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अणुओगदाराई भागे वा होज्जा, असंखेज्जइभागे असंख्येयतमभागे वा भवन्ति, संख्येयेषु भाग में होते हैं, असंख्यातवें भाग में होते हैं, वा होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु वा भागेषु वा भवन्ति, असंख्येयेषु भागेषु संख्येय भागों में होते हैं, असंख्येय भागों में होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु वा वा भवन्ति, देशोने लोके वा भवन्ति । होते हैं अथवा कुछ कम लोक में होते हैं। होज्जा, देसूणे लोए वा होज्जा। नानाद्रव्याणि प्रतीत्य नियमात सर्व- अनेक द्रव्यों की अपेक्षा वे नियमतः समूचे नाणादवाई पडच्च नियमा लोके भवन्ति । एवं अपि ।
लोक में होते हैं। सव्वलोए होज्जा। एवं दोण्णि
इसी प्रकार नैगम और व्यवहारनय सम्मत वि ॥
अनानुपूर्वी ओर अवक्तव्य द्रव्यों का प्रतिपादन
करना चाहिए।' २१०. एवं फुसणा वि॥
एवं स्पर्शना अपि।
२१०. इसी प्रकार स्पर्शना का निरूपण भी करना
चाहिए । [देखो सूत्र २०९] २११. नेगम-ववहाराणं आणवि - नैगम-व्यवहारयोः आनुपूर्वी- २११. नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य
दव्वाइं कालओ केवच्चिरं होंति? द्रव्याणि कालत: कियच्चिरं भवन्ति? काल की अपेक्षा से कितने समय तक होते हैं ? एगदव्वं पडुच्च जहणणं तिणि एकद्रव्यं प्रतीत्य जघन्येन त्रीन् समयान्, एक द्रव्य की अपेक्षा से आनुपूर्वी द्रव्य समया, उक्कोसेणं असंखेज्जंकालं। उत्कर्षेण असंख्येयं कालम् । नाना- जघन्यतः तीन समय और उत्कृष्टतः असंख्येय नाणादब्वाइं पडुच्च नियमा द्रव्याणि प्रतीत्य नियमात् सर्वाध्वा
काल तक होते हैं। अनेक द्रव्यों की अपेक्षा सव्वद्धा। नम् ।
वे सर्वकाल में होते हैं। नेगम-ववहाराणं अणाणुपुग्वि- नेगम-व्यवहारयोः अनानुपूर्वी- नैगम और व्यवहारनय सम्मत अनानुपूर्वी दवाई कालओ केवच्चिरं होंति? द्रव्याणि कालतः कियश्चिरं भवन्ति ? द्रव्य काल की अपेक्षा से कितने समय तक एगदव्वं पड़च्च अजहण्णमणुक्को- एकद्रव्यं प्रतीत्य अजघन्यानुत्कर्षेण एक होते हैं ? सेणं एक्कं समयं । नाणादब्वाइं समयम् । नानाद्रव्याणि प्रतीत्य एक द्रव्य की अपेक्षा से अनानुपूर्वी द्रव्य जघन्य पडुच्च सव्वद्धा। सर्वाध्वानम्।
और उत्कृष्ट का भेद किए बिना एक समय नेगम-ववहाराणं अवत्तव्वगदव्वाइं नंगम-व्यवहारयोः अवक्तव्यक- तक और अनेक द्रव्यों की अपेक्षा सर्वकाल में कालओ केवच्चिरं होंति ? एगदव्वं द्रव्याणि कालतः कियच्चिरं भवन्ति ? होते हैं। पडुच्च अजहण्णमणुक्कोसेणं दो एकद्रव्यं प्रतीत्य अजघन्यानुत्कर्षेण द्वौ नेगम और व्यवहारनय सम्मत अवक्तव्य द्रव्य समयं । नाणादव्वाई पडच्च समयौ। नानाद्रव्याणि प्रतीत्य काल की अपेक्षा से कितने समय तक होते हैं ? सव्वद्धा॥ सर्वाध्वानम् ।
एक द्रव्य की अपेक्षा से अवक्तव्य द्रव्य जघन्य और उत्कृष्ट का भेद किए बिना दो समय तक और अनेक द्रव्यों की अपेक्षा सर्वकाल में होते
२१२. नेगम-ववहाराणं आणुपुग्वि- नैगम-व्यवहारयोः आनुपर्वी-
दव्वाणं अन्तरं कालओ केवच्चिरं द्रव्याणाम् अन्तरं कालत: कियच्चिरं होइ ? एगदव्वं पडुच्च जहण्णणं भवति ? एकद्रव्यं प्रतीत्य जघन्येन एगं समयं, उक्कोसेणं दो समया। एक समयम, उत्कर्षेण द्वौ समयौ। नाणादव्वाइं पडुच्च नत्थि अतरं। नानाद्रव्याणि प्रतीत्य नास्ति अन्तरम् । नेगम-ववहाराणं अणाणुपुग्वि- नैगम-व्यवहारयोः अनानुपूर्वीदव्वाण अतर कालआ कवाच्चर द्रव्याणाम् अन्तरं कालतः कियच्चिरं होइ ! एगदव्वं पडुच्च जहण्णण भवति ? एकद्रव्यं प्रतीत्य जघन्येन दो समया, उक्कोसेणं असंखेज्जं द्वौ समयौ, उत्कर्षेण असंख्येयं कालं। नाणादव्वाइं पडुच्च नत्थि ___ कालम् । नानाद्रव्याणि प्रतीत्य नास्ति अंतरं॥
अन्तरम् ।
२१२. नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी
द्रव्यों में कालकृत अन्तर कितना होता है ? ___ एक द्रव्य की अपेक्षा जघन्यत: एक समय
और उत्कृष्टतः दो समय । अनेक द्रव्यों की अपेक्षा इनमें कालकृत अन्तर नहीं होता। नंगम और व्यवहारनय सम्मत अनानुपूर्वी द्रव्यों में कालकृत अन्तर कितना होता है ?
एक द्रव्य की अपेक्षा जघन्यतः दो समय और उत्कृष्टत: असंख्येय काल । अनेक द्रव्यों की अपेक्षा उनमें कालकृत अन्तर नहीं होता।
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