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________________ दसवां प्रकरण : सूत्र ४१८-४२४ गाहाएएस पलाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया । तं वावहारियस्स उद्धारसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥ २ ॥ ४२३. एएहिं बावहारियउद्धारपलि ओवम सागरोयमेहि कि ओषणं ? एएहि वावहारियउद्धारपलि ओवम सागरोवमेहिनस्थि किंचि प्पलोयणं केवलं पण्णवण पण्णविज्जति । से तं वावहारिए उद्धारपओिवमे || ४२४. से किं तं सुहुमे उद्धारपलिओवमे ? हमे उद्धारपलिओदमे से जहानामए पल्ले सिया जोयणं आयाम विक्संभेणं, जोयणं उड़ई उच्चत्तणं तं तिगुणं सविसेसं परिवर्ण से णं पल्लेगाहा एगाहिय बेयाहिय तेयाहिय, उक्को सेणं सत्तरत्तपरूढाणं । सम्म सनिचिते भरिए वालग्गकोडीणं ॥ १ ॥ तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाई खंडाई कज्जइ । ते णं वालग्गा दिट्ठोओगाहणाओ असं खेज्जइभागमेत्ता सुहमस्स पणगजीवस्स सरीरोगाहणाओ असं खेज्जगुणा ते णं बाल नो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो पलि विद्वंसेज्जा, नो पूदत्ताए हथ्यमागच्छेन्ना । तओ णं समए - समए एगमेगं बालग्गं अवहाय जाइए काले से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवद्द से तं सुहमे उद्धारपलि ओवमे । Jain Education International गाथाएतेषां पल्यानां कोटिकोटि भवेत् दगुणिता तद् व्यावहारिकस्य उद्धारसागरोपमस्य एकस्य भवेत् परीमानम् ॥२॥ एतं व्यावहारिकउद्वारपस्योपमसागरोपमे कि प्रयोजनम् ? एस व्यावहारिकउद्धारपत्योपम-सागरोपमः नास्ति किचित्प्रयोजनं, केवलं प्रज्ञापनार्थ प्राप्यते तदेतद्व्याव हारिकम् उद्धारपल्योपमम् । अथ किं तत् सूक्ष्मम् उद्धारपल्पोपमम् ? सूक्ष्मम् उद्धारपत्योपम तद् यथानाम पल्यः स्यात् योजनम् आपान विकरमेण योजनम् अम् उच्चत्वेन तत् त्रिगुणं सविशेषं परिक्षेपेण, स पल्यः गाथा एकाहिक - द्वयहिक व्यहिकानाम् उत्कर्षेण सप्तरात्रप्ररूढानाम् । संमृष्ट: सन्निचित: भृतः बालाप्रकोटिभिः ॥ १ ॥ तत्र एकैकस्प बालाग्रस्य असंख्येयानि खण्डानि क्रियन्ते । तानि बालाग्राणि दृष्ट् यवगाहनातः असंख्येयभागमात्राणि सूक्ष्मस्य पनकजीवस्य शरीरावगाहनात असंख्येयगुणानि । तानि बालाग्राणि नो अग्निः दहेत्, नो वायुः हरेत्, नो कुथ्येयुः, नो परिविध्वंस्येरन्, नो पूतित्वेन 'हवं' आगच्छेयुः । ततः समये समये एकैकं बालाग्रम् अपहृत्य यावता कालेन स पल्यः क्षीण: नीरजा: निर्लेपः निष्ठितः भवति । तदेतत् सूक्ष्मम् उद्धारपायोपमम् । For Private & Personal Use Only २५६ गाथा - २. इन दसकोडाकोड पल्यों से एक व्यावहारिक उद्धार सागरोपम होता है । ४२३. इन व्यावहारिक उद्धार पल्योपमों और सागरोपमों का क्या प्रयोजन है ? इन व्यावहारिक उद्धार पल्योपमों और सागरोपमों का कोई प्रयोजन नहीं है, केवल प्ररूपणा के लिए प्ररूपणा की जाती है । वह व्यावहारिक उद्धार पत्योपम है । ४२४. वह सूक्ष्म उद्धार पत्योपम क्या है ? सूक्ष्म उद्धार पल्योपम जैसे कोई कोठा एक योजन लम्बा, चौड़ा, ऊंचा और कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला है। वह पल्य गाथा १. एक, दो, तीन दिन यावत् उत्कृष्टतः सात रात के बढ़े हुए करोड़ों बालानों से ठूंस-ठूंस कर घनीभूत कर भरा हुआ है । इन बालाग्रों में से प्रत्येक बालाग्र के असंख्य खण्ड किए जाते हैं वे बालाग्र दृष्टि विषय में आने वाले पुद्गलों की अवगाहना के असंख्येय भाग मात्र और सूक्ष्म पनक जीव के शरीर की अवगाहना से असंख्य गुना अधिक हैं । वे बालाग्र न अग्नि से जलते हैं, न हवा में उड़ते हैं, न असार होते हैं, न विश्वस्त होते हैं और न दुर्गन्ध को प्राप्त होते हैं । उस कोठे से प्रत्येक समय में एकएक बालाग्र को निकालने से जितने समय में वह कोठा खाली रज-रहित, निर्लेप और निष्ठित [अन्तिम रूप से वाली] होता है वह सूक्ष्म उद्धार पल्योपम है । 1 www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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