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प्र० ६, सू० ४०८, टि० १३,१४
१२ कोटि-क १ को २ से को ३
क २ =को ३ से को ६
क ३को ६ से को ७
को
क ४=को ७ से को २
क ५ को १ से को ४
क ६ को ४ से को ५ क ७ = को ५
से को
क कोसे को १
क ९ को १ से को २
क १० को ४ से को ३
क ११= को ५ से को ६ क १२ को ८ से को ७
क
कोर
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あし
त
आठ कोण
क
त
काकणी रत्न
१. (क) अहाबू. पृ. ८२ काण्डानि रत्नकाण्डादीनि ।
(ख) अमवृ. प. १५९ ।
क
क
क १२॥
कोट
को
त १
१४. ( सूत्र ४१० )
प्रस्तुत सूत्र में प्रमाणांगुल के प्रयोजन का निर्देश किया गया है। शब्द विमर्श
पाताल -- लवणसमुद्र में विद्यमान कलशाकार रसातल । भवन - भवनपति देवों के आवास ।
सूत्र ४१०
पृथ्वी - रत्नप्रभा आदि सात पृथ्वियां जो नरक कहलाती हैं। काण्ड - भूखण्ड, विभाग ।
को ४
क३
क१०
तह
को३
(इस स्थापना में 'क' कोटी का सूचक है)
क
को १ = सामने तल के ऊपर बाएं को २ = सामने तल के नीचे बाएं को ३= सामने तल के नीचे दाएं को ४= सामने तल के ऊपर दाएं
को ५= पीछे तल के ऊपर दाएं
को ६= पीछे तल के नीचे दाएं
को ७ पीछे तल के नीचे बाएं
को
पीछे तल के ऊपर बाएं
afe
तर
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कर
को
कर
को
६ तल
-त १ = सामने त २= दाएं
त ३ = पीछे
त ४= बाएं
त ५= ऊपर
त ६= नीचे
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