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अणुओगदाराई
गणित का विषय है इसके बाद औपमिक काल प्रवृत्त होता है।
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चूलियंगे चूलिया, सीसपहेलियंगे अर्थनिकुरम्, अयुतांगम् अयुतं, नयुतांगं सीसपहेलिया। एतावताव गणिए, नयुतं, प्रयुतांगं प्रयुतं, चूलिकांगं एतावए चेव गणियस्स विसए, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांगं शीर्षप्रहेअतो परं ओवमिए।
लिका। एतावत्तावद् गणितम् एतावान् चव गणितस्य विषयः, अतः परम् औपमिकम् ।
४१८. से कि तं ओवमिए ? ओवमिए अथ किं तद् औपमिकम् ? औप-
दुविहे पण्णते, तं जहा-पलि- मिकं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथाओवमे य सागरोवमे य॥ पल्योपमं च सागरोपमं च ।
४१८. वह औपमिक क्या है ?
औरमिक के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-- पल्योपम और सागरोपम ।
४१६. से कि तं पलिओवमे ? पलि- अथ किं तत् पल्योपमम् ?
ओवमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा -- पल्योपमं त्रिविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथाउद्धारपलिओवमे अद्धापलिओवमे उद्धारपल्योपमम् अध्वापल्योपमं क्षेत्र. खेत्तपलिओवमे य॥
पल्योपमं च।
४१९. वह पल्योपम क्या है ?
पल्योपम के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेउद्धार पल्योपम, अध्वा पल्योपम और क्षेत्र पल्योपम ।
४२०.से कि तं उद्धारपलिओवमे? अथ कि तब उद्धारपल्योपमम् ?
उद्धारपलिओवमे दुविहे पण्णते, तं उद्धारपल्योपमं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा जहा सुहमे य वावहारिए य॥ -सूक्ष्मं च व्यावहारिकं च ।
४२०. वह उद्धार पल्योपम क्या है ?
उद्धार पल्योपम के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे सूक्ष्म और व्यावहारिक ।
४२१. तत्ण णं जेसे सुहमे से ठप्पे ।
सूक्ष्म तत्
तत्र यत् तत् स्थाप्यम्।
४२१. इनमें जो सूक्ष्म उद्धार पल्योपम है वह
स्थापनीय है। [देखें सूत्र ४२४] ।
गाहा
गाथा
४२२. तत्थ णं जेसे वावहारिए, से तत्र यत् तद् व्यावहारिकम् तद् ४२२. इनमें जो व्यावहारिक उद्धार पल्योपम है
जहानामए पल्ले सिया--जोयणं यथानाम पल्य: स्यात् योजनम् वह इस प्रकार है-जैसे कोई कोठा एक आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उडढं आयाम-विष्कम्मेण, योजनम् ऊर्वम् योजन लम्बा, चौड़ा, ऊंचा और कुछ अधिक उच्चत्तणं, तं तिगुणं सविसेसं उच्चत्वेन, तत् त्रिगुणं सविशेष परि- तिगुनी परिधि वाला है। वह पल्य--- परिक्खेवेणं; से ण पल्लेक्षेपेण; स पल्य:---
गाथाएगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, एकाहिक-द्वयहिक-यहिकाणाम्,
१. एक, दो, तीन दिन यावत् उत्कृष्टतः उक्केसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । उत्कर्षेण सप्तरात्रप्ररूढानाम् ।
सात रात के बड़े हुए करोड़ों बालानों से सम्मठे सन्निचिते, संमृष्टः सन्निचितः
डूंस-ठूस कर घनीभूत कर भरा हुआ है। भरिए वालग्गकोडीणं ॥१॥ भृत: बालाग्रकोटिभिः ॥१॥ ते णं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा, तानि बालाग्राणि नो अग्नि: दहेत्, वे बालाग्न न अग्नि से जलते हैं, न हवा से नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो वायुः हरेत्, नो कुथ्येयुः, नो परि- उड़ते हैं, न असार होते हैं, न विध्वस्त होते नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पूइत्ताए विध्वंस्येरन् नो पूतित्वेन 'हव्वं' हैं और न दुर्गन्ध को प्राप्त होते हैं। उस हव्वमागच्छेज्जा । तओ णं समए- आगच्छेयुः। ततः समये-समये एकक कोठे से प्रत्येक समय में एक एक बालाग्र समए एगमेगं बालग्गं अवहाय बालाग्रम् अपहृत्य यावता कालेन स को निकालने से जितने समय में वह खाली, जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे पल्यः क्षीणः नीरजाः निर्लेपः निष्ठितः रज रहित, निर्लेप और निष्ठित [अन्तिम नीरए निल्लेवे निट्रिए भवइ। से भवति । तदेतद् व्यावहारिकम् उद्धार- रूप से खाली होता है । वह व्यावहारिक तं वावहारिए उद्धारपलिओवमे। पल्योपमम् ।
उद्धार पल्योपम है।
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