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________________ प्र०६, सू० ३६२, टि०८ २३७ ४ माषक-१ शाण ३ माषा २ शाण-१ कोल ६ माषा (३ तोला) २ कोल-१ कर्ष १ तोला २ कर्ष-१ शुक्ति २ तोला २ शुक्ति-१ पल ४ तोला २ पल-१ प्रसृत ८ तोला २ प्रसृत-१ कुडव १६ तोला २ कुडव-१ शराव ३२ तोला २ शराव-१ प्रस्थ ६४ तोला ४ प्रस्थ-१ आढक ३ सेर १६ तोला ४ आढक-१ द्रोण १२ सेर ६४ तोला २ द्रोण - १ सूर्प २५ सेर ४८ तोला २ सूर्प-१ द्रोणी ५१ सेर १६ तोला ४ द्रोणी-१ खारी २०४ सेर ६४ तोला २००० पल-१ भार १०० सेर १०० पल-१ तुला ५सेर सूत्र ३९२ ८. (सूत्र ३९२) योजन का प्रमाण सदा एक जैसा नहीं होता । वह बदलता रहता है। मगध, कलिंग आदि प्राचीन देशों में योजन का माप भिन्न-भिन्न होता है । केवल योजन ही नहीं आत्मांगुल के विषयभूत सभी द्रव्यों का प्रमाण सामयिक होता है। इसलिए प्राचीन मान को वर्तमान के माप से नहीं मापा जाता। शब्द विमर्श अवट-कुआ। तडाग--खोदा हुआ जलाशय।' वापी-चतुष्कोण जलाशय। पुष्करिणी गोलाकार जलाशय, पुष्कर (कमल) युक्त जलाशय।' दीधिका-जिसमें से जल की प्रणालिकाएं निकलती हों वह ऋजु जलाशय । गुजालिका-जिसमें से जल की प्रणालिकाएं निकलती हों वह वक्र जलाशय। सर-नैसर्गिक जलाशय । बांध । सरपंक्तिका--पंक्तिबद्ध नैसर्गिक जलाशय । सरसरपंक्तिका-ऐसे पंक्तिबद्ध जलाशय जिनका पानी एक दूसरे में अभिसरण करता है। इनमें से प्रत्येक में कपाट की व्यवस्था होती है, कपाट खोलने पर पानी आगे चला जाता है। १. अमव. प. १४६ : अवट: कपः। तडाग:-खानितो (ख) अहावृ. पृ. ७८। जलाशयविशेषः । (ग) अमव. प. १४६ । २. (क) अचू. पृ. ५३ : वावी चतुरस्सा । ५. (क) अचू. पृ. ५३ : बंका गुंजालिया। (ख) अहावृ. पृ. ७८ । (ख) अहावृ. पृ. ७८ (ग) अमवृ. प. १४६ । (ग) अमवृ. प. १४६ । ६. अमव. प. १४६ : सरः-स्वयंसम्भूतो जलाशयविशेषः । ३. (क) अचू. पृ.५३ वृत्ता पुक्खरिणी पुष्करसंभवातो वा। ७. अमवृ. प. १४६ : पङिक्तभिर्व्यवस्थापितानि सरांसि सरपङ्क(ख) अहाव. पृ. ७८ । तयः । यासु सर:पङि क्तष्वेकस्मात्सरसोज्यत्र ततोऽपि (ग) अमवृ. प. १४६ । अन्यत्र कपाटसञ्चारकेनोदकं संचरति ता: सर:सर:४. (क) अचू. पृ. ५३ : सारणी रिज़ दीहिया। पतयः । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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