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प्र०८, सू० ३१६-३२७, टि०४-६
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चूर्णिकार ने इसकी व्युत्पत्ति काटने और प्राप्त करने इन दोनों अर्थ वाली धातुओं से की है। तुम्बा जल को धारण करता है फिर भी उसका नाम अलाबु है।'
शुम्भ (To Shine)-चमकदार रंग होने पर भी उसे कुशुम्भ कहा जाता है।
कोई व्यक्ति बहुत अधिक बोलता है किन्तु वह असम्बद्ध प्रलाप करता है। असार बोलने के कारण उसके बोलने का कोई महत्त्व नहीं है। उसे देखकर कुछ लोग कहते हैं—यह बोलना ही नहीं जानता। बोलता है और बोलना नहीं जानता यह विरोधाभास है। 'आलपन् विपरीतभाषक:' यहां विपरीतभाषक का अर्थ है-'भाषकात् विपरीतः' अर्थात् नहीं बोलने वाला या असम्बद्ध बोलनेवाला।
नोगौण नाम और प्रतिपक्ष से होने वाले नाम में भेद क्या है ? नोगौण नाम में कुन्त, मुद्ग आदि शब्द-प्रयोग के निमित्त का अभाव है और प्रतिपक्ष नाम प्रतिपक्ष धर्म के प्रतिपादन से प्रतिबद्ध हैं।
प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त ग्राम, आकर, नगर, खेट आदि शब्दों के विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य--ठाणं २।३९० का टिप्पण। भगवई ११४८-५० का भाष्य ।
सूत्र ३२४ ७. प्रधानता से होनेवाला नाम (पाहण्णयाए)
एक स्थान पर अनेक वस्तुओं का अस्तित्व होने पर भी जिन वस्तुओं की प्रधानता होती है, उसके आधार पर होनेवाला नामकरण । जैसे--किसी उपवन में आम, अशोक, नारियल आदि अनेक जाति के वृक्ष हैं, उनमें अशोक जाति के वृक्षों की प्रधानता है, उस वन को अशोक वन कहा जाता है। इसी प्रकार सप्तपर्ण की प्रधानता वाले वन का नाम सप्तपर्ण वन और आम्र की प्रधानता वाले वन का नाम आम्र वन होता है।"
सत्र ३२६ ८. नाम से होनेवाला नाम (नामेणं)
__ किसी पूर्वज के नाम के आधार पर होनेवाला नामकरण । जैसे -पिता का नाम बन्धुदत्त और पुत्र का नाम भी बन्धुदत्त । नौ-नन्द और विक्रमादित्य के नाम इसी परम्परा के सूचक हैं ।
सूत्र ३२७ ६. अवयव से होनेवाला नाम (अवयवेणं)
अवयव के आधार पर होनेवाला नामकरण। जैसे-शृंग के आधार पर बारहसिंगा का नाम शृंगी और ककुद के आधार पर वृषभ का नाम ककुमान है।
परिकरबन्ध निवसन आदि सुभट और महिला के औपधिक अवयव हैं। चावलों की राशि एक वर्ग के रूप में स्थापित की जाए तो एक दाना उसका अवयव होता है । लालित्य आदि काव्य धर्मों से युक्त एक पद्य कवित्व की सूचना देता है। सुभट, महिला, कवि आदि के सूचक होने के कारण नेपथ्य आदि को उपचार से अवयव मानकर यहां निदर्शित किया गया है।' १. अचू. पृ. ४९ : लवतीति लाबु आदानार्थेन वा युक्तं ला
प्राधान्यं 'असोगवणे' त्यादि । आदाने इति लाळ तं अलाबु भण्णति ।
(ख) अहावृ. पृ. ७२। २. (क) अचू. पृ. ४९ : सुभवर्णकारी सोभयतीति संभकस्त- (ग) अमवृ. प. १३१ । थापि कुशुंभकमित्युच्यते।
५. (क) अचू. पृ. ४९ : जो पितुपितामहनाम्नोत्क्षिप्त उन्नमित (ख) आप्टे।
उच्यते। ३. (क) अचू. पृ. ४१ : यथावस्थितं अचलितभाषकं विपरीत- (ख) अहावृ. पृ. ७२ : पितुपितुः-पितामहस्य नाम्ना भाषकं ब्रूते असत्यवादिनं, अहवा अत्यर्थ लवनं
उन्नामितः उत्क्षिप्तो यथा बंधुवत्त इत्यादि । विबुवानं तं विपरीतभाषकं ब्रूते असत्यवादिन
(ग) अमवृ. प. १३१ । मित्यर्थः।
६. अमव. प. १३१ : यदा स नेपथ्यपुरुषाद्यवयवरूपपरिकर(ख) अहावृ. पृ.७२।
बन्धादिदर्शनद्वारेण भटमहिलापाककविशब्दप्रयोगं करोति (ग) अमवृ. प. १३१ ।
तदा भटादीन्यपि नामान्यवयवप्रधानतया प्रवृत्तत्वादवयव४. (क) अचू. पृ. ४९ : प्रधानभाव: प्राधान्यं बहुत्वे वा नामान्युच्यन्त इति ।
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