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________________ १६६ उवसंतमाए उवसंतलोहे उवसंतपेजे उवसंतदोसे उवसंतदंसणमोहणिजे उबसंतचरितमोहणिज्जे उवसमिया सम्मत्तलद्धी उवसमिया चरित्तलद्धी उवसंत कसायछ उमत्थवीयरागे से तं उवसमनिष्पणे । से तं उवसमिए । । २८०. से कि तं खइए ? खइए दुविहे पण्णत्तं तं जहा ए निष्कण्णे य ॥ २८१. से किए? खए-अहं कम्मपयडीणं खए णं । से तं खए || उपशांतमाय: उपशांतलोभः उपशांतप्रेयाः उपशांतदोषः उपशांतदर्शनमोहनीयः उपशांतचरित्रमोहनीयः औपशमिका सम्यक्त्वलब्धि : औपशमिका चरित्रलब्धिः उपशांतकषाय Jain Education International मस्थवीतरागः । स एष उपशमनिष्पन्नः । स एष औपशमिक: । अथ किं स क्षायिकः ? क्षायिकः द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा क्षयश्च क्षयfroपन्नश्च । अथ किं सक्षय ? क्षयः - अष्टानां कर्मप्रकृतीनां क्षयः । स एष क्षयः । २८२. से किं तं खयनिष्कण्णे ? खयनिष्कण्णे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा - उप्पण्णनाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली, खीणआभिणियोहिय नाणावरणे खोजसुयनाणावरणे लोणओहिनाणावरणे लोणमणपजवनाणावरणे खोणकेवल नाणावरणे अणावरणे निरावरणे लोणावरणे नाणावर निकम्मविप्पक्के, केवलदंसी सव्वदंसी खनि खीणनिद्दानिद्दे खीपयले खीणपयलापयले खोथी गिद्धी खीचनावरण दंसणावरणे खीणअवक्खदंसणा वरणे खीणओहिदंसणावरणे खोणकेवल सणावरणे अनावरणे निरा वरणे खोणावरणे दरिसणावर णिज्जकम्मविपमुक्के, खीणसाय वैयणिज्जे खीणअसायवेयणिज्जे अवेषणे निवेदने खीणवेयणे सुभासुभवेयणिज्जकम्म विप्पमुक्के, खीणकोहे खीणमाणे लोणमाए लोणलोहे खीणपेज्जे खीणदो से खीणदंसणमोहणिजे खीणचरित मोहणिज्जे अमोहे निम्मोहे खीणमोहे मोहणिज्जकम्मविष्यमुक्के, अथ किस क्षयfroपन्नः ? क्षयनिष्पन्नः अनेकविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - उत्पन्नज्ञानदर्शनधरः अहं जिनः केवली क्षीणामिनियधिकज्ञानावरणः क्षीणतज्ञानावरणः क्षीणावधिज्ञानावरणः क्षीणमनः पर्यवज्ञानावरण: पानावरण अनावरणः निरावरण: लोणावरणः ज्ञानावरणीय कर्मविप्रमुक्तः केवल सर्व क्षीणनिद्रः क्षीणनिद्रानिद्रः क्षोणप्रचल: क्षीणप्रचलाप्रचलः क्षीणस्त्यानगृद्धिः क्षीणचक्षुर्दर्शनावरणः क्षीणाचक्षुश्रीगावधिदर्शनावरणः अनावरणः लोग केवलदर्शनावरण निरावरण: क्षीणावरण दर्शनावरजीवकर्मविप्रयुक्तः, सीगसातबेदनीयः क्षीणासात वेदनीयः अवेदनः निर्वेदन: क्षीणवेदन: शुभाशुभवेदनीयकर्मविप्रमुक्तः, क्षीणक्रोधः क्षीणमान: क्षीणमाय: लीगलोम क्षीणप्रेषा: सौणदोष क्षीणदर्शनमोहनीयः क्षीणचरित्रमोहनीयः अमोह निर्मोह क्षीणमोह मोहनीयविक्तः, कीननरधिकायुः श्रीगतियो कायुषः क्षीण मनुष्यायुषः क्षीण देवायुषः अनापुषः निरायुषः क्षीणायुष: आयु For Private & Personal Use Only अणुओगदाराई माया, उपशांत लोभ, उपशांत प्रेय, उपशांत दोष, उपशान्त दर्शन मोहनीय, उपशान्त चारित्र मोहनीय, औमिकी सम्पक्वतथि, औपशमिकी चारित्रलब्धि और उपशान्तकषाय वाला छद्मस्थवीतराग । वह उपशमनिष्पन्न है । वह औपशमिक है । २८०. वह क्षायिक क्या है ? क्षायिक के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेक्षय और क्षयनिष्पन्न । १८१. वह क्षय क्या है ? क्षय क्षय आठ कर्म प्रकृतियों का होता है । वह क्षय है । २८२. वह क्षयनिष्पन्न क्या है ? क्षयनिष्पन्न के अनेक प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे - उत्पन्न ज्ञानदर्शन के धारक अर्हत् जिन केवली, श्रीगजाभिनिबधिकहानावरण, क्षीणश्रुतज्ञानावरण क्षीणअवधिज्ञानावरण, क्षीणमनः पर्यवज्ञानावरण, क्षीणकेवलज्ञानावरण, अनावरण, निरावरण, क्षीणावरण, ज्ञानावरणीय कर्म से विप्रमुक्त । केवलदर्शी, सर्वदर्शी, क्षीणनिद्रावाला, क्षीणनिद्रानिद्वावासा क्षीणप्रचलावाला, क्षीपालना, क्षीणस्त्यानदिवाला, क्षीणचक्षुदर्शनावरण क्षीणचक्षुदर्शना वरण क्षीणअवधिदर्शनावरण क्षीणकेवलदर्शनावरण, अनावरण, निरावरण, क्षीणावरण, दर्शनावरणीय कर्म से विप्रमुक्त । क्षीणसात वेदनीय, क्षीणअसातावेदनीय, अवेदन, निर्वेदन, क्षीणवेदन, शुभ-अशुभवेदनीय कर्म से विप्रमुक्त । क्षीणक्रोध, क्षीणमान, क्षीणमाया, क्षीणलोभ, क्षीणप्रेय और श्रीगद्वेष, भीमदर्शनमोहनीय, क्षीणचारित्रमोहनीय, अमोह, निर्मोह, क्षीणमोह, मोहनीय कर्म से विप्रमुक्त। क्षीरविकारक श्रीमतिर्मयोनिका युष्क, क्षीणमनुध्यायुष्य, अनायुष्क, निरायुष्क, क्षीणायुष्क, आयुष्य कर्म से विप्रमुक्त । www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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