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आठवां प्रकरण : सूत्र ३२०-३२३
३२३. से कि तं पडिवक्खपणं ? पडिवलपणं नवेसु गामागरनगर - खेड - कब्बड - मडंब - दोणमुहपट्टणासम-संवाह- सन्निवेसेसु निविस्वमाणे असिवा सिवा, अग्नी सीयलो, विसं महुरं, कल्लालघरेसु अंबिलं साउयं, जे लत्तए से अलत्तए, जे लाउए से अलाउए, जे सुंभए से कुसुंभए, आलवंते विवलीयभासए । से तं पडिवक्ख पणं ॥
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अथ किं तत् प्रतिपक्षपदेन ? प्रतिप्रक्षपदेन नवेषु ग्रामाकर-नगरलेट-ब-द्रोणमुख-यसनाध संबाध- सन्निवेशेषु निवेश्यमानेषु अशिवा शिवा, अग्निः शीतल, वि मधुरं, कल्यपालगृहेषु अम्लं स्वादुकं, यो लक्तकः स अलक्तकः, यः लाबुक: ल अलाबुक:, यः सुम्भकः स कुसुम्भक, आलपन् विपरीत भाषकः । तदेतत् प्रतिपक्षपदेन ।
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असंख्यं - असंस्कृत उत्तराध्ययन का चौथा अध्ययन |
जण्णइज्जं यज्ञीय - उत्तराध्ययन का पच्चीसवां अध्ययन ।
पुरिसइ पुरुषकीय
एलइज्जं – एडकीय - उत्तराध्ययन का सातवां अध्ययन ।
वीरियं वीर्य सूत्रकृतांग का आठवां
अध्ययन ।
धम्मो - धर्म --- सूत्रकृतांग का नौवां
अध्ययन ।
मग्गो - मार्ग - सूत्रकृतांग का ग्यारहवां
अध्ययन ।
समोसरणं समवसरण सूत्रकृतांग का बारहवां अध्ययन |
आहत्तहीयं - यथातथ्यीय सूत्रकृतांग का तेरहवां अध्ययन |
गंथे - ग्रन्थ सूत्रकृतांग का चौदहवां
अध्ययन ।
जमईयं -- यमकीय – सूत्रकृतांग का पन्द्रहवां
अध्ययन ।
यह आदान पद से होने वाला नाम है ।
३२३. वह प्रतिपक्ष पद से होने वाला नाम क्या है ?
प्रतिपक्ष पद से होने वाला नाम-नए ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बेट, मडम्ब, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम, सम्बाध और संनिवेशों की रचना के समय सियारिन को अशिवा होने पर भी शिवा कहा जाता है । कहीं अग्नि को शीतल और विष को मधुर कहा जाता है । कलाल के घरों में अम्ल सुरा को स्वादु कहा जाता है। जो लत्त लाक्षारस है वह रक्त होने पर भी अलत्तक [अरक्तक], जो लाबु - प्राप्त करता है, धारण करता है वह अलाबु, (दूधी ) । जो सुम्भक शुभ वर्ण युक्त है वह कुसुम्भक और अधिक बोलने वाला विपरीत भाषक [अ [ अभाषक ] कहलाता है। वह प्रतिपक्ष पद से होने वाला नाम है।
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