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अणुओगदाराई
वर्तमान में यह ग्रन्थ अनुपलब्ध है । इसका समय ई० की दूसरी तीसरी सदी सम्मत है। पालिप्तसूरि को राजा सातवाहन की गोष्ठी की शोभा माना गया है। मूलग्रन्थ के १००० वर्ष बाद वीरभट्ट या वीरभद्र आचार्य के शिष्य नेमिचन्द्रगणी ने तरंगवती का संक्षिप्तीकरण १९०० प्राकृत गाथाओं में किया है। जिसका नाम तरंगलोला रखा गया है। इस ग्रन्थ का दूसरा नाम संक्षिप्त तरंगवती भी है। आचार्य नेमिचन्द्र ने तरंगवती के सम्बन्ध में लिखा है
___ पादलिप्त आचार्य ने देशी भाषा में तरंगवती नामक विचित्र और विस्तृत कथा की रचना की। यह रचना विद्वद्भोग्य है इसलिए साधारण लोग न इसे सुनते हैं न कहते हैं, और न इसके संबंध में पूछते भी हैं। ३२. मलयवतीकार (मलयवतिकारे)
निशीथचूथि में मलयवती, मगधसेना, तरंगवती आदि को लोकोत्तर कथा माना गया है। ३३. आत्मानुशिष्टिकार (अत्ताणुसट्टिकारे)
आत्मानुशिष्टि' ग्रंथ के निर्माता । यह ग्रंथ अभी अनुपलब्ध है।
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