________________
प्र० ५ सू० १७२, १७३, टि०७८
उनका अवस्थान इस प्रकार होगात्रिप्रदेशावगाढ
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
८.
९.
१०.
१.
२.
चतुष्प्रदेशावगाढ
४.
५.
१ - २ - ३ आकाश प्रदेशों पर
१ – २ – ४
१ - २–५
१.
१-३-४
१- ३. -५
१ - ४ - ५
२-३-४
२--३ - ५
२-४-५ ३---४---५
पञ्चप्रदेशावगाढ
Jain Education International
17
33
33
"
"1
11
31
"" ""
33
"1
""
31
""
"1
१-२-३-४ आकाश प्रदेशों पर
१ – २ – ३–५
१–२–४–५
१ - ३-४-५ २–३–४–५
31
"
"1
33
13
"1 11
१.
ズ
३.
१-२-३-४-५ आकाश प्रदेशों पर
४.१
स्थापना
१०
५
নA 72
स्थापना
L
१.
<L...
स्थापना
Z
63
१३१
१
उपर्युक्त असत् कल्पना में कल्पित पांच आकाश प्रदेशों में अवस्थित अनानुपूर्वी, अवक्तव्य और आनुपूर्वी द्रव्यों की संख्या के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि लोकाकाश के समस्त असंख्यात प्रदेशों में आनुपूर्वी द्रव्य असंख्येयों भागों में अवस्थित हैं जबकि अवक्तव्य द्रव्य असंख्यातवें भाग में और अनानुपूर्वी द्रव्य उनसे भी कम असंख्यातवे भाग में अवस्थित होते हैं ।
सूत्र १७३
For Private & Personal Use Only
८. (सूत्र १७३ )
आकाश अनादि पारिणामिक है फिर क्षेत्रानुपूर्वी के प्रकरण में आनुपूर्वी आदि द्रव्य सादि पारिणामिक भाव के अन्तर्गत कैसे हो सकते हैं। इसका समाधान भी आधार - आधेय संबंध के आधार पर किया जा सकता है । द्रव्यानुपूर्वी के द्रव्य सादिपारिणामिक हैं ।" इस सम्बन्ध के कारण उनके आधारभूत आकाश क्षेत्र को भी सादि पारिणामिक भाव की पंक्ति में रखा जा सकता है।
१.४९ भादव्यानि नियमात् सादिपारिणामिरुचाये, विशिष्टायाधारभावस्य साविचारिणामिकत्वाद एवमापूर्वी अवक्तव्यकान्यपि ।
www.jainelibrary.org