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________________ मिक । सातवां प्रकरण : सूत्र २८५-२८६ १६६ २८६. से कि तं पारिणामिए? पारि- अथ किस पारिणामिकः ? पारि- २८६. वह पारिणामिक क्या है ? णामिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- णामिकः द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- पारिणामिक के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे साइ-पारिणामिए य अणाइ-पारि- सादि-पारिणामिकश्च अनादि- -सादि पारिणामिक और अनादि पारिणाणामिए य॥ पारिणामिकश्च । २८७. से कि तं साइ-पारिणामिए ? अथ किस सादि-पारिणामिक: ? २८७. वह सादि पारिणामिक क्या है ? साइ-पारिणामिए अणेगविहे सादि-पारिणामिकः अनेकविधः सादि पारिणामिक के अनेक प्रकार प्रज्ञप्त पण्णत्ते, तं जहाप्रज्ञप्तः, तद्यथा हैं, जैसे-जीर्ण सुरा, जीर्ण गुड़, जीर्ण घी, जीर्ण गाहागाथा चावल, अभ्र, अभ्रवृक्ष, संध्या, गन्धर्वनगर, जुण्णसुरा जुण्णगुलो, जीर्णसुरा जीर्णगुरुः उल्कापात, दिशादाह, गर्जन, विद्युत्, निर्घात, जुण्णघयं जुण्णतंदुला चेव । जीर्णघृतं जीर्णतंदुलाः चैव । यूपक, यक्षादीप्त, धूमिका, महिका, रजघात, अब्भा य अब्भरुक्खा, अभ्राणि च अभ्रवृक्षाः, चन्द्रग्रहण, सूर्य ग्रहण, चन्द्रपरिवेश, सूर्यपरिसंझा गंधवनगरा य ॥१॥ सन्ध्या गन्धर्वनगराणि च ॥ वेश, प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, उदकउक्कावाया दिसादाहा गज्जियं __ उल्कापाता: दिशावाहाः गजितं मत्स्य, कपिहसित, अमोघा, वर्ष (क्षेत्र), वर्षविज्जू निग्घाया जूवया जक्खा- विद्युत निर्घाताः यूपका: यक्षादीप्ताः धर, ग्राम, नगर, घर, पर्वत, पाताल, भवन, लित्ता धूमिया महिया रयुग्धाओ धमिकाः महिकाः रजोद्घाताः नरक, रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, चंदोवरागा सूरोवरागा चंदपरि- चन्द्रोपरागाः सूरोपरागाः चन्द्रपरि पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमा, तमस्तमा । वेसा सरपरिवेसा पडिचंदा पडि- वेषाः सरपरिवेषाः प्रतिचन्द्राः प्रति- __सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मसरा इंदधण उदगमच्छा कवि- सराः इन्द्रधनषि उवकमत्स्याः लोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, हसिया अमोहा वासा वासधरा कपिहसितानि अमोघाः वर्षाणि वर्ष- प्राणत, आरण, अच्युत, अवेयक, अनुत्तर, गामा नगरा घरा पव्वता पायाला धराः ग्रामाः नगराणि गृहाणि पर्वताः ईषत्प्रारभारा, परमाण पुद्गल, द्विप्रदेशिक भवणा निरया रयणप्पभा सक्कर- पातालाः भवनानि निरयाः रत्नप्रभा यावत् अनन्तप्रदेशिक । वह सादि पारिप्पभा वालुयप्पभा पंकप्पमा धूमशर्कराप्रमा बालुकाप्रभा पडूप्रभा माणिक है। प्पभा तमा तमतमा सोहम्मे ईसाणे धूमप्रभा तमा तमस्तमा सौधर्मः सणंकुमारे माहिदे बंभलोए लंतए ईशानः सनत्कुमारः माहेन्द्रः ब्रह्ममहासुक्के सहस्सारे आणए पाणए लोकः लान्तकः महाशुक्रः सहस्रारः आरणे अच्चुए गेवेज्जे अणुत्तरे आनतः प्राणतः आरणः अच्युतः ईसिप्पडभारा परमाणुपोग्गले प्रैवेयक: अनुत्तरः ईषत्प्रारमारा दुपएसिए जाव अणंतपएसिए। से परमाणपुद्गलः द्विप्रवेशिकः यावद् तं साइ-पारिणामिए॥ अनन्तप्रदेशिकः । स एष सावि-पारिणामिकः। २८८. से कि तं अणाइ-पारिणामिए? अथः किस अनादि-पारिणामिकः? २८८. वह अनादि पारिणामिक क्या है ? अणाइ- पारिणामिए-धम्मत्थि- अनादि-पारिणामिकः-धर्मास्तिकायः अनादि पारिणामिक-धर्मास्तिकाय, काए अधम्मत्थिकाए आगासत्थि- अधर्मास्तिकायः आकाशास्तिकायः अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाए जीवस्थिकाए पोग्गलस्थिकाए जीवास्तिकायः पुद्गलास्तिकायः अध्वा- काय, पुद्गलास्तिकाय, अध्वासमय, लोक, अद्धासमए लोए अलोए भव- समयः लोक: अलोकः भवसिद्धिकाः अलोक, भवसिद्धिक, और अभवसिद्धिक । सिद्धिया अभवसिद्धिया। से तं अमवसिद्धिकाः। स एष अनादि- वह अनादि पारिणामिक है। वह पारिणाअणाइ-पारिणामिए। से तं पारि- पारिणामिकः। स एष पारिणा- मिक है।" णामिए॥ मिका। २८६. से किं तं सन्निवाइए? सन्नि- अप कि स सान्निपातिकः? सान्नि- २८९. वह सान्निपातिक क्या है ? वाइए-एएसि चेव उदइय-उव- पातिक:-एतेषां चैव औदयिक- सान्निपातिक-इन्हीं औदयिक, औपश Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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