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________________ २०६ है। अणुओगदाराई इस्सरियनामे-राईसरे तलवरे ऐश्वर्यनाम-राजेश्वरः तलवरः ऐश्वर्य नाम-राजा, ईश्वर, कोटवाल, माडंबिए कोडुबिए इन्भे सेट्टी माडम्बिक: कौटुम्बिक: इभ्यः श्रेष्ठी मडम्बाधिपति, कुटुम्बाधिपति, इभ्य, श्रेष्ठी, सत्यवाहे सेणावई । से तं इस्सरिय- सार्थवाहः सेनापतिः । तदेतद् ऐश्वर्य- सार्थवाह और सेनापति । वह ऐश्वर्य नाम नामे ॥ नाम । ३६६. से कितं अवच्चनामे ?अवच्च- अथ कि तद् अपत्यनाम? ३६६. वह अपत्य नाम क्या है? नामे-अरहंतमाया चक्कवट्टिमाया अपत्यनाम अर्हन्माता चक्रवर्तीमाता अपत्य के कारण होने वाला नाम - अर्हत्बलदेवमाया वासुदेवमाया राय- बलदेवमाता वासुदेवमाता राजमाता माता, चक्रवर्तीमाता, बलदेवमाता, वासुदेवमाया गणरायमाया। से तं अवच्च- गणराजमाता। तदेतद् अपत्यनाम । माता, राजमाता, गणराजमाता। वह अपत्य नामे । से तं तद्धितए॥ तदेतत् तद्धितजम् । नाम है । वह तद्धितज नाम है। ३६७. से कि तं धाउए? धाउए-भू अथ किं तद् धातुजम ? धातु- ३६७. वह धातुज नाम क्या है ? सत्तायां परस्मैभाषा, एध वृद्धौ, जम्भू सत्तायां परस्मैभाषा, एध धातुज नाम-भू धातु सत्ता अर्थ में है, स्पर्द्ध संहर्षे, गाध प्रतिष्ठा-लिप्सयोः वृद्धो, स्पर्द्ध सहर्षे, गाध प्रतिष्ठा- यह परस्मैपद है। एध धातु वृद्धि अर्थ में ग्रन्थे च, बाधु लोडने। से तं लिप्सयोः ग्रन्थे च, बाध लोडने। है। स्पर्द्ध धातु संघर्ष अर्थ में है। गाधू धाउए। तदेतद् धातुजम् । धातु प्रतिष्ठा, लिप्सा और ग्रन्थ अर्थ में है। बाधू धातु विलोड़न अर्थ में है। वह धातुज नाम है। ३६८. से कि तं निरुत्तिए? निरुत्तिए अथ किं तद् निरुक्तिजम् ? -मह्या शेते महिषः, भ्रमति च निरुक्तिजम-मयां शेते महिषः, रौति च भ्रमरः, मुहुर्मुहुलसति भ्रमति च रौति च भ्रमरः, मुहुमुसलं, कपिरिव लम्बते त्थेति च महलसति मुसलं, कपिरिव लम्बते करोति कपित्थं, चिच्च करोति त्येति च करोति कपित्थ, चिच्च खल्लं च भवति चिक्खल्लं, ऊध्व. करोति खल्ल च भवति चिक्खल्ल, कर्णः उलकः, खस्य माला मेखला। ऊर्ध्वकणः उलूकः, खस्य माला से तं निरुत्तिए। से तं भावप्प- मेखला । तदेतद् निरुक्तिजम् । तदेतद् माणे । से तं पमाणेणं । से तं दस- भावप्रमाणम् । तदेतत् प्रमाणेन । नामे । से तं नामे। तदेतद् दशनाम । तदेतद् नाम । (नामे त्ति पदं समत्तं ।) (नाम इति पदं समाप्तम् ।) ३६८, वह निरुक्तिज ना। क्या है ? निरुक्तिज नाम - मह्यां शेते (पृथ्वी पर सोता है इसलिए) महिष । भ्रमति च रौति च [भ्रमण और गुंजारव करता है इसलिए] भ्रमर । मुहुर्मुहुः लसति [बार-बार शोभित होता है इसलिए] मुसल । कपिरिव लम्बते त्थेति च करोति [वानर की भांति झूलता है और त्थ इस प्रकार की ध्वनि करता है इसलिए] कपित्थ । चिच्च करोति खल्लं च भवति ["ची ची' करता है और चिपकता है इसलिए] चिक्खल । ऊर्ध्वकर्णः [कान ऊंचे रखता है इसलिए] उलूक । खस्य माला [आकाश की माला है इसलिए] मेखला। वह निरुक्तिज नाम है। वह भाव प्रमाण से होने वाला नाम है । वह प्रमाण है। वह दस नाम है। वह नाम है। [नाम पद समाप्त । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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