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________________ २४४ अणुओगदाराई भवन प्रस्तट-भवनों के मध्यवर्ती अन्तराल भाग । नरक प्रस्तट--नरकों के मध्यवर्ती अन्तराल भाग।' कल्प-वैमानिक देवों के आवास । सौधर्म से अच्युत तक के स्वर्ग कल्प कहलाते हैं । विमान ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के आवास और यान विमान कहलाते हैं। टंक --एक दिशा में टूटा हुआ पर्वत । कूट-शिखर ।' शैल-मुंड पर्वत (शिखर रहित)।' परिधि-परिधि । शिखरी–शिखरवाले पर्वत ।' प्राग्भार-कुछ झुके हुए पर्वत ।' विजय --महाविदेह के क्षेत्रखण्ड । वक्षस्कार-गजदन्त के आकारवाले पर्वत । तत्त्वार्थवात्तिक ३।१० में वक्षस्कार के स्थान पर वक्षार शब्द मिलता है। वर्ष-क्षेत्र । वर्षधर पर्वत-क्षेत्रों की सीमा करनेवाले पर्वत । वेला-ज्वार की ऊंचाई और नीचाई। तोरण-प्रवेशद्वार । आयाम लम्बाई। विष्कम्भ चौड़ाई। उच्चत्व-ऊंचाई। उव्वेह-गहराई। सूत्र ४११ १५. (सूत्र ४११) प्रमाणांगुल श्रेणीअंगुल प्रतरअंगुल घनअंगुल अंगल से क्षेत्र को मापा जाता है। अंगुल के तीन प्रकार हैं उत्सेधांगुल, आत्मांगुल और प्रमाणांगुल । १००० उत्सेधांगुल का एक प्रमाणांगुल होता है । प्रमाणांगुल से द्वीप, समुद्र, लोक आदि की लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई, गहराई और परिधि नापी जाती है । प्रमाणांगुल के तीन भेद हैं-श्रेणीअंगुल, प्रतरांगुल और घनांगुल। श्रेणी से श्रेणी को गुणित करने से प्रतरांगुल का प्रमाण आता है। गणित की भाषा में श्रेणी का वर्ग प्रतर होता है। प्रतर को श्रेणी से गुणित करने पर घनांगुल का प्रमाण आता है। गणित की भाषा में श्रेणी का घनफल घनांगुल का प्रमाण होता है । श्रेणीxश्रेणी xश्रेणी श्रेणी । दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है श्रेणी का धन धनांगुल का प्रमाण होता है और घनांगुल का घनमूल श्रेणी अंगुल का प्रमाण होता है। १. अमव. प. १५९ : 'पातालाणं' ति पातालकलशानां । 'भवणाणं' ति भवनपत्यावासादीनां । 'भवणपत्थडाणं' ति भवनप्रस्तटा नरकप्रस्तटान्तरे तेषां । 'निरयपत्थडाणं' ति... नरकप्रस्तटानाम् । २. (क) अहावृ.पृ.८२ : टंका-छिन्नटकानि । (ख) अमवृ. प. १५९ । ३. (क) अहावृ.पृ.८२ : रत्नकूटादयः कूटाः । (ख) अमवृ. प. १५९ । ४. (क) अहाव. पृ. ८२ : शैलाः मुंडपर्वताः । (ख) अमवृ. प. १५९ । ५. (क) अहाव, पु. ८२ : शिखरवन्तः शिखरिणः । (ख) अमवृ. प. १५९ । ६. (क) अहावृ. पृ. ८३ : प्राग्भारा ईषदवनता। (ख) अमवृ. प. १५९ । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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