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मूल पाठ
कालप्यमाण-पदं
४१३. से कि तं कालप्यमाणे ? कालव्यमाणे बिहे पण तं जहा परसनिष्पणे व विभागनिष्कण्णे
य ॥
४१४. से कि तं परसनिष्कणे ? पएसनिष्फण्णे - एगसमपट्टिईए दुसमयट्ठिईए तिसमयईिए जाव दससमयईए संखेज्जसमय ट्ठिईए अलेक्जसमपट्टिईए से तं पएसनिष्कण्णे ||
४१५. से किं तं विभागनिष्कण्णे ? विभागनिष्कष्णे
गाहा
समयावलिय-मुहुत्ता, दिवस महोरत- पक्ख - मासा य । संवच्छर-जुग-पलिया, सागर-ओसप्पि परियट्टा || १ ||
४१६. से किं तं समए ? समयस्स णं परूवणं करिस्सामिसे जहानामए तुष्णागदारए सिया तरुणे बलवं जुग जुवा अध्यातं विरग्यत्वे
पाणि-पाय-पास पितरोपरिणते तलजमलजुल -परिपनिमबाहू चम्मेग-दु-मुट्टिय समाहत - निचित गत्तकाए उरस्सबलसमण्णागए लंघण-पवणजइण- वायामसमत्थे छेए दक्खे पत्तट्ठे कुसले मेहावी निउणे निउणसिप्पो गए एगं महत पडसाहियं वा पट्टसाहियं वा महाय सपराहं हत्थमेतं ओसारेण्जा ।
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दसवां प्रकरण
संस्कृत छाया
कालप्रमाण-पर्व
अथ कि तद् कालप्रमाणम् ? काप्रमाणं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा प्रवेशनिष्यन्नं च विभागनिष्यन्नं च ।
अथ fक तत् प्रदेशनिध्यम् ? प्रदेश निष्पन्नम् – एकसमयस्थितिक: द्विसमयस्थितिक त्रिसमयस्थितिक: यावत् दशसमयस्थितिक: संख्येयसमयस्थितिकः असंख्येयसमयस्थितिकः । तदेतत् प्रदेशनिष्पन्नम् ।
अब कि तद् विभागनिन ? विभागनिष्पन्नम् ..
गाथा
समयावलिका मुहर्त्ता,
दिवसम् अहोरात्र पक्ष-मासाश्च । संवत्सर-युगपत्याः, सागर-अवसपि परिवर्त्ताः ॥१ ॥
अथ किं सः समयः ? समयस्य प्ररूपणं करिष्यामि तद यथानाम तुम्नवायदारकः स्यात् तरुणः बलवान् गवान युवा आगात स्थिराग्रहस्तः पाणिपादपा पृष्ठान्तरपरि णतः तलय मलयुगल - परिघनिभबाहुः घटक-पटक समाहत-निचित गात्रकायः औरस्यबलसमन्वागत: लङ्घन-प्लवन - जवन व्यायामसमर्थ: छेकः दक्षः प्राप्तार्थः कुशल: मेधावी निपुण निपुणशिल्पोपगतः एकां महतीं पटशाटिकां वा पट्टाटिकां वा गृहीत्वा
मात्रम् अपसारयेत् । तत्र चोदक
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हिन्दी अनुवाद
कालप्रमाण-पद
४१३. वह काल प्रमाण क्या है ?
काल प्रमाण के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-प्रदेशनिष्पन्न, और विभाग निष्पन्न ।
४१४. वह प्रदेशनिष्पन्न क्या है ?
प्रदेशनिष्पन्न एक समय की स्थिति वाला, दो समय की स्थिति वाला, तीन समय की स्थिति वाला, यावत् दस समय की स्थिति वाला, संख्येय समय की स्थिति वाला और असंख्येय समय की स्थिति वाला । वह प्रदेशनिष्पन्न है ।
४१५. वह विभागनिष्पन्न क्या है ?
विभागनिष्पन्न - समय, आवलिका, मुहूर्त,
दिवस अहोरात्र, पक्ष, मास, संवत्सर, युग,
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पल्य, सागर, अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी और परिवर्त
४१७. वह समय क्या है ?
मैं समय की प्ररूपणा करूंगा जैसे कोई तुझा [रदार] का पुत्र है, वह तरुण, बलवान् युगवान, युवा, स्वस्थ और सधे हुए हाथों वाला है, उसके हाथ-पांव, पार्श्व, पृष्ठान्तर और ऊरू दृढ़ और विकसित हैं। सम श्रेणी में स्थित दो ताल वृक्ष और परिघा के समान जिसकी भुजाएं हैं। चर्मेष्टक, पाषाण, मुद्गर और मुट्टी के प्रयोगों से जिसके शरीर के पुट्ठे आदि सुदृढ़ हैं। जो आन्तरिक उत्साह बल से युक्त है। लंघन, प्लवन, धावन और व्यायाम करने में समर्थ है, छेक, दक्ष प्राप्तार्थ, कुशल, मेघावी निपुण और सूक्ष्म शिल्प से समन्वित है ।
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