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________________ आठवां प्रकरण मूल पाठ सत्तनाम (सरमंडल)-पदं २६८. से कि तं सतनामे ? सत्तनामे सत्त सरा पण्णत्ता, तं जहागाहा.... सज्जे रिसभे गंधारे, मज्झिमे पंचमे सरे। धेवए चेव नेसाए, सरा सत्त वियाहिया ॥१॥ संस्कृत छाया सप्तनाम (स्वरमण्डल)-पदम् अथ किं तत् सप्तनाम ? सप्त- नाम-सप्त स्वरा: प्रज्ञप्ता:. तद्यथा गाथा-- षड्ज: ऋषभः गान्धारः, मध्यमः पञ्चमः स्वरः । धैवतः चैव निषादः, स्वरा: सप्त व्याहुता: ॥१॥ हिन्दी अनुवाद सप्त नाम (स्वर मंडल)-पद २९८. वह सप्त नाम क्या है ? सप्तनाम-सप्त स्वर प्रज्ञप्त हैं, जैसेगाथा-१. षडज, २. ऋषभ, ३. गान्धार, ४. मध्यम, ५. पंचम, ६. धैवत ७. निषाद ये सात स्वर हैं। २६६. एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त एतेषां सप्तानां स्वराणां सप्त २९९. इन सात स्वरों के सात स्वर स्थान प्रज्ञप्त सरदाणा पण्णत्ता, तं जहा- स्वरस्थानानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-- सज्जं च अग्गजीहाए, षड्जञ्च अग्रजिह्वया, १. षड्ज का स्थान जिह्वा का अग्रभाग । उरेण रिसभं सरं। उरसा ऋषभं स्वरम । २. ऋषभ का वक्ष । कंठग्गएण गंधारं, कण्ठोद्गतेन गान्धारं, ३. गान्धार का कण्ठ । मज्झजीहाए मज्झिमं ॥१॥ मध्यजिह्वया मध्यमम् ॥१॥ ४. मध्यम का जिह्वा का मध्य भाग । नासाए पंचमं बूया, नासया पञ्चमं ब्रूयात्, ५. पंचम का नासिका। दंतोळेण य धेवतं। दन्तौष्ठेन च धैवतम् । ६. धैवत का दांत और होठ का संयोग । भमुहक्खेवेण नेसायं, धूरक्षेपेण निषाद, ७. निषाद का भ्रू-उत्क्षेप [जहां भौंह का सरढाणा वियाहिया ॥२॥ स्वरस्थानानि व्याहृतानि ॥२॥ उत्क्षेप होता है]। ये सात स्वर स्थान हैं । ३००. सत्त सरा जोवनिस्सिया पण्णता, सप्त स्वराः जीवनिधिता: ३००. जीवनिश्रित (जीव से निकलने वाले) स्वर तं जहाप्रज्ञप्ताः , तद्यथा सात प्रज्ञप्त हैं, जैसे -- सज्ज रवइ मयूरो, षडज रौति मयूरः, १. मयूर षड्ज स्वर में बोलता है। कुक्कुडो रिसभं सरं। कुक्कट: ऋषभ २. कुक्कुट ऋषभ स्वर में बोलता है। हंसो रवइ गंधारं, हंसः रौति गान्धारं, ३. हंस गान्धार स्वर में बोलता है। मज्झिमं तु गवेलगा ॥१॥ मध्यमं तु गवेलकाः ॥१॥ ४. गवेलक [मेमना मध्यम स्वर में बोलता अह कुसुमसंभवे काले, अथ कुसुमसंभवे काले, कोइला पंचमं सरं। कोकिला: पंचमं स्वरम् । ५. बसन्त में कोयल पंचम स्वर में बोलता है। छठं च सारसा कुंचा, षष्ठं च सारसाः क्रौञ्चाः, ६. क्रौंच और सारस धैवत स्वर में बोलते हैं । नेसायं सत्तमं गओ ॥२॥ निषादं सप्तमं गजः ।।२।। ७. हाथी निषाद स्वर में बोलता है। ३०१. सत्त सरा अजीवनिस्सिया पण्णत्ता, तं जहासज्ज रवइ मुयंगो, गोमुही रिसभं सरं। संखो रवइ गंधारं, मज्झिमं पुण झल्लरी ॥१॥ सप्त स्वराः अजीवनिधिता: प्रज्ञप्ता:, तद्यथाषड्जं रौति मृदंगः, गोमुखी ऋषभं स्वरम् । शंङ्खः रौति गान्धारं, मध्यमं पुन: मल्लरी ॥१॥ ३०१. अजीवनिश्रित (अजीव से निकलने वाले) स्वर सात प्रज्ञप्त हैं, जैसे१. मृदङ्ग से षड्ज स्वर निकलता है । २. गोमुखी [नरसिंघा नामक बाजे] से ऋषभ स्वर निकलता है। ३. शंख से गान्धार स्वर निकलता है । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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