________________
२००
अणुओगदाराई
३३५. से कि तं भावसंजोगे? भाव
संजोगे दुविहे पण्णत्ते, तं जहापसत्थे य अपसत्थे य॥
अथ कि स भावसंयोगः? भाव- ३३५. वह भाव के संयोग से होने वाला नाम क्या संयोगः द्विविध: प्रज्ञप्त:, तद्यथाप्रशस्तश्च अप्रशस्तश्च ।
भाव के संयोग से होने वाले नाम के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-प्रशस्त और अप्रशस्त ।
३३६. से कि तं पसत्थे ? पसत्थे
नाणणं नाणी, सणणं दंसणी, चरित्तेणं चरित्ती। से तं पसत्थे ॥
अथ कि स प्रशस्त: ? प्रशस्तः ३३६. वह भाव के संयोग से होने वाला प्रशस्त -ज्ञानेन ज्ञानी, दर्शनेन दर्शनी,
नाम क्या है ? चरित्रेण चरित्री। स एष प्रशस्त नाम-ज्ञान से ज्ञानी, दर्शन से प्रशस्तः।
दर्शनी और चारित्र से चारित्री। वह भाव के संयोग से होने वाला प्रशस्त नाम है।
३३७. से किं तं अपसत्थे ? अपसत्थे---
कोहेणं कोही, माणणं माणी, मायाए मायी, लोभेणं लोभी। से तं अपसत्थे। से तं भावसंजोगे। से तं संजोगेणं ॥
अथ किं स अप्रशस्त: ? अप्र- शस्त:- क्रोधेन क्रोधी, मानेन मानी, मायया मायी, लोभेण लोभी। स एष अप्रशस्तः । स एष भावसंयोगः । तदेतत् संयोगेन।
३३७. वह भाव के संयोग से होने वाला अप्रशस्त नाम क्या है ?
अप्रशस्त नाम-क्रोध से क्रोधी, मान से मानी, माया से मायी, और लोभ से लोभी। वह भाव के संयोग से होने वाला अप्रशस्त नाम है। वह भाव के संयोग से होने वाला नाम है । वह संयोग से होने वाला नाम है।
३३८. वह प्रमाण से होने वाला नाम क्या है ?
प्रमाण के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेनाम प्रमाण, स्थापना प्रमाण, द्रव्य प्रमाण और भाव प्रमाण ।
३३८. से किं तं पमाणेणं ? पमाणे अथ किं तत् प्रमाणेन ? प्रमाणं
चउम्बिहे पण्णते, तं जहा- चतुर्विध प्रज्ञप्त, तद्यथा-नामप्रमाणं नामप्पमाणे ठवणप्पमाणे दव्व- स्थापनाप्रमाणं द्रव्यप्रमाणं भावप्पमाणे भावप्पमाणे॥
प्रमाणम । ३३६. से कि तं नामप्पमाणे? नाम- अथ कि तद् नामप्रमाणम् ?
प्पमाणे-जस्स णं जीवस्स वा नामप्रमाणम्-यस्य जीवस्य वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजी- अजीवस्य वा जीवानां वा अजीवानां वाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण ____ वा तदुभयस्य वा तदुभयेषां वा वा पमाणे त्ति नामं कज्जइ । से प्रमाणम् इति नाम क्रियते । तदेतद् तं नामप्पमाणे ॥
नामप्रमाणम् । ३४०. से किं तं ठवणप्पमाणे ? ठवण- अथ कि तत् स्थापनाप्रमाणम् ?
प्पमाणे सत्तविहे पण्णत्ते, तं स्थापनाप्रमाणं सप्तविधं प्रज्ञप्तं, जहा
तद्यथागाहा
गाथा -- नक्खत-देबय-कुले,
नक्षत्र-देवता-कुलानि, पासंड-गणे य जीवियाहेउं । पाषण्ड-गणे च जीविकाहेतु। आभिप्पाइयनामे,
आभिप्रायिकनाम, ठवणानामं तु सत्तविहं ॥१॥ स्थापनानाम तु सप्तविधम् ॥
३३९. वह नाम प्रमाण से होने वाला नाम क्या है ?
नाम प्रमाण जिस जीव या अजीव का, जिन जीवों या अजीवों का, जिस जीव-अजीव दोनों का, जिन जीवों और अजीवों दोनों का प्रमाण यह नाम किया जाता है। वह नाम प्रमाण से होने वाला नाम है।
३४० वह स्थापना प्रमाण से होने वाला नाम क्या है ?
स्थापना प्रमाण से होने वाले नाम के सात प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-गाथानक्षत्र, देवता, कुल, पाषण्ड, गण, जीवन-हेतु, [जीवित रखने के निमित्त] और आभिप्रायिक नाम-इस प्रकार स्थापना नाम के सात प्रकार हैं।
३४१. से किं तं नक्खत्तनामे ? नक्खत्त- अथ किं तद् नक्षत्रनाम ? नक्षत्र-
नामे : कत्तियाहि जाए-कत्तिए नाम : कृत्तिकासु जातः कार्तिक: कत्तियादिण्णे कत्तियाधम्मे कृत्तिकादत्तः कृत्तिकाधर्म: कृत्तिका
३४१. वह नक्षत्र नाम क्या है?
नक्षत्र नाम-कृत्तिका नक्षत्र में उत्पन्न होने वाला कार्तिक, कृत्तिकादत्त, कृत्तिकाधर्म,
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org