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________________ प्र० ८, सू० ३३२-३५२, टि० १० २१ सूत्र ३४६ १६. जीवनहेतु नाम ( जीवियानामे) जीवित रखने के लिए किया जाने वाला नामकरण। जिस परिवार में उत्पन्न होने वाली सन्तान जन्म के कुछ समय बाद ही मृत्यु को प्राप्त हो जाती है उस परिवार में बच्चे को जीवित रखने के लिये उसे अवकर ( कूड़े के ढेर ) पर छोड़ा जाता है और उसका नाम उसी आधार पर अवकरक रखा जाता है । उत्कुरु, उज्झित और कज्जव भी कूडे करकट के ढेर से सम्बन्धित शब्द हैं । ये नाम भी अवकरक के समानार्थक हैं। कहीं कहीं बच्चे को सूर्प ( छाज) में रखकर छोड़ने की पद्धति है इससे उसका नाम सूर्पक रखा जाता है । सूत्र ३४७ १७. अभिप्रायक नाम (आभिप्पा इयनामे ) अर्थ विशेष के प्रयोजन को ध्यान में न रखकर स्वेच्छामात्र से होनेवाला नामकरण । ये नाम गुण निरपेक्ष होते हैं, जैसेआम्र, नीम आदि शब्द वृक्ष-विशेष के वाचक हैं किन्तु व्यक्तियों के नामकरण में इन शब्दों का उपयोग करना आभिप्रायिक नाम है । १६. सामासिक ( सामासिए) सूत्र ३४९ १८. (सूत्र ३४९ ) प्रस्तुत प्रकरण में भाव का संबंध शब्दशास्त्र अथवा व्याकरण से है । शब्द- सिद्धि और शब्द संरचना की प्रामाणिकता व्याकरण के द्वारा होती है । इस अपेक्षा से समास, तद्धित आदि को भाव प्रमाण नाम बतलाया गया है । सूत्र ३५० जिन दो या दो से अधिक पदों का परस्पराश्रय भाव से सम्बन्ध होता है वह समास है ।' सूत्र ३५१ २१३ २०. द्वन्द्व (दंबे ) जिस समास में सब पदों की प्रधानता हो, वह द्वन्द्व समास कहलाता है, जैसे 'दन्तोष्ठम्' इसमें दन्त और औष्ठ दोनों पद प्रधान हैं। * Jain Education International सूत्र ३५२ २१. बहुव्रीहि बहुवीही) जिस समास में अन्य पदार्थ की प्रधानता हो वह बहुव्रीहि समास कहलाता है, जैसे—पुष्पिताः कुटजकदम्बा: यस्मिन् असो १. ( क ) अच् पृ. ५०: जीविया णाम जस्स जायमित्तं अब परति सा तं जातिं चैव जयगरादिसु छड्डेइ तं चेव णामं कज्जइ, ततो जीवति । (ख) अहाव. पृ. ७३ । (ग) अमवृ. प. १३४, १३५ । २. (क) अचू. पृ. ५० : अभिप्यायणामं ण किंचि गुणमवे क्खति किंतु यदेव यत्र जनपदे प्रसिद्धं तदेव तत्र जनपदाभिप्रायनाम, जनपदसंववहार इत्यर्थः । (ख) अहावू. पृ. ७३ । (ग) अमवृ. प. १३५ । ३. (क) अचू. पृ. ५० : येषां पदानां सम्यग् परस्पराश्रयभावेनार्थः आश्रीयते स समासः ततो जातो अत्थो सामासितो । (ख) अहाव. पृ. ७३ । (ग) अमवृ. प. १३६ । ४. (क) अहाबू पृ. ७३ 'उमयप्रधानो द्वंद्व' इति द्वन्द्वः दंतीयम् (ख) अमवृ. प. १३६ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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