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प्र०९, सू० ३९३-४०२, टि०९-१२
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सूत्र ३९६-३९८ ११. (सूत्र ३६६-३६८)
परमाणु के दो प्रकार बतलाए गए हैं१. सूक्ष्म अथवा नैश्चयिक परमाणु । २. व्यावहारिक परमाणु ।
व्यावहारिक परमाणु अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं के संयोग से बनता है। इसलिए वास्तव में वह अनन्त प्रदेशी स्कन्ध है किन्तु सूक्ष्मता के कारण उसे परमाणु कहा गया है। यह व्यावहारिक परमाणु ही क्षेत्र प्रमाण का आदि कारण बनता है। जैसा कि सूत्र ३९९ में लिखा है "तं परमाणु सिद्धा, वयंति आई पमाणाणं ।" शार्ङ्गधर संहिता में (पृ. ४) परमाणु की जो परिभाषा उपलब्ध है वह बहुत स्थूल है
जालान्तरगते भानौ यत्सूक्ष्मं दृश्यते रजः ।
तस्य त्रिंशत्तमो भागः परमाणु: स कथ्यते ।। मकान के ऊपर की जाली के छोटे-छोटे छिद्रों द्वारा सूर्य की किरणावलियों के समुदाय में जो बहुत ही सूक्ष्म कण दिखाई देते हैं - उस एक कण के ३०वें भाग को परमाणु कहा जाता है।
व्यावहारिक परमाणु तलवार आदि शस्त्रों के द्वारा अच्छेद्य, अभेद्य, अग्नि के द्वारा अदाह्य, जल में रहकर भी अनाई और सड़ान से परे हैं। वर्तमान में वैज्ञानिकों ने परमाणु को तोड़ा है। जैन दर्शन का अभिमत है कि परमाणु अविभाज्य है उसे तोड़ा नहीं जा सकता। इन दोनों अवधारणाओं में विरोधाभास प्रतीत होता है। इस विरोध में समन्वय का सूत्र खोजा जा सकता है। सूक्ष्म अथवा नैश्चयिक परमाणु निरवयव होने के कारण अविभाज्य है, उसे तोड़ा नहीं जा सकता है। किन्तु व्यावहारिक परमाणु सावयव है इसलिए उसे तोड़ना संभव हो सकता है। यहां सुतीक्ष्ण शस्त्र के द्वारा छेदन भेदन का निषेध किया गया है यह तत्कालीन शस्त्रों की अपेक्षा से किया गया है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने जिन सुतीक्ष्ण उपकरणों का निर्माण किया है उससे उसका भेदन भी हो सकता है।
सूत्र ४०१, ४०२ १२. (सूत्र ४०१, ४०२)
शरीर की अवगाहना उत्सेधांगुल से मापी जाती है। पांच स्थावर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यभाग मात्र बतलाई गई है। किन्तु अंगुल का असंख्यभाग सदृश नहीं है । जैसे--
० अनन्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों के शरीर एक सूक्ष्म वायुकायिक जीव का शरीर । • असंख्य सूक्ष्म वायुकायिक जीवों के शरीर-एक सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव का शरीर । . असंख्य सूक्ष्म तेजस्कायिक जीवों के शरीर एक सूक्ष्म अप्कायिक जीव का शरीर । ० असंख्य सूक्ष्म अप्कायिक जीवों के शरीर एक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव का शरीर । • असंख्य सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के शरीर एक बादर वायुकायिक जीव का शरीर । . असंख्य बादर वायुकायिक जीवों के शरीर-एक बादर तेजस्कायिक जीव का शरीर। ० असंख्य बादर तेजस्कायिक जीवों के शरीर एक बादर अप्कायिक जीव का शरीर । ० असंख्य बादर अप्कायिक जीवों के शरीर-एक बादर पृथ्वीकायिक जीव का शरीर ।'
भवधारणीय शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यभाग मात्र बतलाई गई है। यह नारकी जीवों की उत्पद्यमान अवस्था की अपेक्षा से है । उसके पश्चात् वह बढ़ जाती है।
१. भवधारणीय-जन्म-काल से जीवन पर्यन्त रहने वाला शरीर ।
२. उत्तरवैक्रिय-निर्माण शरीर । प्रयोजनवश वैक्रिय शक्ति द्वारा निर्मित शरीर। (क) भ. १९३३ ।
२. अहावृ. पृ. ८०: नारकाणां जघन्या भवधारणीयशरीराव(क) अहाव. पृ. ८० : पृथिवीकायिकादीनां त्वंगुलासंख्येय
गाहना अंगुलासंख्येयभागमात्रा उत्पद्यमानावस्थायाम् । भागमात्रतया तुल्यायामप्यवगाहनायां विशेषः । वणऽणंतसरीराण एगाणिलसरीरगपमाणेण । अणलोदगपुढवीणं असंखगुणिया भवे वुड्ढी ॥
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