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अणुओगदाराई
एक उत्कृष्ट कुम्भ और आठ सौ आढ़क का एक वाह होता है।
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आढगसतं उक्कोसए कुंभे, अट्ठ- कुम्भः, अष्टाढकशतिक: वाहः।
आढगसतिए वाहे ॥ ३७५. एएणं धन्नमाणप्पमाणेणं कि एतेन धान्यमानप्रमाणेन किं
पओयणं? एएणं धन्नमाणप्पमा- प्रयोजनम् ? एतेन धान्यमानप्रमाणेन णणं मुत्तोली-मुरव-इड्डर-अलिद- 'मुत्तोली-मुरव-इड्डर-अलिन्द-ओचार'ओचारसंसियाणं धन्नाणं धन्न- संधितानां धान्यानां धान्यमानप्रमाणमाणप्पमाणनिवित्तिलक्खणं निवृत्तिलक्षणं भवति । तदेतद् धान्यभवइ । से तं धन्नमाणप्पमाणे ॥ मानप्रमाणम् ।
३७५. इस धान्यमान प्रमाण का क्या प्रयोजन
इस धान्यमान प्रमाण से मुक्तोली [वह कोठी जो ऊपर व नीचे संकीर्ण और बीच में विशाल हो], मुरव [धान्य रखने का पात्र], इड्डर [ढ़कने का बड़ा पात्र], आलिन्दक [कुंडा] और ओचार [बड़ा कोठा] में रखे हुए धान्य के धान्यमान का प्रमाण जाना जाता है। वह धान्यमान प्रमाण है।
३७६. से कि तं रसमाणप्पमाणे? अथ किं तद् रसमानप्रमाणम् ?
रसमाणप्पमाणे-धन्नमाणप्प- रसमानप्रमाणम्-धान्यमानप्रमाणात् माणाओ चउभागविवडिए अभि- चतुर्भागविवधितम् अभ्यन्तरशिखायुक्तं तरसिहाजुत्ते रसमाणप्पमाणे रसमानप्रमाणं विधीयते, तद्यथाविहिज्जइ, तं जहा-चउसद्विया ४, चतुःषष्टिका ४, द्वात्रिशिका ८, षोडबत्तीसिया ८, सोलसिया १६, शिका १६, अष्टभागिका ३२, अट्ठभाइया ३२, चउभाइया ६४, चतुर्भागिका ६४, अर्धमानी १२८, अद्धमाणी १२८, माणी २५६। मानी २५६ । द्वे चतुःषष्टिके द्वात्रिदो चउसट्टियाओ बत्तीसिया, दो शिका, द्वे द्वात्रिशिके षोडशिका, द्वे बत्तीसियाओ सोलसिया, दो सोल- षोडशिके अष्टभागिका, द्वे अष्टभागिके सियाओ अट्ठभाइया, दो अट्ठभाइ- चतुर्भागिका, द्वे चतुर्भागिके अर्धमाणी, याओ चउभाइया, दो चउभाइ- द्वे अर्धमाग्यौ माणी । याओ अद्धमाणी, दो अद्धमाणीओ माणी॥
२७६. वह रसमान प्रमाण क्या है ?
रसमान प्रमाण-धान्यमान प्रमाण से चार भाग अधिक, आभ्यन्तर शिखा से युक्त रसमान प्रमाण किया जाता है। जैसे-चतुःषष्टिका, द्वात्रिंशिका, षोडशिका, अष्टभागिका, चतुर्भागिका, अर्धमाणी, माणी।
चतुःषष्टिका के दो भाग करने से द्वात्रिंशिका, द्वात्रिंशिका के दो भाग करने से षोडशिका, षोडशिका के दो भाग करने से अष्टभागिका, अष्टभागिका के दो भाग करने से चतुर्भागिका, चतुर्भागिका के दो भाग करने से अर्धमाणी और अर्धमाणी के दो भाग करने से माणी होती है।
३७७. एएणं रसमाणप्पमाणेणं कि एतेन रसमानप्रमाणेन कि प्रयो- ३७७. इस रसमान प्रमाण का क्या प्रयोजन है ?
पओयणं? एएणं रसमाणप्प- जनम् ? एतेन रसमानप्रमाणेन वारक- इस रसमान प्रमाण से वारक [छोटा माणेणं वारग-घडग-करग-कल- घटक-करक-कलशिका-गर्गरी-दृतिका- घड़ा], घट [घड़ा], करक [झारी], कलशी, सिय-गग्गरि-दइय-करोडिय-कुंडिय- करोटिका-कुण्डिकासंश्रितानां रसानां गगरी, दृति [दीवड़ी], करोटिका[बड़ी कुण्डी] संसियाणं रसाणं रसमाणप्पमाण- रसमानप्रमाणनिवृत्तिलक्षणं भवति ।
और कुण्डिका में डाले हुए रसों का रसमान निवित्तिलक्खणं भवइ। से तं तदेतद् रसमानप्रमाणम् । तदेतद्
प्रमाण जाना जाता है। वह रसमान प्रमाण रसमाणप्पमाणे । से तं माण॥ मानम् ।
है। वह मान है।
३७८. से कि तं उम्माणे? अथ किं तद् उन्मानम् ?
उम्माणे-जण्णं उम्मिणिज्जइ, उन्मानम्-यत् उन्मीयते, तद्यथातं जहा-अद्धकरिसो करिसो, अर्द्धकर्षः कर्षः, अर्द्धपलं पलं, अद्धपलं पलं, अद्धतुला तुला, अर्द्धतुला तुला, अर्द्धभारः भारः। अद्धभारो भारो। दो अद्ध- द्वौ अर्द्धकर्षों कर्षः, द्वौ कषौं अर्द्धकरिसा करिसो, दो करिसा अद्ध- पलम्, द्वे अर्द्धपले पलं, पञ्चोत्तरपलं, दो अद्धपलाई पलं, पंचुत्तर- पलशतिका तुला, दश तुला: अर्द्धमारः,
३७८. वह उन्मान क्या है ?
उन्मान-जिससे तोला जाता है, वह उन्मान है, जैसे-अर्धकर्ष [आधा तोला], कर्ष [एक तोला], अर्धपल, पल, अर्धतुला, तुला, अर्धभार, भार। दो अर्धकर्ष का एक कर्ष, दो कर्ष का एक अर्धपल, दो अर्धपल का एक पल, एक सौ पांच पलों की एक तुला, दस
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