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________________ सातवां प्रकरण : सूत्र २६६-२७६ २७५. से कि तं जीवोदयनिष्कण्णे ? जीवोदयनिष्कण्णे अगविहे पण्णत्ते, तं जहा -नेरइए तिरिक्खजोणिए मणुस्से देवे, पुढविकाइए आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए queeइकाइए तसकाइए, कोहकसाई माणकसाई मायाकसाई लोभकसाई, इत्थवेए पुरिसवेए नपुंसगए कण्हलेसे नीललेसे काउलेसे तेउलेसे पहलेसे सुक्कलेसे, मिच्छदिट्ठी अविरए असण्णी अन्नाणी आहारए छउमत्थे सजोगी संसार असिद्ध अकेवली | से तं जीवोदयनिष्कण्णं ॥ २७६. से किं तं अजीवोदय निष्कण्णे ? अजीवोदयनिष्फण्णे अगविहे पण्णत्तं तं जहा ओरालियं वा सरीरं ओरालियस रोरपओगपरि णामियं वा दव्यं व्यिं वा सरीरं वेउब्वियसरीरपओगपरि णामियं वा दयं एवं आहारयं सरीरं तेयगं सरीरं कम्मयं सरीरं च भाणियव्वं, पओगपरिणामिए वण्णे गंधे रसे फासे । से तं अजीवोदयनिष्कण्णे से तं उदयनिष्कष्णे से तं उददए । 1 २७७. से कि त उवसमिए ? उवसमिए दुबिहे पण्णत्ते तं जहा उवसमे य उवसमनिष्फण्णे य ॥ २७८. से किं तं उसमे ? उनसमे मोहणिज्जरस कम्मस्स उवसमे णं । से तं उवसमे ॥ - २७६ से कि तं उवसमनिष्करणे ? उवसमनिष्कण्णे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा उसंतको उवसंतमाणे Jain Education International , अथ कि स जीवोदयनिष्पन्नः ? जीवोदयः अनेकविध प्रप्त, तद्यथा-नैरयिकः तिर्यग्योनि मनुष्य देवः पृथिवीकाधिक: अका कि तैजस्कायिक: वायुकायिकः वनस्पतिकायिकः सकायिकः, क्रोधकापी मानकषायी मायाकषायी लोभकषायी, स्त्रीवेदः पुरुषवेदः नपुंसक वेदा कृष्णलेश्य: नीसलेश्य: कपोतलेश्यः तेजसलेश्यः पद्मलेश्यः शुक्ललेश्यः, मिथ्यादृष्टि: अविरतः असंज्ञी अज्ञानी आहारकः छद्मस्थः सयोगी संसारस्थ: असिद्धः अकेवली । स एष जीवोदय निष्पन्नः ॥ अथ किं स अजीवोदय मिष्पन्नः ? अजीबोदनिष्यन्नः अनेकविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-औदारिकं वा शरीरम् औवारिकशरीरप्रयोगपरिणामितं वा द्रव्यं वैक्रियं वा शरीर सिरीजयोगपरिणामितं वा द्रव्य एवम् आहार शरीरं तैजसं शरीरं कर्मकं शरीरं च भणितव्यं, प्रयोगपरिणामितः वर्णः गंध: रसः स्पर्शः । स एष अजीवोदयनिष्पन्नः । स एष उदयनिष्पन्नः । स एष औदयिकः । अथ कि स औपशमिक: ? औपशमिकः द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा उपशमश्च उपशम निष्पन्नश्च । अथ कि स उपशमः ? उपशमःमोहनीयस्य कर्मणः उपशमः । स एष उपशमः । अथ कि स उपशमनिष्पन्नः ? उपशमनिष्पन्न: अनेकविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-उपशांतकोषः उपशांतमानः For Private & Personal Use Only २७५. वह जीवोदय निष्पन्न क्या है ? 1 7 जीवोदय निष्पन्न के अनेक प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेवैरयिक, तिर्यक्योकि मनुष्य और देव, पृथ्वीकायिक अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक वनस्पतिकाविक और सका यिक फोधकथायी मानकषायी मायाकषायी और सोमपायी, स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक और नपुंसकवेदक, कृष्णलेया वाला नीललेश्या वाला, कापोतलेश्या वाला, तेजोलेश्या वाला, पद्मलेश्या वाला और शुक्ललेश्या वाला, मिथ्यादृष्टि, अविरत जान आहारक, छद्मस्थ, सयोगी, संसारस्थ, असिद्ध और अकेवली । वह जीवोदयनिष्पन्न है । २७६. वह अजीवोदयनिष्पन्न क्या है ? १६५ अजीवोदयनिष्पन्न के अनेक प्रकार प्रज्ञप्त हैं. जैसे—औदारिक शरीर, औदारिक शरीर के प्रयोग द्वारा परिणामित पुद्गल द्रव्य । वैक्रिय शरीर, वैक्रिय शरीर के प्रयोग द्वारा परिणामित पुद्गल द्रव्य । आहारक शरीर, आहारक शरीर के प्रयोग द्वारा परिणामित पुद्गल द्रव्य । तेजस शरीर, तेजस शरीर के प्रयोग द्वारा परिणामित पुद्गल द्रव्य । कर्मक शरीर, कर्मक शरीर के प्रयोग द्वारा परिणामित पुद्गल द्रव्य । पांचों शरीरों के प्रयोग द्वारा परिणामित वर्ण, गंध, रस और स्पर्श । वह अजीवोदयनिष्पन्न है । वह उदयनिष्पन्न है । वह औदयिक है । २७७. वह औपशमिक क्या है ? औपशमिक के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेउपशम और उपशमनिष्पन्न । २७८. वह उपशम क्या है ? उपशम - उपशम मोहनीय कर्म का होता है | वह उपशम है । २७९. वह उपशमनिष्पन्न क्या है ? उपशमनिष्पन्न के अनेक प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे—उपशांत क्रोध, उपशांत मान, उपशांत www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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