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________________ प्र०८, सू० ३५४-३६४, टि० २२-३१ का प्रत्यय नहीं है फिर भी उसका हेतुभूत अर्थ यहां विद्यमान है इसलिए उन्हें तद्धितज माना गया है। मलधारी हेमचन्द्र के इस प्रतिपादन का आधार चूर्णिकार द्वारा किया हुआ तद्धित शब्द का निरुक्त है। चूर्णिकार ने लिखा है जो अर्थ जिसके द्वारा जाना जाता है वह उसके ज्ञान का हेतु होने के कारण तद्वित कहलाता है। तद्धित के अर्थ में होनेवाला तद्वित कहलाता है ।' इस व्याख्या के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि सूत्रकार द्वारा उदाहृत नामों में कुछ नाम तद्धित प्रत्यय युक्त हैं और कुछ नाम तद्धित प्रत्ययों के अर्थ से युक्त हैं। तरंगवतीकार आदि नाम कृदन्त प्रत्यय वाले हैं फिर भी उन्हें तद्धितज नामों के साथ प्रस्तुत किया गया है इसका कारण चूर्णिकार द्वारा किया गया व्यापक अर्थ है । कृदन्त और तद्धित दोनों प्रत्ययों के द्वारा शब्द निर्माण होता है । कृदन्त प्रत्यय के द्वारा धातु से और तद्धित प्रत्ययों के द्वारा नामों से शब्द निर्मित होते हैं । किन्तु उस व्यापक अर्थ में ये दोनों समाहित हो जाते हैं। इस आधार पर सूत्रकार द्वारा उल्लिखित सभी नामों की संगति बिठाई जा सकती है । सूत्र ३६३ २७. बंदिश (वेद) मालवा प्रदेश में भोपाल से २४ मील ईशान कोण में स्थित नगर अथवा वेत्रवती नदी के किनारे स्थित भिलसा नगर । भिसा नगर का सम्बन्ध वेस या वेसली नदी के साथ है। भिलसा का एक नाम बेसनगर है । उस नदी के साथ सम्बन्ध प्रमाणित करता कि बेसनगर का मूल नाम वैदिश नगर है । २८. वेन्नाट (वेन्नायडं ) दक्षिणापथ में कृष्णा और वेणा नामक नदियां बहती हैं। उनके आसपास का प्रदेश आभीर देश कहलाता है । आभीर देश में वेणा नदी के किनारे वेणातट नामक नगर है। वहां किसी समय बौद्धों और जैनों की अच्छी बस्ती थी । उनमें परस्पर चर्चा - स्पर्धाएं चलती रहती थीं।' २२. तगरात (तगरायडे) दक्षिणापथ में तगरा नदी के किनारे पर स्थित नगर का नाम तगरातट है । उसका संक्षिप्त नाम तगरा है ।' ई० सन् ९३३ में दिगम्बर आचार्य हरिषेण द्वारा रचित 'बृहत् कथा कोश' में तेरानगर का उल्लेख है आभीराख्यमहादेशे, तेराख्यं नगरं परम् । तदा नीलमहानीलो, प्रयातौ विजिगीषया ॥ यहां 'तेरा' तगरा का ही परिवर्तित रूप है । जैसे तगरा तयरा तइरा-तेरा इस क्रम में तगरा तेरा रूप में परिवर्तित हुआ। दिगम्बर मुनि कनकामर द्वारा रचित अपभ्रंश काव्य 'करकंडुचरिउं' में भी तेरापुर और वहां के गुफा मन्दिर का वर्णन है । हैदराबाद राज्य के उस्मानाबाद जिले में तीर्णा नदी के किनारे तेरा नामक छोटा सा ग्राम है। सम्भव है यह तेरा ग्राम तगरातट का अवशेष हो । ३०. संपूथनाम ( संजू हनामे) १. १२० दिन तद्विप्राप्तिहेतुभूतोऽयते ततो यत्रापि तुप्राए, तंतुवा ि प्रत्ययो न दृश्यते तत्रापि तद्हेतुभूतार्थस्य विद्या तद्वितजत्वं सिद्धं भवति । २१५ संयूथ का अर्थ ग्रन्थ रचना है।' ३१. तरंगवतोकार (तरंगवतिकारे ) यह आचार्य पादलिप्तसूरि द्वारा रचित सबसे प्राचीन कथा ग्रन्थ है । दशवैकालिक चूर्णि आदि में इसका उल्लेख प्राप्त है ।" २. अचू. पृ. ५० : योऽर्थः येनोपलक्ष्यते स तस्य हेतुक: तद्धितमुच्यते, तद्धितातो अत्थे जाते तद्धितिए । सूत्र ३६४ Jain Education International ३. जैआसागु. पृ. १६८ । ४. वही, पृ. २० और १७१ । ५. वही, पृ. ७७,७८ ६. अहावू. पृ. ७४ : संजू हो- प्रन्थसंदर्भकरणम् । ७. (क). पृ. १०९ सामइगे तरंगमाह । (ख) निचू. २, पृ. ४१५ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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