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________________ प्र०९, सू० ३६६-३७८, टि०१-४ २३३ असृति प्रसृति ८ पल धान्यमान प्रमाण= एक पल = चार तोला - दो पल = आठ तोला सेतिका = चार पल = सोलह तोला कुडव = सोलह पल = चौसठ तोला प्रस्थक = चौसठ पल = दो सौ छप्पन तोला = ३५ सेर आढक = दो सौ छप्पन पल = एक हजार चौबीस तोला = १२३ सेर द्रोण (४ आढक) = एक हजार चौबीस पल = चार हजार छियानवे तोला = १ मन १११ सेर जघन्य कुम्भ (६० आढक) = पन्द्रह हजार तीन सौ साठ पल = इकसठ हजार चार सौ चालीस तोला = १९ मन ८ सेर मध्यम कुम्भ (८० आढक) = बीस हजार चार सौ अस्सी पल = इक्यासी हजार नौ सौ बीस तोला = २५ मन २४ सेर उत्कृष्ट कुम्भ (१०० आढक) = पच्चीस हजार छह सौ पल = एक लाख दो हजार चार सौ तोला = ३२ मन वाह (८०० आढक) = दो लाख चार हजार आठ सौ पल = आठ लाख उन्नीस हजार दो सौ तोला= २५६ मन रसमान प्रमाणचतुःषष्टिका माणी का चौसठवां भाग १६ तोला द्वात्रिंशिका माणी का बत्तीसवां भाग ३२ तोला षोडशिका १६ पल माणी का सोलहवां भाग ६४ तोला अष्टभागिका ३२ पल माणी का आठवां भाग १२८ तोला (१३ सेर) चतुर्भागिका ६४ पल ___= माणी का चौथा भाग २५६ तोला (३१ सेर) अर्धमाणी १२८ पल = माणी का आधा भाग ५१२ तोला (६३ सेर) माणी = २५६ पल = १०२४ तोला (१२६ सेर) द्रष्टव्य सूत्र ६१४ सूत्र ३७८ ४. (सूत्र ३७८) ऊर्ध्वमानं किलोन्मानं, परिमाणं तु सर्वतः । आयामस्तु प्रमाणं स्यात्, संख्या बाह्या हि सर्वतः ।। शब्दशास्त्र में उद्धृत इस श्लोक के अनुसार उन्मान का अर्थ है-ऊंचाई का माप । प्रस्तुत आगम में उन्मान के प्रकार और उन्मान प्रमाण के प्रयोजन की चर्चा की गई है। उसके अनुसार उन्मान प्रमाण का व्यवहार तौलने के लिए होता है। सामुद्रिक शास्त्र उन्मान शब्द के अर्थ में ऊंचाई, चौड़ाई और परिधि पर विचार करते हैं। वे आयाम और प्रमाण को उन्मान का पर्याय मानते हैं । वहां उन्मान को इस प्रकार परिभाषित किया गया है आपाणितलशिरोऽन्तं, यदिह वपुर्मीयते प्रकर्षेण । प्रवदन्ति तत्प्रमाणं, केप्यायामं पुन: प्राहुः ।। पदतल से लेकर शीर्ष पर्यन्त जो शरीर का नाप है उसे प्रमाण या आयाम कहते हैं।' प्रस्तुत सूत्र में वर्णित उन्मान प्रमाण को निम्न तालिका से समझा जा सकता हैअर्धकर्ष आधा तोला कर्ष एक तोला अर्धपल दो तोला पल चार तोला अर्धतुला दो सौ दस तोला (२१ सेर) तुला चार सौ बीस तोला (५३ सेर) अर्धभार चार हजार दो सौ तोला (१ मन १२१ सेर) भार आठ हजार चार सौ तोला (२ मन २५ सेर) १. ज्योटा. अक्टू. १९७३, पृ.१९-२३ । ।।।।।।।। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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