SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दसवां प्रकरण सूत्र ४१६ ४१७ विसंवाद तम्हा से समए न भवइ । एत्तो वि य णं सुहुमतराए समए पण्णत्तं समणाउसो ! ४१७. असंखेज्जाणं समयाणं समुदयसमिति-समागमेणं सा एगा आव लिया त्ति बुच्चइ संखेज्जाओ आवलिया ऊसासो जाओ आवलियाओ नीसासो । सिलोगा हट्ठस्स अणवगल्लस्स, reafter जंतुणो । एगे तास-नोसासे, एस पाणु त्ति वुच्चइ ॥ १ ॥ सत्त पाणि से थोवे, सत्त योवाणि से लवे । लवाणं सतहत्तरिए, एस मुहुत्ते वियाहि ॥२॥ तस्मात् स समय: न भवति । एतस्माद् अपि सूक्ष्मतरक: समय: प्रज्ञप्तः आयुष्मन् श्रमण ! Jain Education International असंख्येयानां समयानां समुदयसमिति-समागमेन सा एका आवलिका इति उच्यते, संख्येयाः आवलिका: उच्छ्वासः, संख्येयाः आवलिकाः निःश्वासः । श्लोका हृष्टस्य अनवकल्यस्य, निरुपक्लिष्टस्य जन्तोः । एक: उच्छ्वास विश्वास: एष प्राणः इति उच्यते ॥१॥ सप्त प्राणाः स स्तोक:, सप्त स्तोकाः स लवः । लवानां सप्तसप्ततिः, एष मुहूर्त्तः व्याहृतः ॥ २॥ गाया गाहा तिथि सहस्सा सत्त प सयाई तेहत्तरि च ऊसासा । एस मुहूतो भणियो सम्बेहि अनंतनाणीहि ॥३॥ एएवं मुहत्तपमाणेणं तसं मुहुत्ता अहोरत्तं, पण्णरस अहोरत्ता पक्खो, दो पला मासो, दो मासा उऊ, तिरिण उऊ अयणं, दो अयणाई संच्छरे, पंच संवच्छराई जुगे, वीसं जुगाई वासस्यं, दस वाससयाई वाससहस्सं सयं वासस हस्ताणं वातसयस हस्से, चउरासीइं वाससहस्साइं से एगे पुव्वंगे, चउरा सोई बंगलसहरसा से एगे पुव्वे, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं से एगे तुडियंगे, चउरासी बुद्धि यंगस्य सहरसाई से एगे अडंगे, चउरासोई अडडंगसयसहस्साइं से एगे अडडे एवं अवयं अवये, हुहुयंगे हुए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे पउने, नलिणंगे नलिणे, अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे, अउयंगे अए उगे नए उगे पएमा त्रयः सहस्राः सप्त च, शतानि त्रिसप्ततिः च उच्छ्वासाः । एषः भणितः, सर्वे: अनन्तज्ञानिभिः ॥ ३ ॥ एतेन मुहूर्त्तप्रमाणेन त्रिशत् मुहूर्त्ताः अहोरात्रः, पञ्चदश अहो - रात्राः पक्षः, द्वौ पक्षौ मासः द्वौ मासो ऋतु, त्रय ऋतवः अयनं द्वे अयने संवत्सरः, पञ्च संवत्सराः युगं, विंशतिः युगानि वर्षशतं, दश वर्षशतानि वर्षसहस्रं शतं वर्षसहस्राणां वर्षशतसहस्रं चतुरशीतिः वर्षशतसहस्राणि तद् एकं पूर्वाङ्ग चतुरसीति पूर्वाङ्गाणि तद् एवं पूर्वं चतुरशीतिः पूर्वंशतसहस्राणि तद् एवं त्रुटितं चतुरशीतिः पुगि 1 ताणि तद् एवं त्रुटितं चतुर शीतिः त्रुटितशतसहस्राणि तद् एकम् अगं, चतुरशीति जगत सहस्राणि तद् एकम् अटटम् एवम् अथवा अर्थ हुकम् उत्पलाङ्गम् उत्पलं, पद्माङ्ग पद्म, नलिनम् अर्धनिशंगम् For Private & Personal Use Only २५७ होता । हे आयुष्मान् श्रमण ! समय इससे भी सूक्ष्मतर है।" ४१७. असंख्येय समयों के समुदय, समिति और समागम से एक आवलिका होती है। संख्येय आवलिकाओं का एक उच्छ्वास होता है । संख्येय आवलिकाओं का एक निःश्वास होता है। श्लोक १. हृष्ट, नीरोग और मानसिक क्लेश से मुक्त प्राणी का एक उच्छ्वास निःश्वास प्राण कहलाता है । २. सात प्राण का एक स्तोक, सात स्तोकों का एक लव और सतहत्तर लवों का एक मुहूर्त होता है । गाथा ३. तीन हजार सात सौ तिहत्तर [ ३७७३] उच्छ्वासों का एक महत होता है ऐसा सब अनन्तज्ञानियों ने कहा है । इस मुहूर्त्त प्रमाण से तीस मुहूर्त्त का एक दिन रात, पन्द्रह दिन रात का एक पक्ष, दो पक्ष का एक मास, दो मास की एक ऋतु, तीन ऋतु का एक अयन, दो अयन का एक संवत्सर, पांच संवत्सर का एक युग, बीस युग के सौ वर्ष दस सौ वर्ष के हजार वर्ष, सौ हजार वर्ष के लाख वर्ष, चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वाङ्ग, चौरासी लाख पूर्वाङ्गों का एक पूर्व, चौरासी लाख पूर्वो का एक त्रुटिताङ्ग, चौरासी लाख त्रुटिताङ्गों का एक त्रुटित, चौरासी लाख त्रुटितों का एक टटाङ्ग, चौरासी लाख अटटाङ्गों का एक अटट होता है। इसी प्रकार [पूर्वोक्त क्रम से ] अववांग, अवव, हुहुकांग, हुहुक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनाङ्ग, नलिन, अर्थनिकुराङ्ग, अर्थनिकुर, अयुताङ्ग, अयुत, नताङ्ग नत प्रयुता प्रता. चूलिका, शीर्षप्रहेलिकाङ्ग और शीर्षप्रहेलिका । यहां तक गणित है, यहां तक 1 " www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy