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नौवां प्रकरण : सूत्र ३८४ - ३६२
३८. से कि तं अंगुले ? अंगुले तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-आयंगुले उस्सेहंगुले पमाणं ॥
३६०. से किं तं आयंगुले ? आयंगुलेजे पं जया मणस्सा भवंति तेसि णं तया अप्पणो अंगुलेणं दुवालस अंगुलाई मुहं नवमुहाई पुरिसे पमाणजुत्ते भवइ, दोणीए पुरिसे माणजुत्ते भवइ, अद्धभारं तुल्लमाणे पुरिसे उम्माणजुत्ते भवइ ।
गाहा -
माणम्माणप्यमाणतुत्ता, लक्खणवंजणगुणेह उववेया ।
उत्तमकुलप्पसूया,
उत्तमपुरिसा मुवा ॥१॥ होंति पुण अहिषपुरिसा, अट्ठसयं अंगुलाण उव्विद्धा । छउ अहमपुरिसा, चउरुत्तरा मज्झिमिल्ला उ ॥२॥ होणा वा अहिया वा जे खलु सर-सत-सारपरिहीणा । ते उत्तमपुरिसार्ण,
अवसा
पेसत्तणमुति ||३||
३१. एएवं अंगुलरयमाणेनं अंगु लाई पाओ, दो पाया विस्थी, दो विहवीओ रयणी, दो रयणीओ कुच्छी, दो कुच्छीओ दंडं धणू जुगे नालिया अक्ले मुसले दो धणसह स्साई गाउयं चत्तारि गाउयाई जोय ||
३२. एएवं आवंगुलप्यमाणेणं कि पओयणं ? एएवं आयंगुलप्य माणेणं जे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि णं तया अप्पणो अंगुलेणं अगड-तलाम-दह-नदी-वावीइ-नदी-वावी पुरखरिणो दोहिया गुंजालियाओ सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलतियाओ आरामुज्जाण
काणण-वण-वणसंड-वण राइओ देवकुल- सभापवा बूम खाइय
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अथ किस अंगुल ? अंगुल त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा— आत्मागुलः उत्सेधांगुलः प्रमाणांगुलः ।
अथ कि स आत्मगुणः ? आत्मगुल ये यदा मनुष्याः भवन्ति तेषां तदा आत्मनो अंगुलेन द्वादश अंला मुखम् नवमुखानि पुरुषः प्रमाणयुक्तो भवति, द्रोणिक: पुरुष: मानयुक्तो भवति, अर्द्धभारं तुलयन् पुरुष: उन्मानयुक्तो भवति ।
गाथामानोन्यानप्रमाणका
क्ष उपेताः । उत्तमकुलप्रसूताः,
उत्तमपुरुषाः ज्ञातव्याः ||१|| भवन्ति पुनः अधिकपुरुषाः, अष्टम् गुलानाम् उदाः । षण्णवतिः अधमपुरुषा:,
चतुरुत्तराः मध्यमास्तु ॥२॥ हीना वा अधिक वा,
ये
ते उत्तमपुरुषाणाम्, अवशाः प्रेष्यत्वमुपयान्ति ॥३॥
स्वर-सस्य-सारपरिहीनाः ।
एतेन अंगुलमान गु पाद:, द्वौ पादौ वितस्तिः, द्वे वितस्ती रजिः ई रत्नी कुलि कुक्षी कुक्षिः, द्व े दण्डं धनुः युगं नालिका अक्षः मुशलः,
धनुः स म्पूतं चत्वारि न्यू तानि योजनम् ।
एतेन आत्मगलमान कि प्रयोजनम् ? एलेन आरमांप्रमाणेन
ये यदा मनुष्याः भवन्ति तेषां तदा आत्मनः अंगुलेन 'अगड' - तडाग-द्रहनदी-वापी-पुष्करिणी दीर्घिका गुञ्जालिकाः सरांसि सरपङ्क्तयः सरसरपतय: विलपतय: बारामोद्यानकानन वन-वनषण्ड- वनराजयः देवकुल सभा-प्राखातिका परिचाः, प्राकार अट्टारिक द्वार-गोपुर
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३८९. वह अंगुल क्या है ?
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अंगुल के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेआत्मांगुल, उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल ।"
३९०. वह आत्मांगुल क्या है ?
आत्मांगुल - जिस समय जो मनुष्य होते हैं उनके अपने अंगुल से बारह अंगुल का मुख होता है। नव मुख जितना पुरुष प्रमाण युक्त होता है । द्रोणिक पुरुष मान युक्त होता है। अर्धभार जितने तोल वाला पुरुष उन्मान युक्त होता है।
गाथा
१. मान, उन्मान और प्रमाण से युक्त, लक्षण, व्यञ्जन और क्षान्ति आदि गुणों से उपेत तथा उत्तम कुल में उत्पन्न होने वाले उत्तम पुरुष होते हैं ।
२. उत्तम पुरुष की ऊंचाई एक सौ आठ [१०८] अंगुल की होती है। अधम पुरुष की ऊंचाई छियानवे (९६) अंगुल की होती है और मध्यम पुरुष की ऊंचाई एक सौ चार [१०४] अंगुल की होती है ।
३. जो व्यक्ति स्वर, सत्व और सार से हीन होते हैं वे उक्त प्रमाण से हीन हों या अधिक उत्तम पुरुषों के परतंत्र होकर प्रेष्यत्व को प्राप्त करते हैं ।"
३९१. इस अंगुल प्रमाण से छह अंगुल का पाद [पांव का अग्रभाग ], दो पाद की वितरित दो वितस्ति की रत्नि, दो रत्नि की कुक्षि, दो कुक्षि का दण्ड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष और मुसल होता है, दो हजार धनुष का गव्यूत [ एक कोश ] और चार गव्यूत का एक योजन होता है।
३९२. इस आत्मांगुल प्रमाण का क्या प्रयोजन है?
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इस आत्मांगुल प्रमाण से जिस समय जो मनुष्य होते हैं, उस समय उनके अपने अंगुल से कूप, तालाब, द्रह, नदी, बावड़ी, पुष्करिणी का जालासर सरपंक्तिका सरसरपंक्तिका पंक्तिका आराम, उद्यान, कानन, वन, वनषण्ड, वनराजि, देवकुल, सभा, प्रपा, स्तूप, खाई, परिखा, प्राकार, अट्टालक, चरिका द्वार, गोपुर
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