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________________ १६१ आठवां प्रकरण : सूत्र ३०७ अक्खरसमं पदसमं, तालसमं लयसमं गहसमं च । निस्ससिउस्ससियसम, संचारसमं सरा सत्त ॥८॥ अक्षरसमं पदसम, तालसमं लयसमं ग्रहसमञ्च । नि:श्वसितोच्छ्वसितसमं, सञ्चारसमं स्वराः सप्त ॥८॥ निहोसं सारवतं च हेउजुत्तमलंकियं । उवणीयं सोवयारं च, मियं महुरमेव य ॥६॥ निर्दोष सारवन्तं हेतुयुक्तमलंकृतम् उपनीतं सोपचारञ्च, मितं मधुरमेव च ॥९॥ ८. सप्तस्वर सीभर-जिसमें सातों स्वर __ अक्षरसम, पदसम, तालसम, लयसम, ग्रहसम, निःश्वसितोच्छ्वसितसम और संचार सम हो। [देखें ठाणं सूत्र ७/४८ गाथा १३ का अनुवाद | ९. गेय पदों के आठ गुण इस प्रकार हैंनिर्दोष-बत्तीस दोष रहित होना । सारवत्-अर्थयुक्त होना। अलंकृत-हेतु युक्त होना । उपनीत–उपसंहार युक्त होना । सोपचार-कोमल, अविरुद्ध और अलज्जनीय का प्रतिपादन करना अथवा व्यंग्य या हंसी युक्त होना। मित-पद और उसके अक्षरों से परिमित होना। मधुर-शब्द, अर्थ और प्रतिपादन की दृष्टि से प्रिय होना। १०. वृत्त-छन्द तीन प्रकार का होता है सम-जिसमें चरण और अक्षर सम हो, चार चरण हों और उनमें लघु-गुरु अक्षर समान हों। अर्द्ध सम---जिसमें चरण या अक्षरों में से कोई एक सम हो या तो चार चरण हो या विषम चरण होने पर भी उनमें लघु गुरु अक्षर समान हों। सर्व विषम-जिसमें चरण और अक्षर सब विषम हो । चौथा प्रकार उपलब्ध नहीं समं अद्धसमं चेव, सम्वत्थ विसमं च । तिणि वित्तप्पयाराई, चउत्थं नोवलब्भई ॥१०॥ समम सर्वत्र विषमं त्रयः चतुर्थः अर्द्धसमञ्चव, च यत् । वृत्तप्रकारा:, नोपलभ्यते ॥१०॥ सक्कया पायया चेव, संस्कृता प्राकृता चैव, भणितीओ होंति दोण्णि वि । भणिती भवत: द्वे अपि । सरमंडलंमि गिज्जंते, स्वरमण्डले गीयमाने, पसत्था इसिभासिया ॥११॥ प्रशस्ते ऋषिभाषिते ॥११॥ केसी गायइ महुरं? कीदृशी गायति मधुरं ? केसी गायइ खरं च रुक्खं च? कीदृशी गायति खरञ्च रूक्षञ्च ? केसी गायइ चउरं? कोदशी गायति चतुरं केसी य विलंबियं?दुतं केसी? कीदृशी च विलम्बितं ? द्रुतं कीदृशी? विस्सरं पुण केरिसी?॥१२॥ विस्वरं पुनः कीदृशी ? ॥१२॥ ११. भणितियां -गीत की भाषाएं दो हैं १. संस्कृत २. प्राकृत ये दोनों प्रशस्त और ऋषिभासित हैं । ये स्वर-मंडल में गाई जाती हैं। १२. मधुर गीत कौन गाती है ? परुष और रूखा गीत कौन गाती है ? चतुर गीत कौन गाती है ? विलम्बित गीत कौन गाती है ? द्रुत -शीघ्र गीत कौन गाती है ? विस्वर गीत कौन गाती है ? १३. श्यामा स्त्री मधुर गीत गाती है। काली स्त्री परुष और रूखा गीत गाती है। गोरी स्त्री चतुर गीत गाती है । काणी स्त्री विलम्बित गीत गाती है। अधी स्त्री द्रुत गीत गाती है । पिंगला स्त्री विस्वर गीत गाती है। सामा गायइ महुरं, श्यामा गायति मधुरं, काली गायइ खरं च रुक्खं च । काली गायति खरञ्च रूक्षञ्च । गोरी गायइ चउरं, गौरी गायति चतुरं, काणा य विलंबियं, दुतं अंधा॥ काणा च विलम्बितं, द्रुतम् अग्धा ॥ विस्सरं पुण पिंगला ॥१३॥ विस्वरं पुनः पिङ्गला ॥१३॥ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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