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प्र० ६, सू० ४११, टि० १५
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प्रस्तुत प्रकरण में श्रेणीअंगुल और घनांगुल को लोक के प्रमाण के द्वारा स्पष्ट किया गया है। प्रमाणांगुल से निष्पन्न असंख्यात कोडाकोडी (१०००००००×१०००००००) योजनों की एक प्रदेशात्मक श्रेणी होती है । प्रतर को श्रेणी से गुणित करने पर लोक का प्रमाण बताया है । प्रस्तुत प्रकरण में घनांगुल का प्रमाण और लोक का प्रमाण एक समान है । लोक का प्रमाण ३४३ धन रज्जु है दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराएं इसमें एक मत हैं परन्तु लोक की आकृति के कारण गणित की प्रक्रिया में भिन्नता है ।
दिगम्बर- परम्परा -
दिगम्बर- परम्परा के अनुसार लोक का गाणितिक विवेचन निम्नोक्त है : (देखें चित्र नं. १ ) |
3.३५
3.52
चित्र नं० १
लोक के तीन परिमाणों (ऊंचाई, लम्बाई चौड़ाई) में से प्रथम परिमाण अर्थात् ऊंचाई १४ रज्जु है।' दूसरा परिमाण अर्थात् चौड़ाई सर्वत्र ७ रज्जु है । तीसरा परिमाण अर्थात् लम्बाई सारे लोक में समान नहीं है। लोक के विभिन्न स्थानों पर लोक की लम्बाई भिन्न-भिन्न है । उसको समझाने के लिए लोक के (ऊंचाई के प्रमाण से ) दो विभागों की कल्पना करनी चाहिए । अर्थात् लोक के दो भाग करने चाहिए, जिसमें से प्रत्येक भाग की ऊंचाई ७ रज्जु है । इन दो भागों में से प्रथम अधस्तन भाग (अधो लोक) नीचे (आधार पर) ७ रज्जु लम्बा है और ऊपर क्रमश: घटता घटता १ रज्जु है ।
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१. पि. १ / १४० से २०० के आधार पर ।
२. रज्जु जैन-खगोल शास्त्र के माप का नाम है। जिसका
विस्तारपूर्वक विवेचन 'विश्व प्रहेलिका' पृ. ११२ से १२३ में किया गया है।
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