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________________ नौवां प्रकरण : सूत्र ३७५-३८३ पलसइया तुला, दस तुलाओ अद्ध- विशतिः तुलाः भारः । भारो, बीसं तुलाओ भारो॥ २२३ तुला का एक अर्धभार [५२३ सेर] और बीस तुला का भार [२ मन २५ सेर] होता है। ३७९. एएणं उम्माणप्पमाणेणं कि एतेन उन्मानप्रमाणेन कि प्रयो- ३७९. इस उन्मान प्रमाण का क्या प्रयोजन है ? पओयणं? एएणं उम्माणप्पमाणेणं जनम् ? एतेन उन्मानप्रमाणेन पत्र- इस उन्मान प्रमाण से पत्र तेजपत्र आदि] पत्त-अगरु-तगर-चोयय-कुंकुम-खंड- अगरु-तगर-'चोयय'-कुंकुम खण्ड-गुड- अगरु, तगर, चोयक [सुगन्धित द्रव्य], कुंकुम, गुल-मच्छंडियादीणं दवाणं मत्स्यण्डिकादीनां द्रव्याणाम् उन्मान- खाण्ड, गुड़, मत्स्य ण्डिका राब] आदि उम्माणप्पमाणनिन्वित्तिलक्खणं प्रमाणनिवृत्तिलक्षणं भवति । तदेतद् द्रव्यों का उन्मान प्रमाण जाना जाता है। वह भवइ । से तं उम्माणे ॥ उन्मानम् । उन्मान है। ३८०. से कि तं ओमाणे? ओमाणे- अथ किं तद् अवमानम् ? अव- जण्णं ओमिणिज्जइ, तं जहा- मानम् यद् अवमीयते, तद्यथा-- हत्थेण वा दंडेण वा धणुणा वा हस्तेन वा दण्डेन का धनुषा वा युगेन जुगेण वा नालियाए वा अक्खेण वा वा नालिकया वा अक्षेण वा मुसलेन मुसलेण वा। वा। गाहा गाथा-- दंडं धणुं जुगं नालियं च, दण्डं धनुः युगं नालिकां च, अक्खं मुसलं च चउहत्थं । अक्षं मुसलं च चतुर्हस्तम् । दसनालियं च रज्जु, दशनालिकां च रज्जु, वियाण ओमाणसण्णाए॥१॥ विजानीहि अवमानसंजया ॥१॥ वत्थुम्मि हत्थमेज्ज, वस्तुनि हस्तमेयं, खित्ते दंडं धणुं च पंथम्मि । क्षेत्रे दण्डं धनुः च पथि। खायं च नालियाए, खातं च नालिकया, वियाण ओमाणसण्णाए ॥२॥ विजानीहि अवमानसंज्ञया ॥२॥ ३८०. वह अवमान क्या है ? अवमान - जिससे अवमान [लम्बाई, चौड़ाई और परिधि का नाप] किया जाता है। जैसे हाथ, दण्ड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष और मुसल। गाथा१. दण्ड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष और मुसल चार हाथ का होता है । दस नालिका की एक रज्जु होती है । ये अवमान संज्ञा से ज्ञातव्य हैं। २. वास्तु [घर की भूमि] हाथ से मापा जाता है, खेत दण्ड से मापा जाता है, मार्ग धनुष से मापा जाता है और खाई का गड्ढ़ा नालिका से मापा जाता है। ये भी अवमान संज्ञा से ज्ञातव्य हैं। ३८१. एएणं ओमाणप्पमाणेणं कि एतेन अवमानप्रमाणेन किं पओयणं? एएणं ओमाणप्पमाणेणं प्रयोजनम् ? एतेन अवमानप्रमाणेन खाय-चिय-रचिय-करकचिय-कड- खात-चित-रचित-कचित-कट-पटपड-भित्ति-परिक्खेवसंसियागं भित्ति-परिक्षेपसंश्रितानां द्रव्याणाम् दवाणं ओमाणप्पमाणनिग्वित्ति- अवमानप्रमाणनिवृत्तिलक्षणं भवति । लक्खणं भवइ । से तं ओमाणे॥ तदेतद् अवमानम् । ३८१. इस अवमान प्रमाण का क्या प्रयोजन है ? इस अवमान प्रमाण से खोदे हुए, चिने हुए, बनाए हुए, करौत से काटे हुए तथा कट, पट, भित्ति और परिधि- इनसे संबद्ध द्रव्यों का अवमान प्रमाण जाना जाता है । वह अवमान ३८२. से किं तं गणिमे ? गणिमे- अथ किं तद् गण्यम् ? जण्णं गणिज्जइ, तं जहा—एगो गण्यम् यत् गण्यते, तद्यथा-एकः दस सयं सहस्सं दससहस्साई सय- दश शतं सहस्र दशसहस्राणि शतसहस्रं सहस्सं दससयसहस्साई कोडी॥ दशशतसहस्राणि कोटिः । ३८२. वह गण्य क्या है ? गण्य-जो गिना जाता है वह गण्य है, जैसे-एक, दस, सौ, हजार, दस हजार, सौ हजार, दस सौ हजार और कोटि । ३८३. एएणं गणिमप्पमाणेणं कि पओ एतेन गण्यप्रमाणेन किं प्रयो- यण? एएणं गणिमप्पमाणेणं जनम् ? एतेन गण्यप्रमाणेन भृतकभितग-भिति-भत्त-वेयण-आय-व्यय- मति-भक्त-वेतन-आय-व्ययसंश्रितानां संसियाण दव्वाणं गणिमप्पमाण- द्रव्याणां गण्यप्रमाणनिवृत्तिलक्षणं निवित्तिलक्खणं भवइ। से तं भवति । तदेतद् गण्यम् । गणिमे ॥ ३८३. इस गण्य प्रमाण का क्या प्रयोजन है ? ___इस गण्य प्रमाण से भूतक [कर्मकर] भृति [वृत्ति] भक्त [भोजन] वेतन और आय-व्यय से संबद्ध द्रव्यों का गण्य प्रमाण जाना जाता है। वह गण्य है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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