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________________ १६४ अम्भूओ रसो जहा अब्भु र मिह एतो, अन्नं कि अस्थि जीवलोगम्मि । जं जिणवयणेणत्था, तिकालजुत्ता वि नज्जंति ॥२॥ २१३. रोहरसलक्खणं रौद्र रसलक्षणम् भयजननरूव- शब्दान्धकारचिन्ता-कवासमुत्यन्नः । सम्मोह-म-विवाद मरणलिङ्गः रसः रौद्रः ॥ भयजणणरूव सद्दंधकारचिता-कहासम्पन्न संमोह- संभम विसायमरणलिंगो रसो रोद्दो ॥१॥ रोड़ो रसो जहा भिउडी - विडंबियमुहा ! संदट्ठोट्ट ! इय हिरमोकिष्णा ! हणसि पसुं असुरणिभा ! रौद्रः रसः यथा भ्रुकुटी - विडम्बितमुख ! संदष्टष्ठ ! इतः रुधिरमवकीर्ण ! | हंसि पशून् अरनिया ! भीमरसिय! अइरोद्द! रोहोसि ॥ २ ॥ भीमरसित अतिरौद्र रौद्रोऽसि ॥ ३१४. वेलणयरसलक्खणं विणओववार-गुज्भ-गुरुवारhastayat बेलणओ नाम रसो, लज्जासंकाकरणलगो ॥१॥ वेलणओ रसो जहा कि लोइयकरणीओ, सज्जनीयतरं लज्जिया मोति । वारेज्जमि गुरुजनो परिवंद जं बहूपोति ॥२॥ ३१५. बीभच्छरस लक्खणं असुइ-कुणव-दुद्दंसणसंजोगभासगंध निष्फण्णो । निव्वेयविहिंसालक्खणो रसो होइ बीभत्सो ॥१॥ बीभत्सो रसो जहा असुइमलभरियनिम्भर, सभावदुग्धसव्वकालं पि । धरणा उसरीरकलि, बहुलकलु विमुंचति ॥ २ ॥ अद्भुतः रसः यथा अद्भुततरमिह इस, अन्यत् किम् अस्ति जीवलोके । यह जिनवचनेनार्या त्रिकालयुक्ता: अपि ज्ञायन्ते ॥ २ ॥ Jain Education International दोडकरलक्षणम्विचार-गुरुदारमर्यादाव्यतिक्रमोत्पन्नः । व्रीडनक नाम रसः, जाकरणलिङ्गः ॥१॥ व्रीडनक: रसः यथा कि 1 लौकिक करणीतः, लज्जनीयतरं लज्जिता अहम् इति वारेज्जम्मि गुरूजनः, परिवन्यते यद्वषतम् ॥२॥ बीभत्सरमलक्षणम् - अशुचिकृ संयोगाभ्यास गंधनिष्पन्नः । निर्वेदविहिनः रसः भवति बीभत्सः ||१|| बीभत्सः रसः यथा - अमरनिर्भर, स्वभावकालम् अपि । धन्यास्तु शरीरल बहुलक विमुञ्चति ॥२॥ For Private & Personal Use Only अणुओदाई अद्भुत रस, जैसे - २. जिन वचन के द्वारा त्रैकालिक अर्थ जान लिए जाते हैं, इस जीव लोक में इससे बढ़कर और क्या आश्चर्य होगा । ३१३. रौद्र रस के लक्षण १. भयंकर रूप शब्द, अन्धकार, चिन्ता और कथा से रौद्र रस उत्पन्न होता है । संमोह, संभ्रम, विषाद और मरण उसके लक्षण हैं । रौद्र रस, जैसे २. भृकुटि से विडम्बित मुख वाले ! होट काटने वाले ! रुधिर बिखेरने वाले ! असुर के समान भयंकर शब्द करने वाले ! अतिशय रौद्र ! तूं पशु को मारता है, बड़ा रोद्र है । ३१४. व्रीडा रस के लक्षण १. विनयोपचार, गुहा और गुरु-स्त्री की मर्यादा के अतिक्रमण से व्रीडा रस उत्पन्न होता है। लज्जा और शंका करना उसके लक्षण हैं । व्रीडा रस, जैसे २. गुरुजन लोगों के सामने वधू के वस्त्र को नमस्कार करते हैं । इस लौकिक क्रिया से अधिक लज्जास्पद और क्या है ? मैं तो इससे लज्जित हो रही हूं । ३१५. बीभत्स रस के लक्षण १. अशुचिपदार्थ, शव, बार-बार अनिष्ट दृश्य के संयोग और दुर्गन्ध से बीभत्स रस उत्पन्न होता है । निर्वेद [ अरुचि या उदासीनता ] और अहिसा जीव हिंसा के प्रति होने वाली स्थानि] उसके लक्षण हैं। बीभत्स रस, जैसे २. अशुचि, मल-समूह के निर्भर, सर्वकाल में स्वभाव से दुर्गन्धित, नाना प्रकार के मलों से कलुषित निकृष्ट शरीर को जो छोड़ देते हैं, धन्य हैं । www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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