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षड्जग्रामस्य सप्त मूर्छनाः ३०४. षड्ज ग्राम की सात मूर्च्छनाएं प्रज्ञप्त हैं, प्रज्ञप्ता:, तद्यथा
जैसेमङ्गो कौरव्या हरित् च,
मंगी, कौरवीया, हरित, रजनी, सारकान्ता, रजनी च सारकान्ता च ।
सारसी और शुद्धषड्जा। षष्ठी च सारसी नाम्नी, शुद्धषड्जा च सप्तमी ॥१॥
मध्यमग्रामस्य सप्त मूर्च्छनाः ३०५. मध्यम ग्राम की सात मूर्छनाएं प्रज्ञप्त हैं, प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
जैसेउत्तरमन्द्रा रजनी,
उत्तरमंद्रा, रजनी, उत्तरा, उत्तरायता, अश्वउत्तरा उत्तरायता ।
क्रान्ता, सौवीरा और अभिरुद्गता । अश्वक्रान्ता च सौवीरा, अभिरु (द्गता) भवति सप्तमी ॥१॥
आठवां प्रकरण : सूत्र ३०२-३०७ ३०४. सज्जगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ
पण्णताओ, तं जहामंगी कोरव्वीया हरी य, रयणी य सारकंता या छट्ठी य सारसी नाम,
सुद्धसज्जा य सत्तमा ॥१॥ ३०५. मज्झिमगामस्स णं सत्त मुच्छ
णाओ पण्णत्ताओ, तं जहाउत्तरमंदा रयणी, उत्तरा उत्तरायता। आसकंता य सोवीरा,
अभिरु हवति सत्तमा ॥१॥ ३०६. गंधारगामस्स णं सत्त मुच्छ
णाओ पण्णत्ताओ, तं जहानंदी य खुड्डिया पूरिमा य चउत्थी य सुद्धगंधारा। उत्तरगंधारा वि य, पंचमिया हवइ मुच्छा उ ॥१॥ सुठुत्तरमायामा, सा छट्टी नियमसो उ नायव्वा । अह उत्तरायता,
कोडिमाय सासत्तमो मुच्छा ॥२॥ ३०७. सत्त सरा कओ हवंति?
गीयस्स का हवइ जोणी? कइसमया ऊसासा? कइ वा गीयस्स आगारा?॥१॥
गान्धारग्रामस्य सप्त मूच्र्छनाः ३०६. गान्धार ग्राम की सात मूर्छनाएं प्रज्ञप्त हैं, प्रज्ञप्ताः , तद्यथा
जैसेनन्दी च क्षुद्रिका पूरिका,
नंदी, क्षुद्रिका, पूरिका, शुद्धगान्धारा, उत्तरच चतुर्थी च शुद्धगान्धारा।
गान्धारा, सुष्ठुतर आयामा, उत्तरायता और उत्तरगान्धारा अपि च,
कोटिमा । पञ्चमिका भवति मूर्छा तु ॥१॥ सु ठूत्तरायामा, सा षष्ठी नियमतस्तु ज्ञातव्या । अथ उत्तरायता, कोटिमा च सा सप्तमी मूर्छा ॥२॥
सप्त स्वराः कुतः भवन्ति ? गीतस्य का भवति योनि: ? कतिसमया: उच्छ्वासा: ? कति वा गीतस्य आकारा:? ॥१॥
सत्त सरा नाभोओ, हवंति गीयं च रुण्णजोणीयं । पायसमा ऊसासा, तिणि य गोयस्स आगारा॥२॥
सप्त स्वरा: नाभितः, भवन्ति गीतं च रुदितयोनिकम । पादसमाः उच्छ्वासाः, त्रयश्च गीतस्य आकारा: ॥२॥
३०७.१. सात स्वर किनसे उत्पन्न होते हैं ? गीत
की योनि [जाति] क्या है? उसका उच्छ्वास काल [परिमाणकाल] कितना होता है और उसके आकार [आकृतियां, स्वरूप] कितने होते हैं ? २. सातों स्वर नाभि से उत्पन्न होते हैं ।
रुदन गीत की योनि है, जितने समय में किसी छन्द का एक चरण गाया जाता है, उतना उसका उच्छ्वास काल होता है
और उसके आकार तीन हैं। ३. गीत का आरम्भ करते समय आदि में मृदु, आरोहण करते समय मध्य में तीव्र और अवरोहण करते समय अन्त में मन्द-ये तीन गीत के आकार हैं। ४. गीत के छह दोष, आठ गुण, तीन वृत्त
और दो भणितियां [गीत की भाषा] होती हैं । जो इन्हें जानता है वही सुशिक्षित गायक रंग-मंच पर गाता है।
आइमिउ आरभंता,
आदिमृदु आरममाणाः, समुन्वहंता य मज्झयारंमि। समुद्वहन्तश्च मध्यकारे। अवसाणे य झवेंता,
अवसाने च क्षपयन्त:, तिणि वि गीयस्स आगारा ॥३॥
त्रयोऽपि गीतस्य आकाराः ॥३॥ छद्दोसे अद्वगुणे,
षड्दोषाः अष्टगुणाः तिणि य वित्ताई दोणि भणितीओ। त्रीणि च वृत्तानि च मणिती । जो नाही सो गाहिइ,
यः ज्ञास्यति स गास्यति, सुसिक्खिओ रंगमज्झमि ॥४॥ सुशिक्षितः रंगमध्ये ॥४॥
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