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अणुओगदाराई
४. झल्लरी-झांझ से मध्यम स्वर निकलता
चउचलणपइट्ठाणा, गोहिया पंचम सर। आडंबरो धेवइयं, महाभेरी य सत्तमं ॥२॥
चतुश्चरणप्रतिष्ठाना, गोधिका पञ्चमं स्वरम् । आडम्बरः धैवतिक, महाभेरी च सप्तमम् ॥२॥
५. चार चरणों पर प्रतिष्ठित गोधिका से
पंचम स्वर निकलता है। ६. ढोल से धैवत स्वर निकलता है। ७. महाभेरी से निषाद स्वर निकलता है।
३०२. इन सातों स्वरों के सात स्वर लक्षण प्रज्ञप्त
हैं, जैसे१. षड्ज स्वर वाले व्यक्ति आजीविका पाते हैं । उनका प्रयत्न निष्फल नहीं होता। उनको गाय, पुत्र और मित्रों की उपलब्धि होती है तथा वे स्त्रियों के प्रिय होते हैं। २. ऋषभ स्वर वाले व्यक्ति को ऐश्वर्य, सेनापतित्व, धन, वस्त्र, गंध, अलंकार, स्त्री, शयन और आसन प्राप्त होते हैं।
३०२. एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त
सरलक्खणा पण्णत्ता, तं जहासज्जेण लहइ वित्ति, कयं च न विणस्सइ। गावो पुत्ता य मित्ता य, नारीणं होई वल्लहो ॥१॥ रिसभेण उ एसज्ज, सेणावच्चं धणाणि य। वत्थगंधमलंकारं, इत्थीओ सयणाणि य ॥२॥ गंधारे गोतजुत्तिण्णा, विज्जवित्ती कलाहिया। हवंति कइणो पण्णा, जे अण्णे सत्थपारगा ॥३॥ मज्झिमसरमंता उ, हवंति सुहजीविणो। खायई पियई देई, मज्झिमसरमस्सिओ ॥४॥ पंचमसरमंता उ, हवंति पुहवीपती। सूरा संगहकत्तारो, अणेगगणनायगा ॥५॥ धेवयसरमंता उ, हवंति दुहजीविणो। साउणिया वाउरिया, सोयरिया य मुट्टिया॥६॥ नेसायसरमंता उ, हवंति हिंसगा नरा। जंघाचरा लेहवाहा, हिंडगा भारवाहगा ॥७॥
एतेषां सप्तानां स्वराणां सप्त स्वरलक्षणानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-- षड्जेन लभते वृत्ति, कृतं च न विनश्यति । गावः पुत्राश्च मित्राणि च, नारीणां भवति वल्लभः ॥१॥ ऋषभेण तु ऐश्वर्य, सैनापत्यं धनानि च। वस्त्रगन्धमलंकारं, स्त्रियः शयनानि च ॥२॥ गान्धारे गीतयुक्तिज्ञाः, वैद्यवृत्तयः कलाधिकाः। भवन्ति कवयः प्राज्ञाः, ये अन्ये शास्त्रपारगाः ॥३॥ मध्यमस्वरवन्तस्तु, भवन्ति सुखजीविनः । खादन्ति पिबन्ति ददति, मध्यमस्वरमाश्रिताः ॥४॥ पञ्चमस्वरवन्तस्तु, भवन्ति पृथिवीपतयः । शूराः संग्रहकर्तारः, अनेकगणनायकाः ॥५॥ धैवतस्वरवन्तस्तु, भवन्ति दुःखजीविनः । शाकुनिकाः वागुरिकाः, शौकरिकाश्च मौष्टिकाः॥६॥ निषादस्वरवन्तस्तु, भवन्ति हिसका: नराः । जंघाचराः लेखवाहाः, हिण्डका: भारवाहकाः ॥७॥
३. गान्धार स्वर वाले व्यक्ति गाने में कुशल, चिकित्सा से आजीविका करने वाले, कला में कुशल, कवि, प्राज्ञ और विभिन्न शास्त्रों के पारगामी होते हैं। ४. मध्यम स्वर वाले व्यक्ति सुख से जीते हैं,
खाते-पीते हैं और दान करते हैं।
५. पंचम स्वर वाले व्यक्ति राजा, शूर,
संग्रहकर्ता और अनेक गणों के नायक होते
६. धैवत स्वर वाले व्यक्ति कष्ट जीवी,
पक्षियों, हिरणों और सूअरों को मारने वाले तथा घूसेबाज (मुष्टि मल्ल) होते
७. निषाद स्वर वाले व्यक्ति हिंसक, जंघाचार (तेज गति से चलने वाले दूत), संदेशवाहक, घुमक्कड़ और भारवाही होते हैं ।
३०३. एएसि णं सत्तण्हं सराणं तओ एतेषां सप्तानां स्वराणां त्रयः ३०३. इन सात स्वरों के तीन ग्राम प्रज्ञप्त हैं, जैसे
गामा पण्णत्ता, तं जहा-- ग्रामा: प्रज्ञप्ताः, तद्यथा षड्ज- ---षड्ज ग्राम, मध्यम ग्राम और गान्धार सज्जगामे मज्झिमगामे गंधार- ग्रामः मध्यमग्राम: गान्धारग्रामः ।। ग्राम । गामे ॥
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