SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२८ अणुओगदाराई ३६६. अणंताणं वावहारियपरमाणु- अनन्तानां व्यावहारिकपरमाणु- ३९९. अनन्त व्यावहारिक परमाणुपुदगलों के समु पोग्गलाणं समुदय-समिति-समाग- पुद्गलानां समुदय-समिति-समागमेन दय, समिति और समागम से एक उत्श्लक्ष्णमेणं सा एगा उसण्हसण्डिया इ सा एका उत्श्लक्ष्णश्लक्षिणका इति वा, श्लक्षिणका, श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका, ऊर्ध्व रेणु, त्रसवा, सण्हसण्डिया इवा, उड्ढरेणू श्लक्ष्णश्लक्षिणका इति वा, ऊर्ध्वरेणुः रेणु, रथरेणु (बालाग्र, लिक्षा, यूका, यवइवा, तसरेणू इ वा, रहरेण इ इति वा, त्रसरेणुः इति वा, रथरेणुः मध्य और अंगुल) होता है। वा, (वालग्गे इ वा, लिक्खा इ वा, इति वा (बालानम् इति वा, लिक्षा आठ उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका की एक श्लक्ष्णजया इवा, जवमझे इ वा, अंगुले इति वा, यूका इति वा यवमध्यः इति श्लक्ष्णिका, आठ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका का एक इवा?)। अटू उसण्हसण्हियाओ वा, अंगुलः इति वा ?)। अष्ट ऊर्ध्वरेणु, आठ ऊर्वरेणु का एक त्रसरेणु, सा एगा सहसण्हिया, अट्ठ सह- उत्श्लक्ष्णश्लक्षिणकाः सा एका श्लक्ष्ण- आठ त्रसरेणु का एक रथ रेणु, आठ रथरेणु सण्हियाओ सा एगा उड्ढरेण, अट्ठ ___श्लक्षिणका, अष्ट श्लक्ष्णश्लक्षिणकाः का देवकुरु और उत्तरकुरु के मनुष्यों का उड्रेणओ सा एगा तसरेणू, अट्ठ सा एका उर्ध्वरेणुः, अष्ट उर्ध्वरेणवः एक बालाग्र, देवकुरु और उत्तरकुरु के तसरेणओ सा एगा रहरेण, अट्ट सा एका त्रसरेणुः, अष्ट त्रसरेणव: मनुष्यों के आठ बालाग्र का हरिवर्ष और रहरेणओ देवकुरु-उत्तरकुरुगाणं सा एका रथरेणः, अष्ट रथरेणव: रम्यवर्ष के मनुष्यों का एक बालाग्र, मणस्साण से एगे वालग्गे, अट्ट देवकुरु-उत्तरजानां मनुष्याणां तदेक हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष के मनुष्यों के देवकुरु-उत्तरकुरुगाणं मणुस्साणं बालाग्रम्, अष्ट देवकुरु-उत्तरकुरु- आठ बालाग्र का हैमवत और हैरण्यवत के वालग्गा हरिवास-रम्मगवासाणं जानां मनुष्याणां बालाग्राणि हरिवर्ष- मनुष्यों का एक बालाग्र, हैमवत और हैरण्यवत मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ट रम्यकवर्षाणां मनुष्याणां तदेक के मनुष्यों के आठ बालान का पूर्व विदेह और हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं बालानम्, अष्ट हरिवर्ष- अपरविदेह के मनुष्यों का एक बालान, पूर्ववालग्गा हेमवय-हेरण्णवयाणं रम्यकवर्षाणां मनुष्याणां बालाग्राणि विदेह और अपरविदेह के मनुष्यों के आठ मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ट हैमवत-हैरण्यवतानां मनुष्याणां तदेक बालाग्र का भरत और ऐरवत के मनुष्यों का हेमवय-हेरग्णवयाणं मणुस्साणं बालाग्रम्, अष्ट हैमवत-हैरग्यवतानां एक बालाग्र, भरत और ऐरवत के मनुष्यों के वालग्गा पुव्व विदेह-अवरविदेहाणं मनुष्याणां बालाग्राणि पूर्वविदेह- आठ बालाग्र की एक लिक्षा, आठ लिक्षा की मणस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ अपरविदेहाना मनुष्याणां तदेकं बाला- एक यूका, आठ यूका का एक यवमध्य और पुवविदेह-अवरविदेहाणं मणुस्साणं ग्रम्, अष्ट पूर्वविदेह-अपरविदेहानां आठ यवमध्यों का एक उत्सेधांगुल होता है। वालग्गा भरहेरवयाणं मणुस्साणं मनुष्याणां बालाग्राणि भरतैरवतानां से एगे वालग्गे, अट्ट भरहेरवयाणं मनुष्याणां तदेकं बालाग्रम्, अष्ट मणुस्साणं वालग्गा सा एगा भरतैरवतानां मनुष्याणां बालाग्राणि लिक्खा, अट्र लिक्खाओ सा एगा सा एका लिक्षा, अष्ट लिक्षा: सा एका जूया, अट्ठ जयाओ से एगे जव- यूका, अष्ट यूकाः स एक: यवमध्यः, मज्झ, अट्ट जवमझा से एगे अष्ट यवमध्याः स एक: उत्सेधांगुलः । उस्सेहंगुले ॥ ४००. एएणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगु- एतेन अंगुलप्रमाणेन षडंगुला: लाइं पादो, बारस अंगुलाई पादः, द्वादश अंगुला: वितस्तिः, विहत्थी, चउवीसं अंगुलाई रयणी, चतुर्विंशति: अंगुलाः रनि:, अष्टअडयालीसं अंगुलाई कुच्छी, चत्वारिंशत् अंगुला: कृक्षिः षण्णछन्नउई अंगुलाई से एगे दंडे इ वा वतिः अंगुला: सः एकः दण्डः इति धण इ वा जुगे इ वा नालिया इ वा धनुः इति वा युगम् इति वा वा अक्खे इ वा मुसले इवा, एएणं नालिका इति वा अक्ष: इति बा धणुप्पमाणेणं दो घणुसहस्साइं। मुसलः इति वा, एतेन धनुःप्रमाणेन गाउयं, चत्तारि गाउयाई द्वधनुस्सहस्र गव्यूतं, चत्वारि गव्यूजोयणं॥ तानि योजनम् । ४००. इस अंगल प्रमाण से छह अंगुल का पाद, बारह अंगुल की वितस्ति, चौबीस अंगुल की रत्नि, अड़तालीस अंगुल की कुक्षि और छियानवें अंगुल का एक दण्ड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष अथवा मुसल होता है। इस धनुष प्रमाण से दो हजार धनुष का एक गव्यूत [कोस] और चार गव्यूत का एक योजन होता है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy