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________________ ध्यानुपूर्वी १. आनुपूर्वी - त्रिप्रदेशी स्कन्ध यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध । १. (सूत्र १५५) यहां क्षेत्र पद के द्वारा द्रव्य से अवगाढ क्षेत्र विवक्षित है। इस ( क्षेत्रानुपूर्वी) में आकाश के क्षेत्र की प्रधानता के कारण आकाश प्रदेश विवक्षित हैं । द्रव्यानुपूर्वी में पुद्गल द्रव्य की संख्या के आधार पर आनुपूर्वी, अवक्तव्य और अनानुपूर्वी द्रव्यों का विभाग किया गया है । प्रस्तुत प्रकरण में आनुपूर्वी, अवक्तव्य और अनानुपूर्वी द्रव्यों का विभाग आकाश प्रदेशों के आधार पर किया गया है । I २. अनानुपूर्वी एक परमाणु ३. अवक्तव्य - द्विप्रदेशी स्कन्ध । २. (सूत्र १६७ ) टिप्पण सूत्र १५५ आनुपूर्वी द्रव्यों में त्रिप्रदेशी आदि स्कन्ध जघन्यतः एक आकाश प्रदेश में अवगाहन कर सकते हैं । उत्कृष्टतः जो स्कन्ध जितने परमाणुओं से निष्पन्न है वह उतने आकाश-प्रदेशों का अवगाहन कर सकता है। यह नियम संख्येय और असंख्येय प्रदेशों तक लागू होता है । अनन्तप्रदेशी स्कन्ध आकाश के एक प्रदेश पर अवगाहन कर सकता है। दो, तीन, चार, पांच और उत्कृष्टतः आकाश के असंख्य प्रदेशों पर अवगाहन कर सकता है ।" १. महावृ. पृ. ४४, ४५ । २. पू. ३२ ३. अहावू. पू. ४५ । क्षेत्रापूर्वी १. आकाश के तीन प्रदेश यावत् असंख्यप्रदेश | (आकाश के प्रदेशत्रिक में तीनप्रदेशी पुद्गलस्कन्ध अवगाहन करता है यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध भी अवगाहन कर सकता है ।) २. आकाश का एक प्रदेश । ( आकाश के एक प्रदेश में एक परमाणु अवगाहन करता है यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध भी अवगाहन कर सकता है । ) ३. आकाश के दो प्रदेश । ( आकाश के दो प्रदेशों पर द्विप्रदेशी स्कन्ध अवगाहन करता है यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध भी अवगाहन कर सकता है ।) Jain Education International आनुपूर्वी द्रव्य असंख्येय बतलाये गए हैं। इसके तीन हेतु हैं१. क्षेत्रानुपूर्वी में क्षेत्र की प्रधानता । २. द्रव्य के अवगाहना क्षेत्र (आकाश) की असंख्येय प्रदेशात्मकता । ३. सदृश अवगाहना वाले अनेक स्कन्धों में एकत्व की विवक्षा । सूत्र १६७ अपने समान आकाश प्रदेशों में अवगाढ स्कन्ध द्रव्य की दृष्टि से अनेक होने पर भी उनमें एकत्व विवक्षित है। जैसे - दशप्रदेशी स्कन्ध आकाश के दश प्रदेशों में अवगाढ है वैसे अनेक स्कन्ध उस क्षेत्र में अवगाढ है, फिर भी वे अवगाह्य क्षेत्र की दृष्टि से एक ही माने जाएंगे। हरिभद्रसूरि ने इसका विस्तार से निर्देश किया है।' वाण अवग्राहवेत्तासंवेज्जसणतो सरिसावगाहणान एयणतो । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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