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अणुओगदाराई
२५६ तत्थ चोयए पण्णवयं एवं वयासी प्रज्ञापकम् एवम् अवादीत्-येन --जेणं कालेणं तेणं तुण्णागदार- कालेन तेन तुन्नवायदारकेण तस्याः एणं तीसे पडसाडियाए वा पट्टसा- पटशाटिकायाः वा पट्टशाटिकायाः वा डियाए वा सयराहं हत्थमेत्तं ओसा- 'सयराह' हस्तमात्रम् अपसारितम् रिए से समए भवइ ? नो इण- स समयः भवति ? नायमर्थः समर्थः । मठे समठे।
कम्हा? जम्हा संखेज्जाणं तंतुणं कस्मात् ? यस्मात् संख्येयानां समुदय-समिति-समागमेणं एगा तन्तूनां समुदय-समिति समागमेन एका पडसाडिया निष्फज्जइ, उवरिल्ल- पटशाटिका निष्पद्यते, उपरितने तन्तौ म्मि तंतुम्मि अच्छिण्णे हेटिल्ले ___ अच्छिन्ने अधस्तन: तन्तु: न छिद्यते, तंतू न छिज्जइ, अण्णम्मि काले अन्यस्मिन् काले उपरितन: तन्तुः उरिल्ले तंतू छिज्जइ, अण्णम्मि, छिद्यते, अन्यस्मिन् काले अधस्तनः काले हेदिल्ले तंतू छिज्जइ, तम्हा तन्तुः छिद्यते, तस्मात् स समय: न से समए न भवई। एवं वयंत ___ भवति । एवं वदन्तं प्रज्ञापकं चोदक: पण्णवयं चोयए एवं वयासी-जेणं एवम् अवादीत् येन कालेन तेन कालेणं तेणं तुण्णागदारएणं तीसे तुन्नवायदारकेण तस्याः पटशाटिकायाः पडसाडियाए वा पसाडियाए वा वा पट्टशाटिकायाः वा उपरितन: उवरिल्ले तंतू छिण्णे से समए ? न तन्तुः छिन्नः स समयः ? न भवति । भव।
वह युवा एक बड़ी पटशाटिका अथवा पट्टशाटिका को लेकर शीघ्र ही एक हाथ प्रमाण जितना वस्त्र फाड़ डालता है। यहां प्रेरक ने प्रज्ञापक से इस प्रकार कहाजितने समय में उस तुन्नवाय के पुत्र ने शीघ्र ही उस पटशाटिका या पट्टशाटिका को एक हाथ फाड़ डाला, क्या वह समय होता है ? ऐसा नहीं होता। क्यों ? __संख्येय तन्तुओं के समुदय, समिति और समागम से एक पटशाटिका तैयार होती है। उस शाटिका के ऊपर वाले तन्तु के छिन्न हुए बिना नीचे वाला तन्तु छिन्न नहीं होता ऊपर का तन्तु दूसरे समय में छिन्न होता है और नीचे का दूसरे समय में, इसलिए वह समय नहीं होता।
प्रज्ञापक के ऐसा कहने पर प्रेरक ने इस प्रकार कहा
जितने समय में उस तुन्नवाय के पुत्र ने उस पटशाटिका या पट्टशाटिका के ऊपर वाले तन्तु को छिन्न किया, क्या वह समय होता है ? नहीं होता।
क्यों?
संख्येय पक्ष्मों [सूत्र का सूक्ष्म भाग] के समुदय, समिति और समागम से एक तन्तु निष्पन्न होता है, ऊपर का पक्ष्म छिन्न हुए बिना नीचे का पक्ष्म छिन्न नहीं होता। ऊपर का पक्ष्म दूसरे समय में छिन्न होता है और नीचे का दूसरे समय में, इसलिए वह समय नहीं होता। प्रज्ञापक के ऐसा कहने पर प्रेरक ने इस प्रकार कहा-- जितने समय में उस तुन्नवाय के पुत्र ने उस तन्तु के ऊपर वाले पक्ष्म को छिन्न किया, क्या वह समय होता है ? नहीं होता। क्यों? ___ अनन्त संघातों के समुदय, समिति और समागम से एक पक्ष्म निष्पन्न होता है, ऊपर का संघात जब तक नहीं बिखरता तब तक नीचे का संघात भी नहीं बिखरता। ऊपर का संघात दूसरे समय में बिखरता है और नीचे का दूसरे समय में, इसलिए वह समय नहीं
कम्हा ? जम्हा संखेज्जाणं पम्हाणं कस्मात् ? यस्मात् संख्येयानां समुदय-समिति-समागमेणं एगे तंतू पक्ष्मणां समुदय-समिति-समागमेन निष्फज्जइ, उवरिल्ले पम्हे एकः तन्तुः निष्पद्यते, उपरितने अच्छिण्णे हेदिल्ले पम्हे न छिज्जइ, पक्ष्मणि अच्छिन्ने अधस्तनं पक्ष्म न अण्णम्मि काले उवरिल्ले पम्हे छिद्यते अन्यस्मिन् काले उपरितनं छिज्जइ, अण्णम्मि काले हेटिल्ले पक्ष्म छिद्यते, अन्यस्मिन् काले अधपम्हे छिज्जइ, तम्हा से समए न स्तनं पक्ष्म छिद्यते, तस्मात् स समयः भवइ । एवं वयंतं पणणवयं चोयए न भवति । एवं वदन्त प्रज्ञापक एवं वयासी ---जेणं कालेणं तेणं चोदक: एवम् अवादीत्ये न कालेन तुण्णागदारएणं तस्स तंतुस्स तेन तुम्नवायदारकेण तस्य सन्तोः उरिल्ले पम्हे छिण्ण से समए? उपरितनं पक्ष्म छिन्नम् स समय: ? न भवइ।
न भवति ।
कम्हा? जम्हा अणताणं संघायाणं कस्मात् ? यस्माद् अनन्तानां समुदय-समिति-समागमेणं एगे संघातानां समुदय-समिति-समागमेन पम्हे निष्फज्जइ, उवरिलले संघाए एक पक्ष्म निष्पद्यते, उपरितने संघाते अविसंघाइए हेदिल्ले संघाए न अविसंघातिते अधस्तन: संघात: न विसंघाइज्जइ, अण्णम्मि काले विसंघात्यते, अन्यस्मिन् काले उपउवरिल्ले संघाए विसंघाइज्जइ, रितन: संघात: विसंघात्यते अन्यस्मिन् अण्णम्मि काले हेटिल्ले संघाए काले अधस्तन: संघात: विसंघात्यते,
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