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अम्भूओ रसो जहा अब्भु र मिह एतो, अन्नं कि अस्थि जीवलोगम्मि । जं जिणवयणेणत्था, तिकालजुत्ता वि नज्जंति ॥२॥
२१३. रोहरसलक्खणं
रौद्र रसलक्षणम्
भयजननरूव- शब्दान्धकारचिन्ता-कवासमुत्यन्नः । सम्मोह-म-विवाद
मरणलिङ्गः रसः रौद्रः ॥
भयजणणरूव सद्दंधकारचिता-कहासम्पन्न संमोह- संभम विसायमरणलिंगो रसो रोद्दो ॥१॥ रोड़ो रसो जहा भिउडी - विडंबियमुहा ! संदट्ठोट्ट ! इय हिरमोकिष्णा ! हणसि पसुं असुरणिभा !
रौद्रः रसः यथा
भ्रुकुटी - विडम्बितमुख ! संदष्टष्ठ ! इतः रुधिरमवकीर्ण ! | हंसि पशून् अरनिया !
भीमरसिय! अइरोद्द! रोहोसि ॥ २ ॥ भीमरसित अतिरौद्र रौद्रोऽसि ॥
३१४. वेलणयरसलक्खणं
विणओववार-गुज्भ-गुरुवारhastayat
बेलणओ नाम रसो, लज्जासंकाकरणलगो ॥१॥
वेलणओ रसो जहा कि लोइयकरणीओ, सज्जनीयतरं लज्जिया मोति । वारेज्जमि गुरुजनो परिवंद जं बहूपोति ॥२॥
३१५. बीभच्छरस लक्खणं
असुइ-कुणव-दुद्दंसणसंजोगभासगंध निष्फण्णो । निव्वेयविहिंसालक्खणो रसो होइ बीभत्सो ॥१॥
बीभत्सो रसो जहा असुइमलभरियनिम्भर, सभावदुग्धसव्वकालं पि । धरणा उसरीरकलि, बहुलकलु विमुंचति ॥ २ ॥
अद्भुतः रसः यथा अद्भुततरमिह इस, अन्यत् किम् अस्ति जीवलोके । यह जिनवचनेनार्या त्रिकालयुक्ता: अपि ज्ञायन्ते ॥ २ ॥
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दोडकरलक्षणम्विचार-गुरुदारमर्यादाव्यतिक्रमोत्पन्नः । व्रीडनक नाम रसः, जाकरणलिङ्गः ॥१॥ व्रीडनक: रसः यथा
कि
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लौकिक करणीतः, लज्जनीयतरं लज्जिता अहम् इति वारेज्जम्मि गुरूजनः, परिवन्यते यद्वषतम् ॥२॥
बीभत्सरमलक्षणम् - अशुचिकृ
संयोगाभ्यास गंधनिष्पन्नः । निर्वेदविहिनः रसः भवति बीभत्सः ||१||
बीभत्सः रसः यथा - अमरनिर्भर, स्वभावकालम् अपि । धन्यास्तु शरीरल बहुलक विमुञ्चति ॥२॥
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अणुओदाई
अद्भुत रस,
जैसे -
२. जिन वचन के द्वारा त्रैकालिक अर्थ जान लिए जाते हैं, इस जीव लोक में इससे बढ़कर और क्या आश्चर्य होगा ।
३१३. रौद्र रस के लक्षण
१. भयंकर रूप शब्द, अन्धकार, चिन्ता
और कथा से रौद्र रस उत्पन्न होता है । संमोह, संभ्रम, विषाद और मरण उसके लक्षण हैं । रौद्र रस,
जैसे
२. भृकुटि से विडम्बित मुख वाले ! होट काटने वाले ! रुधिर बिखेरने वाले ! असुर के समान भयंकर शब्द करने वाले ! अतिशय रौद्र ! तूं पशु को मारता है, बड़ा रोद्र है ।
३१४. व्रीडा रस के लक्षण
१. विनयोपचार, गुहा और गुरु-स्त्री की मर्यादा के अतिक्रमण से व्रीडा रस उत्पन्न होता है।
लज्जा और शंका करना उसके लक्षण हैं । व्रीडा रस, जैसे
२. गुरुजन लोगों के सामने वधू के वस्त्र को नमस्कार करते हैं । इस लौकिक क्रिया से अधिक लज्जास्पद और क्या है ? मैं तो इससे लज्जित हो रही हूं ।
३१५. बीभत्स रस के लक्षण
१. अशुचिपदार्थ, शव, बार-बार अनिष्ट दृश्य के संयोग और दुर्गन्ध से बीभत्स रस उत्पन्न होता है ।
निर्वेद [ अरुचि या उदासीनता ] और अहिसा जीव हिंसा के प्रति होने वाली स्थानि] उसके लक्षण हैं।
बीभत्स रस,
जैसे
२. अशुचि, मल-समूह के निर्भर, सर्वकाल में स्वभाव से दुर्गन्धित, नाना प्रकार के मलों से कलुषित निकृष्ट शरीर को जो छोड़ देते हैं, धन्य हैं ।
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