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________________ १६४ माले इमे । से तं पयईए॥ माले इमे । तदेतत् प्रकृत्या । अणुओगदाराई पटू इमो, शाले एते, माले इमे। वह प्रकृति से होने वाला नाम है। २६६. से कि तं विगारेणं? विगारेणं अथ कि तद् विकारेण ? विकारेण- २६९. वह विकार से होने वाला नाम क्या है ? -दण्डस्य अग्रं-दण्डाग्रम, सा दण्डस्य अग्र= दण्डान, सा आगता विकार से होने वाला नाम-दण्डस्य+ आगता...सागता, दधि इदं= =सागता, दधि इदं दधीवं, नबी अग्रं-दण्डानम्, सा+आगता-सागता, दधीदम, नदी इहते-नदीहते, ईहते-नदीहते, मधु उदकंमधूदक, दधि+इद-दधीदं, नदी+ईहते-नदीहते, मधु उदकंमधदकम, वधू ऊहते वधू ऊहते-वधूहते। तदेतद् विका- मधु+उदक-मधूदकं और वधू+ऊहते-वधहते । से तं विगारेणं । से तं रेण । तदेतत् चतुर्नाम । वधूहते। [यहां सन्धि-जन्य विकार होने चउनामे ॥ से इन शब्दों की निष्पत्ति हुई है। वह विकार से होने वाला नाम है । वह चतुर्नाम पंचनाम-पदं पञ्चनाम-पदम् २७०. से कि तं पंचनामे ? पंचनामे अथ किं तद् पञ्चनाम? पञ्चनाम पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा–१. पञ्चविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-१. नामिकं २. नेपातिकं ३. आख्या- नामिकं २. नेपातिकम् ३. आख्यातिक ४. औपसगिक ५. मिश्रम्। तिकम् ४. औपसगिकं ५. मिश्रम् । अश्व इति नामिकम् । खल्विति अश्व इति नामिकम् । खल्विति नेपातिकम्। धावतीत्याख्याति- नेपातिकम् । धावतीत्याख्यातिकम् । कम् । परीत्यौपसगिकम् । संयत परीत्यौपसर्गिकम् । संयत इति इति मिश्रम् । से तं पंचनामे ॥ मिश्रम् । तदेतत् पञ्चनाम । पंचनाम-पद २७०. वह पंचनाम क्या है ? पंचनाम के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेनामिक,' नेपातिक," आख्यातिक औपसर्गिक" और मिश्र।" अश्व यह नामिक है। खलु यह नैपातिक है। धावति यह आख्यातिक है। परि यह औपसर्गिक है। संयत यह मिश्र है । वह पंचनाम है। छनाम-पदं षड्नाम-पदम् २७१. से कि तं छनाम? छनामे अथ कि तत् षड्नाम ? षड्नाम छविहे पण्णत्ते, तं जहा--१. षड्विधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा--१. औदउदइए २. उवसमिए ३. खइए यिकः २. औपशमिक: ३. क्षायिकः ४. खओवसमिए ५. पारिणामिए ४. क्षायोपशमिकः ५. पारिणामिकः ६. सन्निवाइए। ६. सान्निपातिकः । षट्नाम-पद २७१. वह षट्नाम क्या है ? षट्नाम के छह प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे१. औदयिक, २ औपशमिक, ३. क्षायिक, ४. क्षायोपशमिक, ५, पारिणामिक, ६. सान्निपातिक । २७२. से कि तं उदइए? उदइए अथ किं स औदयिकः ? औदयिकः २७२. बह औदयिक क्या है ? विहे पण्णत्ते, तं जहा - उदए य द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- उदयश्च औदयिक के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेउदयनिष्फण्णे य॥ उदयनिष्पन्नश्च । उदय और उदयनिष्पन्न । २७३. से कि तं उदए ? उदए- अटण्हं कम्मपयडीणं उदए थे। से तं उदए। अथ किस उदयः? उदयः- अष्टानां कर्मप्रकृतीनाम् उदयः । स एष उदयः। २७३. वह उदय क्या है ? उदय-उदय आठ कर्म प्रकृतियों का होता है। वह उदय है। २७४. से कि तं उदयनिष्फण्णे? अथ कि स उदयनिष्पन्नः ? उदय- २७४. वह उदयनिष्पन्न क्या है ? उदयनिष्फण्णे दुविहे पण्णत्ते, तं निष्पन्नः द्विविध: प्रज्ञप्तः, तद्यथा उदयनिष्पन्न के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे जहा-जीवोदयनिष्फण्णे य जीवोदयनिष्पन्नश्व अजीवोदय- -जीवोदयनिष्पन्न और अजीवोदयनिष्पन्न । अजीवोदयनिष्फण्णे य॥ निष्पन्नश्च। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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