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आठवां प्रकरण : सूत्र ३०-३१२
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हवइ पुण सत्तमी तं, इमम्मि आधारकालभावे य । आमंतणी भवे अट्टमी उ जह हे जुवाण ! त्ति ॥६॥ —से तं अटूनामे ॥
भवति पुनः सप्तमी सा, अस्मिन् आधारकालभावे च । आमन्त्रणी भवेत् अष्टमी तु, यथा-हे युवन् ! इति ॥६॥
तदेतद् अष्टनाम।
६. आधार, काल और भाव में सप्तमी विभक्ति होती है, जैसे--इमम्मि--इसमें । आमन्त्रण में अष्टमी विभक्ति होती है, जैसे-हे जुवाण-हे युवक ! वह अष्ट नाम है।
नवनाम (काव्यरस)-पदम् अथ किं तद् नवनाम ? नवनाम -नव काव्यरसा: प्रज्ञप्ताः, तद्यथागाथावीरः शृङ्गारः अद्भुतश्च, रौद्रश्च भवति बोधव्यः । वीडनक: बीभत्स:, हास्य: करुण: प्रशान्तश्च ॥
नव नाम (काव्य रस)-पद ३०९. वह नव नाम क्या है ?
नवनाम-काव्य रस के नौ प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेगाथावीर, शृंगार, अद्भुत, रौद्र, व्रीडा, बीभत्स, हास्य, करुण और प्रशान्त।
३१०. वीर रस के लक्षण
१. परित्याग [दान], तपश्चरण और शत्रु जनों के विनाश में वीर रस उत्पन्न होता
नवनाम (कव्वरस)-पदं ३०९. से कि तं नवनामे ? नवनामे
नव कव्वरसा पण्णत्ता, तं जहागाहावीरो सिंगारो अब्भुओ य रोबो य होइ बोधव्वो। वेलणओ बीभच्छो,
हासो कलुणो पसंतो य ॥१॥ ३१०. वीररसलक्खणं
तत्थ परिच्चायम्मि य, तवचरणे सत्तुजणविणासे य । अणणुसय-धिति-परक्कलिंगो वोरो रसो होइ ॥१॥ वोरो रसो जहासो नाम महावोरो, जो रज्जं पयहिऊण पव्वइओ। काम-क्कोह-महासत्तु
पक्खनिग्घायणं कुणइ ॥२॥ ३११. सिंगाररसलक्खणंसिंगारो नाम रसो, रतिसंजोगाभिलाससंजणणो । मंडण-विलास-विब्बोयहास-लीला-रमणलिंगो ॥१॥ सिंगारो रसो जहामहुरं बिलास-ललियं, हिययुम्मादणकरं जुवाणाणं । सामा सदुद्दाम, दाएती मेहलादामं ॥२॥
वीररसलक्षणम् - तत्र परित्यागे च, तपश्चरणे शत्रुजनविनाशे च । अननुशय-धृति-पराक्रमलिङ्गः वीरः रस: भवति ॥१॥ वीरः रसः यथा -- स नाम महावीरः, य: राज्यं प्रहाय प्रवजितः । काम-क्रोध-महाशत्रुपक्षनिर्घातनं करोति ॥२॥
अननुशय [गर्व या पश्चात्ताप न करना], धृति और पराक्रम उसके लक्षण हैं । वीर रस, जैसे२. जो राज्य को छोड़ कर प्रवजित हो गया और काम, क्रोध आदि महाशत्रुओं का निग्रह करता है, वह महावीर है।
३११. शृंगार रस के लक्षण
१. रति और संयोग की अभिलाषा से शृंगार रस उत्पन्न होता है। विभूषा, विलास [चक्षु आदि का विभ्रम] बिब्बोक [काम चेष्टा], हास्य, लीला और रमण उसके लक्षण हैं ।
शृङ्गाररसलक्षणम् - शृङ्गारः नाम रस:, रतिसंयोगाभिलाषसंजननः । मण्डन-विलास-बिब्बोकहास्य-लीला-रमणलिङ्गः ॥ शृङ्गार: रसः यथामधुरं विलास-ललितं, हृदयोन्मादनकरं यूनाम् । श्यामा शब्दोद्दाम, दर्शयति मेखलादाम ॥२॥
शृंगार रस, जैसे--- २. श्यामा स्त्री मधुर, विलास से ललित, युवकों के हृदय को उन्मत्त करने वाला, धुंघरू के शब्दों से मुखर मेखला सूत्र [करधनी] दिखलाती है।
३१२. अब्भुतरसलक्खणं
विम्हयकरो अपुवो, ऽनुभूयपुवो य जो रसो होइ। हरिसविसायुप्पत्तिलक्खणो अब्भुओ नाम ॥१॥
अद्भुतरसलक्षणम् - विस्मयकरः अपूर्वः, अनुभूतपूर्वश्च यः रस: भवति । हर्ष विषादोत्पत्तिलक्षणः
अद्भुत: नाम ॥१॥
३१२. अद्भुत रस के लक्षण
१. अपूर्व या अनुभूतपूर्व के देखने पर जो विस्मयकारी रस उत्पन्न होता है वह अद्भुत रस है।
हर्ष और विषाद उसके लक्षण हैं।
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