SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सातवां प्रकरण : सूत्र २५२-२५४ लिए पज्जतयहमपुढविकाइए य अपज्जत्तयसुहुमपुढ विकाइए य । अविसेसिए बादरपुरविकाइए, विसेसिए पज्जतयबादरपुढविकाइए य अपज्जत्तबादरपुढविकाइए य एवं आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए वणस्सइकाइए य । अविसेसिय-विसे सिय-पज्जत्तय अपज्जतयमेदेहि भाणिया । ७. अबिसेलिए दिए विसेसिए पज्जत्तयबेइंदिए य अपज्जत्तयबेइदिए य । एवं तेइंदियचउरिवियावि भाणियया । ८. अविसेसिए पंचिदियतिरिक्खजोणिए, विसेसिए जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए थलयरपंचिदियतिरिक्त जोगिए सहपरपचदियतिरिक्खजोगिए । १. अविसेसिए जलयरपंचिदियतिरिक्स जोगिए, विसेसिए सम्मूछिमजलवरपचदियतिरिक्तजोगिए य गम्भववतियजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य । अविसेसिए सम्मुच्छिमजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए, विसेसिए पज्जतयसम्मूच्छिमजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तयसम्मुच्छिमजलयर पंचिदियतिरिक्खजोणिए य । अविसेसिए गम्भवतियजलपरपंचिदियतिरिक्स जोगिए, विसेलिए पञ्जलय गरभववकतियजलवरपचवियतिरिक्त जोगिए य अपज्जतयगमवर्कतियजलयरपचदियतिरिक्त जोणिए य । १०. अविसेसिए परपचदियतिरिक्खजोगिए, चउपयथलयरपंचिदियतिरि विसेसिए Jain Education International - विशेषितं पर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिकश्च अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकश्च । अविशेषितं बादरपृथिवीकायिक, विशेषितं पर्याप्तवादपृथिवीकाविकश्च अपर्याप्तादपृथिवीकाविकश्च । एवम् अष्कायिक: तेजस्कायिकः वायुकायिकः वनस्पतिकायिकश्च । अविशेषितविशेषित- पर्याप्तक अपर्याप्तक भेदः भणितव्याः । ७. अविशेषितं द्वीन्द्रियः, विशेषितं पर्याप्तद्वीन्द्रियश्च अपर्याप्तकद्वीन्द्रियश्च । एवं त्रीद्रयचतुरिन्द्रियाँ अपि भवितव्यो । ८. अविशेषितं पञ्चेन्द्रियतियोनिक, विशेषितं जलचरपञ्चेन्द्रियतियोगि स्थलचरपञ्चेन्द्रियतियनिक वेबरपञ्चेन्द्रियग्योनिकाच ९. अविशेषितं जलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक, विशेषितं सम्मूमि जलचरपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योगिकरच गर्भावातिकजलचरपञ्चेन्द्रियतियोगि कश्च । अविशेषितं सम्मूच्छिमजलचरपचेति निक विशेषितं पर्याप्तकसम्मूच्छिमजलचरपचेद्रियतिर्यग्योनिश्च अपकसम्मतबरपञ्चेन्द्रियता अविशेषितं जलचरपन्चे गर्भावक्रान्तिक , विशेषितं पर्याप्तगर्भावक्रान्तिक जलचरपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकश्च अपर्याप्त गर्भाविकान्तिकजलचरपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनि कश्च । १०. अविशेषितं स्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योि विशेषितं चतुष्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतियंग् For Private & Personal Use Only १५७ कायिक, अपर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक विशेषित नाम है। बादर पृथ्वीकायिक अविशेषित नाम है। पर्याप्तक बादर पृथ्वीकायिक, अपर्याप्तक बादर पृथ्वीकायिक विशेषित नाम है । इसी प्रकार अप्काविक जावक तेजस्कायिक, वायुकाविक और वनस्पतिकाधिक भी अविशेषित विशेषित, पर्याप्तक और अपर्याप्तक इन भेदों द्वारा प्रतिपादनीय हैं । , ७. द्वीन्द्रिय अविशेषित नाम है। पर्याप्तक द्वीन्द्रिय, अपर्याप्तक द्वीन्द्रिय विशेषित नाम है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय भी प्रतिपादनीय हैं। ८. पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक अविशेषित नाम है। जलवर पञ्चेन्द्रिय तिर्ययोगिक, स्वलवर पञ्चेन्द्रिय तिर्वपोनिक सेयर पञ्चेन्द्रिय तिर्वयोनिक विशेषत नाम है । ९. जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक्योनिक अविशेषित नाम है । संमूच्छिम जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक्योनिक, गर्भावक्रान्तिक जलवर पञ्चेन्द्रिय तिर्मयोनिक विशेषत नाम है | संमूमि' जलचर पञ्चेन्द्रियतियोनिक अविशेषित नाम है। पर्याप्तक संमूनि जलचर चेन्द्रिय तिर्वयोनिक, अपर्याप्तक' संमूमि जनवर पञ्चेन्द्रिय नियोनिक विधि नाम है । गर्भावान्तिक जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्-. योनिक अविशेषित नाम है। पर्याप्तक गर्भावान्तिक जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक्योनिक, अपर्याप्तक गर्भावक्रान्तिक जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक्योकि विशेषित नाम है । १०. स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक अविशेषित नाम है। चतुष्पद स्थलचर पंचेद्रिय तिर्वयोनिक परिसर्प स्थलचर www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy