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सत्त सरा तओ गामा, मुच्छणा एगवीसई। ताणा एगुणपण्णासं समतं
- से तं सत्तनामे ॥
सरमंडलं ।। १४ ।।
अट्ठनाम ( वयणविमति ) -पदं
३०८. से किं तं अट्ठनामे ? अट्ठनामेअट्ठविहा वयणविभत्ती पण्णत्ता,
तं जहा-गाहा
निसे पढमा होइ,
वितिया उबएस
तइया करणम्मि कया, उत्थी संपवावणे ॥१॥
पंचमी व अवाया, छुट्टी सस्सामिवायणे । समी निहाणत्वे, अद्रुमाऽऽमंतणी भवे ||२|| तत्थ पढमा विभत्ती, निद्देसे - सो इमो अहं वत्ति । बिइया पुण उबएसे
भणकुण इमं वतं वत्ति ॥३॥ तइया करणम्मि कया
भणियं व कथं व तेण व मए वा । हंदि नमो साहाए, हवइ चउत्थी पयाणम्मि ॥४॥
अवणय गेव्ह य एत्तो, इतो वा पंचमी अवायाणे । छुट्टी तस्स इमस्स व गयस्स वा सामिसंबंधे ॥५॥
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सप्त स्वराः त्रयः ग्रामाः,
मूर्च्छना एकविंशतिः । ताना एकोनपञ्चाशत् समाप्तं
स्वरमण्डलम् ॥१४॥ - तदेतत् सप्तनाम |
अष्टनाम ( वचनविभक्ति) -पदम्
अथ किं तद् अष्टनाम ? अष्टनाम अष्टविधा वचनविभक्तिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा
गाथा
निर्देशे प्रथमा भवति, द्वितीया उपदेशने । तृतीया करणे करणे कृता, चतुर्थी संप्रदाने ॥१॥ पञ्चमी च अपादाने, षष्ठी स्वस्वामिवचने । सप्तमी सन्निधानायें अष्टम्यामन्त्रणी भवेत् ॥२॥
तत्र प्रथमा विभक्तिः, निर्देशेस अयम् अहं वा इति । द्वितीया पुनः उपदेशे
भण कुरू इदं वा तद् वा ॥३॥ तृतीया करणे कृता
भणित वा कृतं वा तेन वा मया वा । हंदि नमः स्वाहा, भवति
चतुर्थी
प्रदाने ॥४॥
अपनय गृहाण च एतस्मात्, इतः वा पंचमी अपादाने। षष्ठी तस्य अस्य वा, गतस्य वा स्वामिसम्बन्धे ||५||
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अणुओगदाराई
१४. सात स्वर, तीन ग्राम और इक्कीस मूच्र्छनाएं हैं ।
प्रत्येक स्वर सात तानों से गाया जाता है इसलिए तान के ४९ भेद हो जाते हैं । इस प्रकार स्वर मण्डल समाप्त होता है। वह सप्त नाम है।
अष्ट नाम ( वचन विभक्ति) - पद ३०८ वह अष्ट नाम क्या है ?
अष्टनाम वचन विभक्ति के आठ प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे
गाथा
१. निर्देश में प्रथमा,
उपदेश में द्वितीया,
करण में तृतीया,
सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है। २. अपादान में पंचमी,
स्वस्वामि वचन [संबंध ] में षष्ठी,
संनिधान [आधार ] में सप्तमी और आमंत्रण में अष्टमी विभक्ति होती है। ३. निर्देश में प्रथमा विभक्ति होती है, जैसे
सो- वह, इमो - यह, अहं - मैं उपदेश में द्वितीया विभक्ति होती है, जैसे
- इमं भण - यह कह, तं कुणसु-वह कर । ४. करण में तृतीया विभक्ति होती है, जैसेतेण भणियं उसने कहा,
मए कयं मैंने किया ।
हंदि, नमो और स्वाहा के योग में तथा सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है, जैसे -- नमो देवेभ्यः देवता को नमस्कार, स्वाहा अग्नये -- अग्नि के लिए स्वाहा, उपाध्यायाय गां ददाति उपाध्याय को गाय देता है।
५. अपादान में पंचमी विभक्ति होती है, जैसे -- एत्तो अपणय -- इससे दूर कर, इतो गिव्ह -- इससे ग्रहण कर । स्वस्वामि संबंध में षष्ठी विभक्ति होती है, जैसे तस्स इमं
उसकी यह वस्तु है, इमस्स इमं वत्थु - इसकी यह वस्तु है, गयस्स इयं वत्थु गए हुए व्यक्ति की यह वस्तु है ।
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