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आठवां प्रकरण : सूत्र ३०७
अक्खरसमं पदसमं, तालसमं लयसमं गहसमं च । निस्ससिउस्ससियसम, संचारसमं सरा सत्त ॥८॥
अक्षरसमं
पदसम, तालसमं लयसमं ग्रहसमञ्च । नि:श्वसितोच्छ्वसितसमं, सञ्चारसमं स्वराः सप्त ॥८॥
निहोसं सारवतं च हेउजुत्तमलंकियं । उवणीयं सोवयारं च, मियं महुरमेव य ॥६॥
निर्दोष सारवन्तं हेतुयुक्तमलंकृतम् उपनीतं
सोपचारञ्च, मितं मधुरमेव च ॥९॥
८. सप्तस्वर सीभर-जिसमें सातों स्वर __ अक्षरसम, पदसम, तालसम, लयसम,
ग्रहसम, निःश्वसितोच्छ्वसितसम और संचार सम हो। [देखें ठाणं सूत्र ७/४८
गाथा १३ का अनुवाद | ९. गेय पदों के आठ गुण इस प्रकार हैंनिर्दोष-बत्तीस दोष रहित होना । सारवत्-अर्थयुक्त होना। अलंकृत-हेतु युक्त होना । उपनीत–उपसंहार युक्त होना । सोपचार-कोमल, अविरुद्ध और अलज्जनीय का प्रतिपादन करना अथवा व्यंग्य या हंसी युक्त होना। मित-पद और उसके अक्षरों से परिमित होना। मधुर-शब्द, अर्थ और प्रतिपादन की
दृष्टि से प्रिय होना। १०. वृत्त-छन्द तीन प्रकार का होता है
सम-जिसमें चरण और अक्षर सम हो, चार चरण हों और उनमें लघु-गुरु अक्षर समान हों। अर्द्ध सम---जिसमें चरण या अक्षरों में से कोई एक सम हो या तो चार चरण हो या विषम चरण होने पर भी उनमें लघु गुरु अक्षर समान हों। सर्व विषम-जिसमें चरण और अक्षर सब विषम हो । चौथा प्रकार उपलब्ध नहीं
समं अद्धसमं चेव, सम्वत्थ विसमं च । तिणि वित्तप्पयाराई, चउत्थं नोवलब्भई ॥१०॥
समम सर्वत्र विषमं त्रयः चतुर्थः
अर्द्धसमञ्चव,
च यत् । वृत्तप्रकारा:, नोपलभ्यते ॥१०॥
सक्कया पायया चेव,
संस्कृता प्राकृता चैव, भणितीओ होंति दोण्णि वि । भणिती भवत: द्वे अपि । सरमंडलंमि गिज्जंते,
स्वरमण्डले गीयमाने, पसत्था इसिभासिया ॥११॥ प्रशस्ते ऋषिभाषिते ॥११॥ केसी गायइ महुरं?
कीदृशी गायति मधुरं ? केसी गायइ खरं च रुक्खं च? कीदृशी गायति खरञ्च रूक्षञ्च ? केसी गायइ चउरं?
कोदशी गायति चतुरं केसी य विलंबियं?दुतं केसी? कीदृशी च विलम्बितं ? द्रुतं कीदृशी?
विस्सरं पुण केरिसी?॥१२॥ विस्वरं पुनः कीदृशी ? ॥१२॥
११. भणितियां -गीत की भाषाएं दो हैं
१. संस्कृत २. प्राकृत ये दोनों प्रशस्त और ऋषिभासित हैं । ये
स्वर-मंडल में गाई जाती हैं। १२. मधुर गीत कौन गाती है ?
परुष और रूखा गीत कौन गाती है ? चतुर गीत कौन गाती है ? विलम्बित गीत कौन गाती है ? द्रुत -शीघ्र गीत कौन गाती है ?
विस्वर गीत कौन गाती है ? १३. श्यामा स्त्री मधुर गीत गाती है।
काली स्त्री परुष और रूखा गीत गाती है। गोरी स्त्री चतुर गीत गाती है । काणी स्त्री विलम्बित गीत गाती है। अधी स्त्री द्रुत गीत गाती है । पिंगला स्त्री विस्वर गीत गाती है।
सामा गायइ महुरं,
श्यामा गायति मधुरं, काली गायइ खरं च रुक्खं च । काली गायति खरञ्च रूक्षञ्च । गोरी गायइ चउरं,
गौरी गायति चतुरं, काणा य विलंबियं, दुतं अंधा॥ काणा च विलम्बितं, द्रुतम् अग्धा ॥
विस्सरं पुण पिंगला ॥१३॥ विस्वरं पुनः पिङ्गला ॥१३॥
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