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अणुओगदाराई ३८४. से कि तं पडिमाणे? पडिमाणे अथ किं तत् प्रतिमानम् ? प्रति- ३८४. वह प्रतिमान क्या है ?
--जण्णं पडिमिणिज्जइ, तं जहा- मानम्-यत् प्रतिमीयते, तद्यथा-- । प्रतिमान-जिससे स्वर्ण आदि का तौल गुजा कागणी निप्फावो कम्म- गुञ्जा काकणी निष्पावः कर्ममाषक: किया जाता है, जैसे गुजा [चिरमी], मासओ मंडलओ सुवण्णो। पंच मण्डलक: सुवर्णः । पञ्च गुजाः कर्म- काकणी, निष्पाव [बल्ल नामक चना-राजगंजाओ कम्ममासओ, चत्तारि माषक:, चतस्रः काकण्यः कर्ममाषकः, मास], कर्ममाषक, मण्डलक और सुवर्ण । कागणीओ कम्ममासओ, तिणि त्रयो निष्पावा: कर्ममाषकः, एवं पांच गुञ्जा, चार काकणी और तीन निष्पाव निष्फावा कम्ममासओ, एवं चउ- चतुष्कः कर्ममाषक: । द्वादश कर्म- का एक कर्ममाषक होता है। क्कओ कमममासओ। बारस कम्म- माषकाः मण्डलक:, एवम् अष्ट
इस प्रकार चार काकणी से निष्पन्न कर्ममासया मडलओ, एव अडया- चत्वारिंशत्काकिण्यः मण्डलकः । माषक को चतुष्क कर्ममाषक कहते हैं । बारह लोसाए कागणीओ मंडलओ। षोडश MAINET. म. षोडश कर्ममाषकाः सुवर्णः, एवं चतु:
कर्ममाषक का एक मण्डलक होता है। सोलस कम्ममासया सुवण्णो, एव षष्टि: काकण्य: सुवर्णः ।
इस प्रकार अड़तालीस काकणी का एक
मण्डलक और सोलह कर्ममाषक का एक चउसठ्ठीए कागणीओ सुवण्णो॥
सुवर्ण होता है। ___ इस प्रकार चौसठ काकणी का एक सुवर्ण
होता है। ३५. एणं पडिमाणप्पमाणणं कि एतेन प्रतिमानप्रमाणेन कि ३८५. इस प्रतिमान प्रमाण का क्या प्रयोजन है ?
पओयणं? एएणं पडिमाणप्पमा- प्रयोजनम् ? एतेन प्रतिमानप्रमाणेन इस प्रतिमान प्रमाण से स्वर्ण, रजत, मणि, णेणं सवण्ण-रजत-मणि-मोत्तिय- सुवर्ण-रजत-मणि-मौक्तिक-शंख-शिला
मौक्तिक, शंख, शिला [राजपट्ट नामक रत्न], संख-सिल-प्पवालादीणं दव्वाणं प्रवालादीनां द्रव्याणां प्रतिमानप्रमाण
प्रवाल आदि द्रव्यों का प्रतिमान प्रमाण पडिमाणप्पमाणनिवित्तिलक्खणं निवृत्तिलक्षणं भवति। तदेतत् प्रति
जाना जाता है। वह प्रतिमान है। वह भवह। से तं पडिमाणे। से तं मानम् । तदेतद् विभागनिष्पन्नम् । विभागनिष्पन्न है। वह द्रव्य प्रमाण है। विभागनिष्फण्णे । से तं दविप्प- तदेतद् द्रव्यप्रमाणम् ।
माणे॥ खेत्तप्पमाण-पदं
क्षेत्रप्रमाण-पदम
क्षेत्र-प्रमाण-पद उससे कि तं खेत्तप्पमाणे? खेत्तप्प- अथ कि तत् क्षेत्रप्रमाणम् ? ३८६. वह क्षेत्र प्रमाण क्या है ?
माणे विहे पण्णते, तं जहा- क्षेत्रप्रमाणं द्विविधं प्रज्ञप्त, तद्यथा-- क्षेत्र प्रमाण के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेपारासनिएफपणे य विभागनिप्फण्ण प्रवेशनिष्पन्नं च विभागनिष्पन्नं च। प्रदेशनिष्पन्न और विभागनिष्पन्न । य॥
३८७. से कि तं पएसनिप्फण्णे? पएस- अथ किं तत् प्रदेशनिष्पन्नम् ? ३८७. वह प्रदेशनिष्पन्न क्या है ? निष्फणे-एगपएसोगाढे दुपएसो- प्रदेशनिष्पन्नम् एकप्रदेशावगाढः
प्रदेशनिष्पन्न एक प्रदेशावगाढ़, द्विप्रदेगाढे तिपएसोगाढे जाव दसपएसो- द्विप्रदेशावगाढः त्रिप्रदेशावगाढः यावद् शावगाढ़, त्रिप्रदेशावगाढ़, यावत् दसप्रदेशावगाढे संखेज्जपएसोगाढे असंखेज्ज- दशप्रदेशावगाढः संख्येयप्रदेशावगाढः
गाढ़, संख्येयप्रदेशावगाढ़, असंख्येयप्रदेशावगाढ़। पएसोगाढे। से तंपएसनिष्फण्णे॥ असंख्येयप्रदेशावगाढः । तदेतत् प्रदेश- वह प्रदेशनिष्पन्न है।
निष्पन्नम्। ३८८.से कि तं विभागनिष्फण्णे? अथ किं तद् विभागनिष्पन्नम् ? ३८८. वह विभागनिष्पन्न क्या है ? विभागनिकणे-- विभागनिष्पन्नम् ---
विभागनिष्पन्नगाहा
गाथा
गाथा--- अंगुल विहत्थि रयणी, अंगुल: वितस्ति: रत्नि:,
अंगुल, वितस्ति, रत्नि, कुक्षि, धनुष, कुच्छी धणु गाउयं च बोधव्वं ।
कुक्षिः धनुः गव्यूतं च बोद्धव्यम् । गव्यूत, योजन, श्रेणी, प्रतर, लोक और जोयण सेढी पयरं, योजनं श्रेणि: प्रतरः
अलोक। लोगमलोगे वि य तहेव ॥१॥ लोकालोको अपि च तथैव ।।१।।
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