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________________ छठा प्रकरण : सूत्र २१०-२१७ नेगम-यवहाराणं अवत्तम्बगवण्याणं अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ ? एगदव्वं पडुच्च जहण्णेणं एगं समर्थ, उनकोसेणं असंवेज्जं कालं नाणादया पहुच्च नत्वि अंतरं ॥ । २१३. नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई सेसदव्वाणं कइ भागे होज्जा - पुच्छा । जहेव खेत्ताणुपुवीए ॥ २१४. भावो वि तहेव ॥ २१५. अप्पाबहुं पि तहेव यव्वं । से तं अणुगमे से तं नेगम-यवहाराणं । अणोवणिहिया कालाणुपुथ्वी ॥ २१६. से किं तं संगहस्स अणोवणिहिया कालाणुपुथ्वी ? संगहस्स अणोवणहिया कालाणुपुथ्वी पंचविहा पण्णता, तं जहा१. अपयवा २. अंगसमुक्कि त्तणया ३. भंगोवदंसणया ४. समोवारे ५. अणयमे ॥ २१७. से कि तं संगहस्स अट्ठपयपरूगणया ? संगहस्स अपयपरूवणया - एवाई पंच विदाराई जहाँ खेत्ताणुपब्बीए संगहस्स तहा कालापुवीए वि भाणियव्वाणि नवरं-ठितीअभिलावो जाव से तं अणुगमे । सेतं संगहस्स अणोमिहिया कालापुवी से तं अणोवणिहिया कालाणुपुच्ची ॥ नैगम-व्यवहारयोः अवक्तव्यकद्रव्याणाम् अन्तरं कालतः कियच्चिरं भवति ? एकद्रव्यं प्रतीत्य जघन्येन एक समयम् उत्कर्षेण अध्येयं कालम् । नानाद्रव्याणि प्रतीत्य नास्ति अन्तरम् । संगहस्स अगोवणियि कालानुपुथ्वी-पर्व संग्रहस्य अनोपनिधिकी- कालानुपूर्वी-पदम् अथ किं सा संग्रहस्य अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी ? संग्रहस्य अनौपनिधिको कालानुपूर्वी पञ्चविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा - १. अर्थपदप्रवणा २. मंकीर्तन मंगो पदर्शनम् ४. समवतारः ५. अनुगमः । Jain Education International नैगम-व्यवहारयोः आनुपूर्वी द्रव्याणि शेषद्रव्याणां कति भागे भवति पृच्छा । यथंव क्षेत्रानुपूर्णाम् । भावः अपि तथैव । अल्पबहु अपि तथैव ज्ञातव्यम् । स एवं अनुगमः । सा एया संगम-नयहारयो: अनोपनिधि कालानुपूर्वी अथ किं सा संग्रहस्य अर्थपदप्ररूपणा ? संग्रहस्य अपत्ररूपणाएतानि पञ्च अपि द्वाराणि दया क्षेत्रानुपु संग्रहस्य तथा कालानुपूष्य अपि भवितव्यानि नवरं स्थित्यभिलापः यावत् । स एष अनुगमः । सा एषा संग्रहस्य अनौप निधिकी कालानुपूर्वी । सा एषा अनौपनि धिकी कालानुपूर्वी । For Private & Personal Use Only ** निगम और व्यवहारनय सम्मत अवक्तव्य द्रव्यों में कालकृत अन्तर कितना होता है ? एक द्रव्य की अपेक्षा जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः असंख्येय काल । अनेक द्रव्यों की अपेक्षा उनमें कालकृत अन्तर नहीं होता ।" २१२. नैगम और व्यवहारनय सम्पत आनुपूर्वी द्रव्य शेष द्रव्यों के कितने भाग में होते हैं ? ये क्षेत्रानुपूर्वी की भांति जानने चाहिए। (देखो सूत्र १७२ ) २१४. भाव भी वैसे ही जानने चाहिए । (देखो सूत्र १७३ ) २१५. अल्पबहुत्व भी वैसे ही जानना चाहिए । [देखो सूत्र १७४ ] वह अनुगम है । वह नैगम और व्यवहारनय सम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी है । संग्रहनय सम्मत अनौपनिधिको कालानुपूर्वी पद २१६. वह संग्रहनय सम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी क्या है ? संग्रहनय सम्मत अनोपनिधिको कालानुपूर्वी के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे--- १. अर्थपदप्ररूपण २. अंगसमुत्कीर्तन २ गोपदर्शन ४. समवतार ५. अनुगम । २१७. वह संग्रनय सम्मत अर्थपदप्ररूपण क्या है? संग्रहनय सम्मत अर्थपदप्ररूपण - कालानुपूर्वी के ये पांचों द्वार संग्रहनय सम्मत क्षेत्रानुपूर्वी की भांति प्रतिपादनीय हैं। विशेष बात यह है कि क्षेत्रानुपूर्वी में जैसे त्रिप्रदेशावगाढ आदि हैं वैसे यहां पर तीन समय की स्थिति वाला पुद्गल आनुपूर्वी, एक समय की स्थिति वाला पुद्गल अनानुपूर्वी और दो समय की स्थिति वाला पुद्गल अवक्तव्य ऐसा प्रयोग करना चाहिए । [ देखो सूत्र १७५ ] , वह अनुगम है। वह संग्रहनय सम्मत अनोपनिधिको कालापूर्वी है। वह अनीपनिधिकी कालानुपूर्वी है । www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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