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सूत्र ३९२, ३९४
२. (सूत्र ३९२, ३२४ )
सूची अंगुल -
एक अंगुल लम्बी आकाश प्रदेश की रेखा, जिसकी चौड़ाई और मोटाई दोनों एक आकाश प्रदेश जितनी ही हो, उसे सूची अंगुल कहते हैं। सूनी अंगुरखात्मक होता है
प्रतर अंगुल --
एक अंगुल लम्बी और एक अंगुल चौड़ी तथा एक आकाश प्रदेश जितनी मोटाई वाली समचतुरस्र आकृति प्रतर अंगुल है । यह तलात्मक होता है। सूची अंगुल एक ही आयाम (dimention) में फैला हुआ होता है। सूची अंगुल से गुणन करने पर प्रतर अंगुल प्राप्त होता है। इस प्रकार प्रतर अंगुल (सूची अंगुल) (सूची अंगुल) - ( सूची अंगुल)' सूची अंगुल के वर्ग को प्रतर अंगुल कहते हैं । देखें स्थापना
- X
घन अंगुल
एक अंगुल लम्बी, एक अंगुल चौड़ी और एक अंगुल मोटाई वाली घन आकृति घन अंगुल कहलाता है। यह घनात्मक होता है, यह तीनों आयामों में फैला हुआ होता है । प्रतर अंगुल को सूची अंगुल से गुणा करने पर घन अंगुल प्राप्त होता है । इस प्रकारघन अंगुल = ( प्रतर अंगुल) X ( सूची अंगुल) = (सूची अंगुल ) " सूची अंगुल के घन को घन अंगुल कहते हैं। देखें स्थापना
अणुओगवाराई
आकाश प्रदेश की संख्या की अपेक्षा से सूची अंगुल से प्रतर अंगुल असंख्यात गुणा तथा घन अंगुल प्रतर अंगुल से असंख्यात गुणा होता है ।
सूत्र ३६५
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१०. (सूत्र ३६५ )
उत्सेधांगुल की कारण सामग्री
प्रस्तुत सूत्र में उत्सेधांगुल को अनेक प्रकार का कहा गया है किन्तु वास्तव में उसके प्रकार अनेक नहीं हैं । इस विरोधाभास को चूर्णिकार ने समाहित किया है।' उनके अनुसार उत्सेधांत की कारण सामग्री अनेक प्रकार की होती है इसलिए उत्सेधांगुल अनेक प्रकार का होता है। हरिभद्र सूरि के अनुसार कारण में कार्य का उपचार कर उत्सेधांगुल को अनेक प्रकार का कहा गया है।'
१. अचू. पृ. ५४ : नो भणामो उस्सेहंगुलमणेगविधं, किन्तु उस्सेहंगुलस्य कारणं अणेगविधं पण्णत्तं ।
२. अहावृ. पृ. ७९ : उच्छु कारणापेक्षा करणे कार्योपचारानेकविधं प्रज्ञप्तम् ।
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