हुआ है। संमृष्ट: सन्निचितः, भरिए वालग्गकोडीणं ॥१॥ भृतः बालाग्रकोटिभिः ॥१॥ ते णं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा, वे बालान न अग्नि में जलते हैं, न हवा में तानि बालाग्राणि नो अग्निः नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, दहेत्, नो वायुः हरेत्, नो कुथ्येयुः, नो उड़ते हैं, न असार होते हैं, न विध्वस्त होते हैं और न दुर्गन्ध को प्राप्त होते हैं। उस कोठे से नो पलिविद्धंसज्जा, नो पूइत्ताए नो परिविध्वंस्येरन, नो पूतित्वेन 'हवं' सौ-सौ वर्ष के बीत जाने पर एक-एक बालाग्र हव्वमागच्छेज्जा। तओ णं वास- आगच्छेयुः। तत: वर्षशते-वर्षशते गते को निकालने से जितने समय में कोठा खाली, सए-वाससए गते एगमेगं वालग्गं एकैकं बालाग्रम् अपहृत्य यावता रज-रहित, निर्लेप और निष्ठित [अन्तिम रूप अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले कालेन स पल्यः क्षीणः नीरजा: निलेपः से खाली] होता है। वह व्यावहारिक अध्वा खोणे नीरए निल्लेवे निट्टिए भवइ। निष्ठित: भवति । तदेतद् ध्यावहारिकम् पल्योपम है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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