________________
नौवां प्रकरण : सूत्र ३६३-३६८
मेणं से एगे वावहारिए परमाणु पोग्यले निष्कञ्जइ ।
१. से णं भंते ! असिधारं वा सुरधारं वा ओगाहेन्ना ? हंता ओगाहेज्जा से गं तर छिम्जेज्ज | तत्थ वा भिज्जेज्ज वा ? नो इणमट्ठे समट्ठे नो लु तत्थ सत्थं
कमइ ।
२. से णं भंते । अगणिकायस्स मज्मणं वीइवएज्जा ? हंता वीइवएज्जा | से णं तत्थ डहेज्जा ? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थ कमइ ।
|
३. से गं भंते! पोक्लबट्टगरस महामेहस्स मज्मणं वीइवएन्जा ? हंता बीइवएज्जा से णं तत्थ उदउल्ले सिया ? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु सत्थं कमइ ।
तत्थ
४. से ण भंते! गंगाए महानईए पडिसोयं हव्वमागच्छेज्जा ? हंता हय्य मागच्छेजा। से णं तत्थ विणिधायमाज्जेज्जा ? नो इणमट्ठे समट्ठे न खलु तत् सत्यं
कमइ ।
५. से णं भते उदगाव या उदगबंदु वा ओगाहेज्जा ? हंता ओगाहेज्जा | से णं तत्थ कुच्छेज्ज वा परियावज्जेज्ज वा ? नो इणमट्ठे समट्ठे नो खलु तत्थ सत्यं
कमइ ।
गाहा—
सत्वे सुतिले वि
छेत्तुं भेत्तुं च जं किर न सक्का । तं परमाणं सिद्धा
ययंति आई पमाणाणं ॥ १ ॥
Jain Education International
समागमेन त एक व्यावहारिकः परमाणुपुद्गलः निष्पद्यते । १. स भदन्त ! असिधारा वा क्षुरधारा वा अवगाहेत? हा अवगाहत । हन्त स तत्र छितवानित वा? नो अयमर्थः समर्थः नोख तत्र शस्त्रं क्रामति ।
"
२. स भदन्त ! अग्निकायस्य मध्यमध्येन व्यतिव्रजेत् ? हन्त व्यतिजे ? स तत्र दह्येत ? नो अयमर्थः समर्थः, नो खलु तत्र शस्त्रं क्रामति ।
३. स भवन्त ! पुष्करसंवर्तकस्य महामेघस्य मध्यमध्येन व्यतिव्रजेत् ? हन्त व्यतियजेत्। स त उनका तत्र स्यात ? नो अयमर्थः समर्थः, नो खलु तत्र शस्त्रं क्रामति ।
४. स भदन्त ! गङ्गायाः महानद्याः प्रतिस्रोतः 'हवं' आगच्छेत् ? हन्त 'हवं' आगच्छेत तत्र विनि घातमापद्येत ? नो अयमर्थः समर्थः, तत्र शस्त्रं श्रामति ।
५. स भदन्त ! उदकावर्त्त वा उदकबिंदु वा अवगाहेत ? हन्त अवगाहेत । स तत्र कुथ्येत् वा पर्यापद्येत वा ? नो अयमर्थः समर्थः, नो खलु तत्र शस्त्रं श्रामति ।
गाथा
शस्त्रेण सुतीक्ष्णेन अपि, छेत्तुं भेत्तुं च यः किल न शक्यः । तं परमाणुं सिद्धा
वदन्ति आदि प्रमाणानाम् ||१||
For Private & Personal Use Only
२२७
से एक व्यावहारिक परमाणुपुद्गल निष्पन्न होता है ।
१. भन्ते ! क्या वह परमाणु असिधारा या क्षुरधारा का अवगाहन करता है ? हां करता है ।
भन्ते ! क्या वह अवगाह्न करने पर छिन्न या भिन्न होता है ?
ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि उसमें शस्त्र का संक्रमण नहीं होता ।
२. भन्ते ! क्या वह परमाणु अग्निकाय के बीचों बीच जाता है ?
हां जाता है।
भन्ते ! क्या वह वहां जलता है ? ऐसा नहीं होता, क्योंकि उसमें [अग्नि] शस्त्र का संक्रमण नहीं होता ।
३. भन्ते ! क्या वह परमाणु पुष्करसंवर्तक आदि महामे के बीचों बीच से जाता है ?
हां जाता है ।
भन्ते ! क्या वह वहां पर उदक से आर्द्र होता है ?
ऐसा नहीं होता. क्योंकि उसमें [ उदक ] शस्त्र का संक्रमण नहीं होता ।
४. भन्ते ! क्या वह परमाणु महानदी गंगा के प्रतिस्रोत में आता है ?
हां आता है ।
भन्ते ! क्या वह वहां स्खलित होता है ? ऐसा नहीं होता क्योंकि उसमें [ उदक] शस्त्र का संक्रमण नहीं होता ।
५. भन्ते ! क्या वह परमाणु उदकावर्त अथवा उदक बिन्दु का अवगाहन करता है ?
हां करता है ।
भन्ते ! क्या वह सड़ान्ध या पर्यायान्तर को प्राप्त होता है ?
ऐसा नहीं होता, क्योंकि उसमें [ उदक ] शस्त्र का संक्रमण नहीं होता ।
गाथा
१. सुतीक्ष्ण शस्त्र से भी जिसका छेदन- भेदन नहीं किया जा सकता उस [ व्यावहारिक] परमाणु को सिद्ध पुरुष (केवली) प्रमाणों का आदि बतलाते हैं।"
www.jainelibrary.org