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अणुओगदाराई अनुयोगद्वार के अनुसार अर्द्धभार में एक हजार पचास पल होते हैं। चरक मान के अनुसार १०५० पल के ६५.६२ सेर होते हैं।' मागधमान के अनुसार १०५० पल के ५२.५ सेर होते हैं।' आधुनिक मान के अनुसार एक सेर में ९२८ ग्राम होते हैं । अतः आधुनिक मान में परिवर्तित करने पर चरकोक्त मान के अनुसार अर्धभार में ६५.६२ सेर=६०.८९५ कि. ग्राम होता है और मागधमान के अनुसार ५२.५ सेर=४८.६२० कि. ग्राम होता है।
सूत्र ३८० ५. (सूत्र ३८०) अवमान प्रमाण
दण्ड, धनुष, युग, नलिका, अक्ष और मूसल-ये छह मानवाची शब्द हैं। छहों शब्द चार हाथ के नाप में प्रयुक्त हैं पर इनका उपयोग भिन्न-भिन्न वस्तुओं के नाप के लिए किया जाता है, जैसे ---वास्तु (भूमि) को हाथ के द्वारा, खेत को दण्ड के द्वारा, मार्ग को धनुष के द्वारा और खाई या गड्ढे को नालिका के द्वारा नापा जाता है।'
सूत्र ३८९ ६. (सूत्र ३८६)
अंगुल माप का एक प्रकार है। उसके तीन प्रकार बतलाए गए हैं -१. आत्मांगुल २. उत्सेधांगुल ३. प्रमाणांगुल । आत्मांगुल सामयिक होता है । वह समान नहीं होता। वह कभी छोटा व कभी बड़ा हो सकता है। उत्सेधांगुल और प्रमाणांगुल-ये दो निश्चित मापक हैं।
उत्सेधांगुल के लिए द्रष्टव्य-सूत्र ३९५ से ३९९ तक। प्रमाणांगुल के लिए द्रष्टव्य-सूत्र ४०८ । अनुसंधान के लिए देखें सूत्र ४०८ का टिप्पण।
सूत्र ३९० ७. (सूत्र ३६०)
आत्मांगुल के प्रसङ्ग में सूत्रकार ने पुरुष के दो वर्गीकरण किए हैंपहला वर्गीकरण१. प्रमाण युक्त
२. मानयुक्त
३. उन्मानयुक्त । दूसरा वर्गीकरण१. उत्तम पुरुष २. मध्यम पुरुष
३. अधम पुरुष । अपनी अंगुल से १२ अंगुल का मुख और ९ मुख जितना [१०८ अंगुल वाला] पुरुष प्रमाणपुरुष होता है।' १. द्रोणिक पुरुष मानयुक्त कहलाता है। सारयुक्त पुद्गलों से निर्मित होने से अर्धभार (५२ सेर) वजन वाला पुरुष उन्मान युक्त कहलाता है।'
प्रस्तुत सूत्र के अनुसार उत्तम पुरुष की ऊंचाई १०८ अंगुल, मध्यम पुरुष की १०४ अंगुल और अधम पुरुष की ९६ अंगुल मानी गयी है।
कुछ समाज-मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के आधार पर यह प्रतिपादित किया है कि नेता का कद, शारीरिक वजन, वेशभूषा और रंगरूप ये सब नेतृत्व के सहायक गुण हैं । १. शासं. १०।
(ग) अमवृ. प. १४४। २. वही, ११ ।
६. (क) अचू. पृ. ५२ : दोणीए जलवोणभरणरेयणमाणुवलं३. अचू. पृ.५१
___भाओ माणजुत्ते भवति । ४. अहावृ. पृ. ७७ : तत्रात्मांगुलं प्रमाणानवस्थितेरनियतं,
(ख) अहावृ. पृ. ७७। उच्छ्यांगुलं त्वंगलं परमाण्वादिक्रमायातमवस्थितं, उस्सेहं
(ग) अमवृ. प. १४४। गुलाओ य कागणीरयणमाणमाणीतं, तओवि वद्धमाण- ७. (क) अचू. पृ. ५२: वइरमिव सारपोग्गलोवचियदेहे सामिस्स अद्धंगुलप्रमाणं, ततो य पमाणाओ जस्संगुलस्स
तुलारोविते अद्धभारुम्मिते ओमाणजत्ते भवति । पमाणमाणिज्जति तं पमाणांगुलं ।
(ख) अहावृ. पृ. ७७। ५. (क) अचू. पृ. ५२।
(ग) अमवृ. प. १४४॥ (ख) अहावृ. पृ. ७७।
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