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टिप्पण
सूत्र १९६ १. (सूत्र १६६)
द्रव्यानुपूर्वी का आधार है-पुद्गल द्रव्य । क्षेत्रानुपूर्वी का आधार है-आकाश प्रदेश । इसी प्रकार कालानुपूर्वी का आधार है-कालपर्याय। कालानुपूर्वी
काल द्रव्य का एक पर्याय है। तीन समय, चार समय, पांच समय यावत् असंख्यात समय से उपलक्षित द्रव्य कालानुपूर्वी कहलाते हैं। इसके तीन प्रकार हैं
१. आनुपूर्वी-द्रव्य और पर्याय में कथंचित् अभेद होता है--इस अपेक्षा से तीन समय आदि की स्थिति वाले परमाणु और स्कन्ध आनुपूर्वी कहलाते हैं।
२. अनानुपूर्वी-एक समय की स्थिति वाले परमाणु और स्कन्ध अनानुपूर्वी कहलाते हैं। ३. अवक्तव्य -इसी प्रकार दो समय की स्थिति वाले परमाणु व स्कन्ध अवक्तव्य कहलाते हैं।
सूत्र २०८ २. (सूत्र २०८)
तीन समय की स्थिति वाले द्रव्य अनन्त हैं। फिर भी कालावधि की अपेक्षा उनका एकत्व है। कालानुपूर्वी में काल की प्रधानता है तथा द्रव्य-बहुत्व गौण है । इस प्रकार तीन समय की स्थिति वाले द्रव्यों की एक आनुपूर्वी होती है, चार समय की स्थिति वाले द्रव्यों की एक आनुपूर्वी होती है, यावत् असंख्य समय की स्थिति वाले द्रव्यों की एक-एक आनुपूर्वी होती है। निष्कर्ष की भाषा में आनुपूर्वी द्रव्य असंख्य ही होते हैं।
द्रव्यों का आधारभूत आकाश असंख्यप्रदेशात्मक है। उनकी वर्तना के हेतु काल के समय भी असंख्य हैं अतः आधारभूत आकाशप्रदेश और वर्तनाहेतुक समय दोनों असंख्येय ही होंगे । इस अपेक्षा से आनुपूर्वी द्रव्य असंख्येय बतलाए गए हैं। एक समय तथा दो समय की स्थिति वाले द्रव्य लोक में अनन्त हैं।
यदि एक समयात्मक तथा द्विसमयात्मक स्थिति को एक रूप माने तो अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य को एक ही मानना होगा । वह प्रत्येक असंख्येय नहीं हो सकता। यदि द्रव्य-भेद के भेद से भिन्नता मानी जाए तो प्रत्येक को अनन्त मानना होगा। इस जिज्ञासा का समाधान इस प्रकार हो सकता है-एक समय की स्थिति वाले द्रव्यों की भिन्नता अवगाह-भेद के आधार पर विवक्षित है। इसी प्रकार दो समय की स्थिति वाले द्रव्यों की भिन्नता अवगाह-भेद के आधार पर विवक्षित है। लोक में अवगाह-भेद असंख्य हैं । इस प्रकार आधार क्षेत्र के भेद से अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों का असंख्येयत्व ही प्रमाणित होता है।'
सूत्र २०९ ३. (सूत्र २०६)
चूर्णिकार ने 'देशोन' के स्थान पर 'प्रदेशोन' पाठ मान्य किया है। उनकी व्याख्या है कि आनुपूर्वी द्रव्य लोकव्यापी नहीं हो सकता । अचित्त-महास्कन्ध केवल चतुर्थ समय में लोकव्यापी होता है । आनुपूर्वी द्रव्य के लिए कम से कम तीन समय की स्थिति आवश्यक है । अतः काल की अपेक्षा आनुपूर्वी द्रव्य को प्रदेशोन कहा गया है।"
इसका दूसरा विकल्प यह है-तीन समय आदि की स्थिति वाला कालानुपूर्वी द्रव्य जघन्यतः एक प्रदेश का अवगाहन करता १. ठा. २।१।
४. (क) अहावृ. पृ. ५१ । २. अहावृ. पृ. ५१।
(ख) अमवृ. प. ८६ । ३. अहा.पृ. ५१।
५. अचू. पृ. ३६,३७।
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