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अणुओगदाराई आभरण-वत्थ-गंधे, आमरण-वस्त्र-गन्धाः ,
पृथ्वी, निधि, रत्न, वर्षधर, द्रह, नदी, विजय, उप्पल-तिलए य पुढवि-निहि-रयणे। उत्पल-तिलकाश्च पृथिवी-निधि-रत्नानि। वक्षस्कार, कल्पेन्द्र, कुरु, मन्दर, आवास, वासहर-दह-नईओ वर्षधर-द्रह-नद्यः
कूट, नक्षत्र, चन्द्र, सूर्य, देव, नाग, यक्ष, विजया वक्खार-कप्पिदा ॥३॥ विजया वक्षस्कार-कल्पेन्द्राः ॥३॥ भूत और स्वयंभूरमण । वह पूर्वानुपूर्वी है। कुरु-मंदर-आवासा,
कुरु-मंदर-आवासा:, कडा नक्खत्त-चंद-सूरा य ।
कूटा: नक्षत्र-चन्द्र-सूराश्च । देवे नागे जक्खे,
देवः नागः यक्षः भूए य सयंभरमणे य ॥४॥
भूतश्च स्वयम्भूरमणश्च ॥४॥ से तं पुवाणुपुवी॥
सा एषा पूर्वानुपूर्वी। १८६. से कि तं पच्छाणपुवी ? पच्छा- अथ कि सा पश्चानुपूर्वी ? पश्चा- १८६. वह पश्चानुपूर्वी क्या है ?
णुपुवी-सयंभुरमणे जाव जंबु- नुपूर्वी- स्वयंभूरमण : यावत् जम्बू- पश्चानुपूर्वी- स्वयंभूरमण यावत् जम्बूहीवे । से तं पच्छाणुपुवी॥ द्वीपः । सा एषा पश्चानुपूर्वी ।
द्वीप । वह पश्चानुपूर्वी है । (देखें-सूत्र १८५)। १८७. से कि तं अणाणुपुवी? अणाणु- अथ किं सा अनानुपूर्वी ? अना- १८७. वह अनानुपूर्वी क्या है ?
पुव्वी-एयाए चेव एगाइयाए नुपूर्वी-एतया चव एकादिकया __अनानुपूर्वी- एक से प्रारम्भ कर एक-एक एगुत्तरियाए असंखेज्जगच्छगयाए ___एकोत्तरिकया असंख्येयगच्छगतया की वृद्धि करें। इस प्रकार असंख्य की संख्या सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवणो। श्रेण्या अन्योन्याभ्यास: द्विरूपोनः । सा का श्रेणी की पद्धति से परस्पर गुणाकार से तं अणाणुपुवी॥ एषा अनानुपूर्वी।
करें । इससे जो भंगसंख्या प्राप्त हो, उसमें से दो (पूर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी) को निकाल देने से जो संख्या प्राप्त हो। वह
अनानुपूर्वी है। १८८. उड्ढलोयखेत्ताणपुवी तिविहा
ऊवलोकक्षेत्रानुपूर्वी त्रिविधा १८८. ऊर्ध्व लोक क्षेत्रानुपूर्वी के तीन प्रकार प्रज्ञप्त पण्णत्ता, त जहा-पुवाणुपुव्वी प्रज्ञप्ता, तद्यथा-पूर्वानुपूर्वी पश्चान- हैं, जैसे पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और पच्छाणुपुव्वी अणाणुपुथ्वी॥ पूर्वी अनानुपूर्वी ॥
अनानुपूर्वी। १८९. से किं तं पुव्वाणपुवी ? पुव्वा
अथ किं सा पूर्वानुपूर्वी ? पूर्वानु- १८९. वह पूर्वानुपूर्वी क्या है ? णपुव्वी-१. सोहम्मे २. ईसाणे पूर्वी-१. सौधर्मः २. ईशानः पूर्वानुपूर्वी - सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, ३. सणंकुमारे ४. माहिदे ५. बंभ- ३. सनकमारः ४. माहेन्द्रः ५. ब्रा
माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, लोए ६. लंतए ७. महासुक्के लोकः ६. लांतकः ७. महाशुक्रः सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत, ८. सहस्सारे ६. आणए १०.पाणए
८. सहस्रारः ९. आनतः १०. प्राणत: ग्रैवेयक विमान, अनुत्तर विमान और ११. आरणे १२. अच्चुए १३. ११. आरणः १२. अच्युतः १३.
ईषत्प्राग्भारा । वह पूर्वानुपूर्वी है । गेवेज्जविमाणा १४. अणुत्तर- ग्रेवेयविमानानि १४. अनुत्तरविमाविमाणा १५. ईसिप्पन्भारा। से
नानि १५. ईषत्प्रारभारा। सा एषा तं पुव्वाणुपुवी॥
पूर्वानुपूर्वी। १६०. से कि तं पच्छाणपुवी ? पच्छा- अथ कि सा पश्चानुपूर्वी ? १९०. वह पश्चानुपूर्वी क्या है ?
णपव्वी-ईसिपब्भारा जाव पश्चानुपूर्वी ईषत्प्राम्भारा यावत् पश्चानुपूर्वी .. ईषत्प्राग्भारा यावत् सौधर्म ।
सोहम्मे । से तं पच्छाणुपुवी॥ सौधर्मः । सा एषा पश्चानुपूर्वी । वह पश्चानुपूर्वी है। (देखें-सूत्र १८९)। १६१. से कि तं अणाणपुयी ? अणा- अथ किं सा अनानुपूर्वी ? १९१. वह अनानुपूर्वी क्या है ?
णपुव्वो-एयाए चेव एगाइयाए अनानुप:- एतया चैव एकादिकया अनानुपूर्वी एक से प्रारम्भ कर एकएगुत्तरियाए पन्नरसगच्छगयाए एकोत्तरिकया पञ्चदशगच्छगतया एक की वृद्धि करें। इस प्रकार पन्द्रह की
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