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________________ २४२ अणुओगदाराई सूत्र ४०८ १३. (सूत्र ४०८) प्रमाणांगुल की लम्बाई उत्सेधांगुल से ४०० गुना अधिक है। उसकी चौड़ाई उत्सेधांगुल से २३ गुना अधिक है। ४०० को २३ से गुणित करने पर १००० होता है। इसे समझने के लिए ४०० अंगुल लम्बी और एक अंगुल चौड़ी श्रेणी की कल्पना करें। एक ऐसी ही दूसरी श्रेणी की कल्पना करें, तीसरी श्रेणी लम्बाई में इतनी ही है पर चौड़ाई में अर्ध अंगुल है अतः उसकी लम्बाई ४०० से आधी २०० अंगुल की हो जाती है। इन तीनों श्रेणियों को एक साथ व्यवस्थापित करने पर उत्सेधांगुल से हजार अंगुल लम्बी और एक अंगुल चौड़ी श्रेणी बन जाती है वह प्रमाणांगुल के नाम से पहचानी जाती है। उक्त परिकल्पना के आधार पर प्रमाणांगुल को उत्सेधांगुल से सहस्रगुना बड़ा बताया गया है। वास्तव में वह ४०० गुना बड़ा है। भगवान महावीर का शरीर उत्सेधांगुल से सात हाथ प्रमाण था। एक हाथ में २४ उत्सेधांगुल होते हैं। इसलिए ७ हाथ के उत्सेधांगुल २४x७-१६८ हुए। १ उत्सेधांगुल-भ० महावीर का अंगुल । १६८ उत्सेधांगुल-१६८४१ = ८४ अंगुल भ० महावीर का शरीर आत्मांगुल यानी भगवान महावीर के अंगुल से ८४ अंगुल याने ३३ हाथ का था। ८४-२४-३३ हाथ । एक मत यह है कि भगवान का शरीर अपने आत्मांगुल से ४३ हाथ अर्थात् २४४४६० १०८ अंगुल का था। इस मत के अनुसार भगवान महावीर का १ अंगुल उत्सेधांगुल ११ के बराबर था। १०८ आत्मांगुल-१६८ उत्सेधांगुल १ आत्मांगुल=48516-११ टीका के अनुसार एक मान्यता यह है कि भगवान महावीर का शरीर अपने अंगुल से ५ हाथ याने २४४५=१२० अंगुल का था। १२० आत्मांगुल=१६८ उत्सेधांगुल १ आत्मांगुल-१६१-५=१३ उत्सेधांगुल इस दृष्टि से भगवान महावीर का १ आत्मांगुल उत्सेधांगुल १३ के बराबर था : टीकाकार कहते हैं इन तीन मान्यताओं में पहली मान्यता के अनुसार भगवान महावीर का १ आत्मांगुल २ उत्सेधांगुल के समान होता है। इस अपेक्षा से अंगुल का प्रमाण समझना चाहिए। उत्सेधांगुल को हजार गुना करने पर एक प्रमाणांगुल होता है इसका न्याय क्या है ? इसका समाधान चूर्णिकार और टीकाकार इस प्रकार देते हैं ___ भरत चक्रवर्ती का एक आत्मांगुल एक प्रमाणांगुल के समान होता है। भरत चक्रवर्ती का शरीर अपने आत्मांगुल से १२० अंगुल था। उत्सेधांगुल से भरत चक्रवर्ती ५०० धनुष के थे। एक धनुष ९६ अंगुल के समान होता है। ५०० धनुष के ४८००० अंगुल होते हैं-१ धनुष-९६ अंगुल, ५०० धनुष-५००४९६-४८००० अंगुल। भरत चक्रवर्ती आत्मांगुल (प्रमाणांगुल) से १२० अंगुल के थे और उत्सेधांगुल से ४८००० अंगुल के थे। इसलिए १ प्रमाणांगुल ४८००० १२० = ४०० अंगुल का होता है। प्रमाणांगुल का बाहल्य (मोटाई) २३ अंगुल का था । इसलिए ४००४ २३% १००० अंगुल हो गए । १००० उत्सेधांगुल का १ प्रमाणांगुल माना है वह बाहल्य की अपेक्षा से है।' शब्द विमर्श काकिणी रत्न काकिणी प्राचीन सिक्के की संज्ञा है। भरत चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में काकिणी रत्न का उल्लेख मिलता है। प्राप्त विवरण के अनुसार इसका संस्थान इस प्रकार बनता है। देखें, ग्राफ१. (क) अहावृ. पृ. ८१। २. उसुजं ३।९२। (ख) अमवृ. प. १५८, १५९ । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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