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________________ छठा प्रकरण : सूत्र २०१-२०६ २०५. से कि तं समोवारे ? समोयारे - नेगम-ववहाराणं आणुपुच्चिदबाई कह समोयरंति fक आणुपुव्विदहि समोयरंति - पुच्छा । नेगम बवहाराणं आणुपुविदव्वा आदिहि समोयरंति नो अणापुविदेह समोयरंति नो अवत्तव्यववहिं समोयरंति । एवं दोणि वि सट्टाणे समोयरंति । से तं समोवारे ॥ २०६. से कि अणुगमे ? अनुगमे नवविहे पण्णले, तं जहा गाहा १. संतपयपरूवणया २. दव्वपमाणं च ३. खेत्त ४. फुसणा य । ५. कालो व ६. अंतरं ७. भाग ८. भा. अध्यादेव ॥ १ ॥ २०७. नेगम-ववहाराणं आणुपुविदवाई कि अस्थि ? त्वि ? नियमा अस्थि ? एवं दोण्णि वि । २०६. नेगम-ववहाराणं आणुपुब्बि दवाई कि संवेज्जाई ? असंखे ज्जाई ? अनंताई ? नो संखेज्जाई, असंखेज्जाई, नो अनंताई । एवं बोणि वि ॥ २०६. नेगम ववहाराणं आणुपुव्विदवाई लोगस्स कति भागे होज्जा कि संवेज्जइमागे होज्जा ? असंखेज्जइभागे होज्जा ? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? असंखेज्जेसु मागेसु होज्जा ? सव्वलोए होज्जा ? एगदव्वं पटुच्च लोगस्स संखेज्जइ Jain Education International अथ किं स समवतारः ? समआनु वतारः नंगम- स्ववहारयोः पूर्वीद्रव्याणि क्व समवतरन्ति कि आनुपूर्वीद्रव्येषु समवतरन्ति पृच्छा नैगम-यवहारयोः आनुपूर्वीद्रव्याणि आनुपूर्वीयेषु समवतरन्ति नो अनानुपूर्वीद्रव्येषु समवतरन्ति नो अवत द्रव्येषु समवतरन्ति एवं अपि स्वस्थाने समवतरतः । स एष समवतारः । अथ किस अनुगमः ? नवविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा अनुगमः गाथा १. संतपद प्ररूपणा २ द्रव्यप्रमाणञ्च ३. क्षेत्रं ४. स्पर्शना च । ५. कालश्च ६. अन्तरं ७. भागः ८. भावः ९. अल्पबहु चैव ॥१॥ मंगम-व्यवहारयोः आनुपूर्वी - द्रव्याणि किम् अस्ति ? नास्ति ? नियमात् अस्ति । एवं द्वे अपि । नैगम-व्यवहारयोः आनुपूर्वीइम्याणि संख्येयानि ? असंख्ये यानि ? अनन्तानि ? नो संख्येयानि, असंख्येयानि, नो अनन्तानि । एवं द्व े अपि । गंगम-व्यवहारयोः आनुपूर्वी - द्रयाणि लोकस्य कतिमा भयन्तिकि संख्येयतमभागे भवन्ति ? असंख्येयतमभागे भवन्ति ? संख्येयेषु भागेषु भवन्ति ? असंख्येयेषु भागेषु भवन्ति? सर्वलोके भवन्ति ? एकद्रव्यं प्रतीत्य लोकस्य संख्येमागे वा भवन्ति, For Private & Personal Use Only १३६ २०५. वह समवतार क्या है ? समवतार - नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य कहां समवतरित होते हैं ? क्या आनुपूर्वी द्रव्यों में समवतरित होते हैं ? अनापुर्वी प्रयों में समवतरित होते हैं ? अथवा अवक्तव्य द्रव्यों में समवतरित होते हैं ? नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य अनुपूर्वी द्रों में समवतरित होते हैं। अनानुपूर्वी द्रव्यों में समवतरित नहीं होते, अवक्तव्य द्रव्यों में समवतरित नहीं होते । इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य भी अपने-अपने स्थानों में समवतरित होते हैं। वह समवतार है । २०६. वह अनुगम क्या है ? अनुगम के नौ प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे— १. सत्पदप्ररूपण, २. द्रव्यप्रमाण, ३. क्षेत्र, ४. स्पर्शना, ५. काल, ६. अन्तर ७. भाग, ८. भाव, ९. अल्पबहुत्व । २०७. नंगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य हैं या नहीं ? वे नियमतः है। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य भी नियमतः हैं। २०८. नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य क्या संख्येय हैं ? असंख्येय हैं ? या अनन्त हैं ? वे संख्येय नहीं हैं, असंख्येय हैं, अनन्त नहीं हैं। इसी प्रकार नैगम और व्यवहारनय सम्मत अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य भी असंश्येव हैं।" २०९. गम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य लोक के कितने भाग में होते हैं- क्या संख्यातवें भाग में होते हैं ? असंख्यातवें भाग में होते हैं ? संख्येय भागों में होते हैं ? असंख्येय भागों में होते हैं ? या समूचे लोक में होते हैं ? एक द्रव्य की अपेक्षा वे लोक के संख्यातवें www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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